मिश्री, आओ सेव खा लो, मैंने अपनी दो साल की बेटी को आवाज़ लगाई. मेरी नटखट तूफान जैसी बेटी दौड़ते
हुए आई और सेव देखते ही अपो अपो (Apple बोलने की कोशिश) कहकर मेरे हाथों से प्लेट ले कर सामने ही
सोफ़े पर बैठ कर सेव खाने लगी.
मेरी पड़ोसन शिल्पा भी वहां बैठी थी। वो कुछ महीनों पहले ही पास के मकान में रहने आई थी। उसका बेटा
चार साल का था। अक्सर दोपहर में बेटे को स्कूल से लाते हुए मेरे घर आ जाती थी। मेरी बेटी को भी खेलने
के लिए साथ मिल जाता। उस दिन शिल्पा के घर पर बढ़ई का काम चल रहा था और शोर से उसका बेटा
परेशान हो रहा था उसे स्कूल भी नहीं भेज पाई क्योंकि रविवार था तो वो उसे ले कर मेरे घर पर सुबह से
शाम तक रहनेवाली थी।
मैंने उसके बेटे को भी सेव देना चाहा पर उसने नहीं लिया।
मिश्री को सेव खाते देख कर शिल्पा बोली, अरे वाह ये तो कितने आराम से खाती है। मेरा बेटा तो सेव देखना
भी पसंद नहीं करता। क्या बताऊँ ये कुछ खाता ही नहीं।
मैं बस मुस्करा कर रह गई। थोड़ी देर में दरवाजे की घंटी बजी, देखा शिल्पा ने अपने बेटे के लिए बर्गर मंगाया
था। उसने मिश्री को भी देना चाहा पर मैंने साफ मना कर दिया। दोपहर के खाने के समय मैंने सबके लिए
खाना लगाया। मेरे पति काम के लिये दूसरे शहर गए थे तो मैंने चार थालियों में खाना लगाया। बच्चों के लिए
छोटी-छोटी थालियों में बिना मिर्च मसाले वाली दाल सब्जी और चावल डाल कर मिश्री और शिल्पा के बेटे से
कहा खाना खाने के लिए।
मिश्री तो बैठ कर खाने लगी। थोड़ा बहुत गिरा भी रही थी पर मैंने उसे अपने से खाने दिया। शिल्पा का बेटा
खाने को छू भी नहीं रहा था। मैंने पूछा;बेटा खाना खा लोगे या मैं खिला दू? या मम्मी के हाथ से खाओगे?
तभी शिल्पा बोली ये दाल चावल नहीं खाता
रोटी ला देती हूं कहते हुए मैं रसोई की तरह बढ़ी पर शिल्पा ने रोक दिया और बैग में से चॉकलेट और चिप्स
का पैकेट निकाल कर अपने बेटे को दे दिया।
क्या बताऊँ अब मैं, ये कुछ खाता ही नहीं। शिल्पा सुबह से कई बार यह बात बोल चुकी थी।
दोपहर का खाना खाने के बाद मिश्री तो सो गई और शिल्पा ने अपने बेटे को मोबाइल पर गेम लगा कर दिया
जिसे खेलने में वो इतना व्यस्त था कि उसे जब शौचालय जाना था तो बोला भी नहीं और उसने अपने बैठने
वाली जगह ही गंदी कर दी। एक पल को बुरा लगा क्योंकि मेरी दो साल की बेटी भी बता देती है कि उसे
बाथरूम जाना है। पर फिर सोचा कि कोई बात नहीं, बच्चा ही तो है। खैर, सब साफ-सफाई करने के बाद मैंने
रसोई में जाकर चाय चढ़ाई और तब तक मिश्री भी उठ गई। उसे बाथरूम ले कर गई और वापस आके उसे दूध
का ग्लास दिया।
फिर से शिल्पा बोल पड़ी अरे ये तो कितने आराम से दूध पीने लगी, मेरा बेटा तो दूध छूता ही नहीं है।अब मेरे से रहा नहीं गया।
मैंने उसे कहा सही कहा तुमने, तुम्हारा बेटा कुछ भी खाता ही नहीं है। दाल चावल नहीं छूता, दूध नहीं पीता
पर चॉकलेट, चिप्स, बिस्किट मजे से खाता है। अरे पेट में जगह होगी तब वो दाल चावल खाएगा न!! सुबह से
तीन पैकेट चिप्स, एक पैकेट बिस्किट, एक बर्गर और दो बड़े चॉकलेट खा लिए हैं तुम्हारे कुछ भी नहीं खाने
वाले बेटे ने। मैंने अपनी बेटी को इन सब चीजों की आदत नहीं लगाई है और वो जिद करे तो भी नहीं देती
उसे ये सब तो जब उसे भूख लगेगी तो घर का खाना ही तो खाएगी। तुम भी कोशिश कर के देखो और ये सब
बाहर का खिलाना बंद करो जिसमें कोई पोषण नहीं है बल्कि ये सब स्वास्थ्य के लिये हानिकारक ही है। और
अगर तुमसे नहीं होता तो कम से कम दूसरे बच्चों के खाने पर टोका मत करो।"
शिल्पा को बात समझ में आई या उसे बुरा लगा पर वो उसी समय अपने बेटे को लेकर चली गई। सप्ताह बीत
गया पर वो आई नहीं है मुझसे मिलने। मुझे भी लगता है कि शायद मैं थोड़ा ज्यादा बोल गई पर क्या
करती….. ऐसे लोगों के साथ कभी-कभी ज्यादा बोलना भी पड़ता है ताकि इन्हें समझ आये कि इनके बच्चे भी
खाते हैं, बस अच्छी चीज नहीं खाते।
तो आपके आसपास भी हैं ऐसे लोग जिनके बच्चे कुछ खाते ही नहीं हैं??
जया शर्मा