मेरा अस्तित्व जुड़ो कराटे वाली बहु – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

अरेऽऽ ओ सकुनी.. सकुनी, मां ने आवाज लगाई माँ रसोईघर में बर्तन साफ कर रही दुबारा आवाज लगाई अरेऽऽ ओ सकुनी मगर सकुनी को कोई मतलब नहीं वो तो लगी घर के पिछवाड़े में अपने कराटे की प्रैक्टिस करने में हू हा हू हा एक दो वो तो अपने धुन में इतनी मस्त की किसी की पुकार हो या कराह उसे कोई सूधबूध नहीं तभी माँ चिल्लाई हेऽऽ भगवान क्या होगा इस लड़की का…?

, कब आर्येगी इसकी अक्ल ठिकाने अरे कुछ तो लक्षण हो लड़कियों वाले कुछ तो तौर तरीके सीख लेती ये.. लेकिन ना.. इसे तो करनी अपनी मर्ज़ी अपने ही मन की सारा दिन लड़कों की तरह कूद फांद, लंगूर की तरह मटक पटक समझ नहीं आता कौन करेगा ऐसी लड़की से शादी माँ माधुरी बड़बड़ाती बर्तन की टोकरी एक तरफ पटकती बोली..ॽ

पिता विशम्बर की लाडली सर चढ़ाई शकुंतला यानि सकुनी जिसे प्यार से सभी सकुनी कह बुलाते पत्नी के लगातार पुकारने की आवाज सुनकर सकुनी के पास जाकर बोले बेटा सकुनी माँ काफी देर से पुकार रही है तुमको। सकुनी ने दो चार बार जल्दी जल्दी उठक बैठक लगाई शायद कोई नया दांव का अभ्यास करने वाली थी पिता की आवाज पर थोड़ा रूककर बोली- 

अरे बापू “ ये माँ भी न चैन से कुछ करने ही नहीं देती ”

 बस पुकार रही होगी खाना “सीख ले” , 

“चाय बना ले”..अचार, मसाले समझ ले अब कौन समझाए माँ को, 

हर इंसान का अपना अस्तित्व उसकी भावनाओं और उसके संबंधों का मूल्यांकन उसका हिस्सा है जो उसे अनमोल बनाता है।

आज के जमाने में कराटे का क्या महत्व है ?” यह तो आत्म रक्षा है ”।

 इसके एक से बढ़कर एक दांव-पेंच स्टाइल दुश्मन भी डरते कभी आघात पहुँचाना तो दूर की बात, आघात पहुँचाने की सोच भी नहीं सकते पता नहीं क्या रखा इस खाना बनाने खाने में सीखने  में..ॽ मां से बेकार बहसबाजी करने से अच्छा अनसुनी कर दो माँ की बात सकुनी अपनी कराटे की नवीन मुद्रा में उछलते हुए बोली।

सकुनी बचपन से ही बहादुर बच्ची आज जंवा हो गई मगर बहादुरी उसके रंग रंग में बसी हुई थी। कभी उसके दादा भी अखाड़े के पहलवान हुआ करते थे। सो पिता ने उसका शौक जानकर बचपन से ही सकुनी को कराटे क्लास ज्वाइन करवा दी। माँ उसको घर के काम सिखाने की कोशिश करतीं मगर सकुनी है कि उसके कानों में जूं तक नहीं रेंगती सारा दिन उसमें कराटे का ही भूत सवार रहता। 

अनेको बार स्कूल में कराटे प्रतियोगितायों में अनेक पुरस्कार जीत चुकी है उसकी इच्छा थी वो कराटे के क्षेत्र में ही अपना कैरियर बनाये। उसकी तो बहुत इच्छा थी अर्ध सैनिक बल, पुलिस बल में जाये और अपराधियों से दो चार हाथ करे । रात दिन उनको पछाड़ने के ही सपने देखती रहती । मगर दादी और माँ कहती ये पुलिस वूलिस में हमारे खानदान की लड़कियां नहीं जाती तब सकुनी के पिता के प्रयास से उसे एक कराटे ट्रैनिंग सैन्टर में नौकरी मिल जाती है।

 यह देख मां, दादी हंगामा मचा देती हैं वो दोनों डटकर विरोध करतीं कहती इसकी ये पहलवानों वाली हरकतें देखना एक दिन हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी। माँ कहती सकुनी के बापू हाथ पीले कर दो जल्दी से इसके। दादी कहती- देख बिटुआ, बहुत हुआ बारहवीं पढ़ा लिखा दिया बहुत है अपनी अपनी बिरादरी में दूर दूर इतना कोई न पढ़ाया लड़की को, ऐसा न हो पहलवान ही ढूंढना पढ़ें इसके लिए और जिद पर अड़ी न मिला तो घर ही न बैठी रह जाये । वैसे भी आस पड़ोस बिरादरी में जुड़ो कराटे वाली नाम से ही जानी जा रही आजकल ये सकुनी। 

पिता समझाते ऐसा कुछ नहीं अम्मा वो जमाने लद गये आजकल ऐसी लड़कियों को सब पसंद करते। आजकल बढते अपराध महिलाओं की सुरक्षा के लिए यह विद्या  बहुत जरूरी और काम की है । मगर पत्नी और माँ के आगे एक न चली पिता विश्मबर हार मान जाते हैं। सकुनी के लिए लड़के की तलाश जारी एक सँस्कारी

परिवार से रिश्ता आता है माता प्रसाद जी का बेटा मनोहर दोनों परिवारों की रजामंदी सकुनी और मनोहर का विवाह तय हो जाता है। विश्मबर सकुनी के पिता पहले ही सकुनी के शौक सामने रख देते हैं और नौकरी  का भी बता देते हैं। ससुराल पक्ष को कोई आपत्ति नहीं होती।

दोनों पक्षों के घरों में शादी की तैयारी धूमधाम से शुरू हो जाती है और फिर शादी का दिन भी आ जाता है। सकुनी का घर मेहमानों से भरा सभी को काम बांट दिए जाते हैं। लड़की की शादी सभी अपनी अपनी जिम्मेदारी व दिये गये कामों में व्यस्त हो गये।

सभी बारात आने की तैयारी में मशगूल सकुनी को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा वो आज दुल्हन की वेशभूषा गहनों में सजी धजी  लग भी बहुत खूबसूरत रही थी। पहले उसने ऐसे कपड़े कभी नहीं पहने थे वो तो पे़ट कमीज या नेकर शर्ट पहने ही दौड़ती घूमती फिरती। 

उसकी माँ और दादी तो उसे देखकर अपलक निहारते ही रह जाते हैं। बलईया लेती माँ माधुरी ने पहले ही सकुनी को निर्देश दे दिया

 देख सकुनी जयमाल के लिए ले जायें तो धीरे-धीरे चलना

 लगना चाहिए एक लड़की आ रही है। 

वो अपनी धूम पछाड़ चाल में मत चलना। माँ ने स्पष्ट कह दिया।

और सकुनी ने भी आज्ञाकारी बेटी की तरह हामी भर सर हिला दिया।

बारात आ गई बारात आ गई जैसे ही शोर मचता है। 

सभी सहेलियां रिश्ते दार बारात देखने नाचते लोगों की मस्ती देखने बाहर भाग जाते हैं।

 सकुनी अकेली रह जाती है क्योंकि उनके यहां लड़कियों को अपनी बारात देखने का रिवाज नहीं था।

गानों बैंड वालों की तेज धून वातावरण उसमें गूंजने लगता है। तभी मौके की तलाश करता एक चोर फुर्ती से सकुनी के कमरे में घूस जाता है। वो इतनी सतर्कता से भीतर घूसता है किसी को इस बात का आभास ही नहीं होने देता । हाथ में पिस्तौल और चाकू सकुनी को डरा जल्दी से सभी गहने उतारने को कहता है।

भला सकुनी चोर से डरने वाली वैसे भी काफी दिनों से माँ ने कराटे बन्द करवा रखे थे और दुल्हन की तरह रहने खाने पीने सहने की ट्रेनिंग ही उसे दिलवा रही थी । सकुनी को तो दो चार हाथ करने का मौका चाहिए था ही वो, चोर से कहती हैं हां, हाँ अभी देती हूँ गहने तुम मुझ पर हथियार से वार मत करना। अपने  को डरा सहमा हुआ सा दिखाती । 

चोर सकुनी को सहमा देखकर थोड़ा ढीला पड़ जाता है। फिर सकुनी मौका देख कूदकर एक ऐसा दांव खेला चोर का चाकू पिस्तौल छूट कर दूर जा गिरे फिर चोर कि काॅलर पकड़ कर घसीट कर बाहर ले आती है। बाहर बरातियों धरातियों का जमघट सभी आवभगत में लगे सकुनी चिल्लाकर चोर को बीच आंगन में पटक देती है। कहते हुए ये लो ये पटका, ये पटका।

सारे घर में एक बार तो सन्नाटा छा जाता है लेकिन जब चोर के बारे में पता चलता है। तो सभी घबरा जाते हैं। लेकिन पिता विशम्बर सकुनी के कन्धों को थपथपाते कहते शाबाश बेटा आज तुम अपनी हर परीक्षा में पास हो गई हो..अब मैं निश्चित हूँ जैसा चाहता था तुम वैसा ही बन गई हो । आज की घटना से तो तुम्हारे पहलवान दादा जी की आत्मा भी सन्तुष्ट हो गई होगी। चोर को थाने पहुंचा, सभी सकुनी की प्रशंसा करने लगते हैं और सबसे ज्यादा खुशी थी कि वो सही सलामत थी उसको कोई नुक्सान नहीं पहुंचा है ।

दूसरे दिन सकुनी विदा होकर ससुराल आ जाती है। बारात में गये सभी आदमी अपने अपने घरों में सकुनी का किस्सा चटकारे ले लेकर बताते हैं। अड़ोस-पड़ोस सभी बहु देखने आने लगते हैं आपस में बातें करते माता प्रसाद जी बहु मनोहर की पत्नी जुड़ो कराटे वाली बहु आई है। क्या बहादुर है भई …,? हर में एक नया उत्साह हर कोई उसको देखना मिलना चाहता ।

शादी के बाद सकुनी स्कूटी से अपने कार्य स्थल जाना आना शुरू कर देती है। एक दिन छुट्टी थी वो घर पर ही होती है तो उसने देखा सासूमां को अस्पताल जाना मगर ट्रांस्पोर्ट हड़ताल की वजह से वो जा नहीं पा रही है। आज उनका जरूरी अपाइंटमेंट रूटीन चैकअप होना था सकुनी उनको कहती हैं माँ आओ बैठो मेरी स्कूटी में इसमें बैठाकर ले चलती हूँ मैं आपको। सासूमां सकुनी की स्कूटी के पीछे बैठ अस्पताल की और जा रहे होते हैं सूनसान वीरान सा रास्ता ऊपर से ट्रांस्पोर्टरों की हड़ताल सारी सड़कें सूनी दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा मुश्किल से एक आध गाड़ी गुजर रही होती हैं। तभी सासूमां के गले में पहनी चैन दो बाईक सवार हैल्मेट पहने बदमाश खींचकर भाग रहे होते हैं।

 सासूमां चिल्लाने लगी सकुनी मेरे चैन खींच ले गये बदमाश सकुनी सासूमां को पीछे बैठाये ही स्कूटी बदमाशों के पीछे दौड़ा   चैन स्नेचरों को झपटा मारकर नीचे गिरा देती है आसपास कुछ दूर खड़े लोग उसी तरफ दौड़ पड़ते हैं।सभी मिलकर चैन स्नेचरों को पकड़ लेते हैं पुलिस को मौका वारदात पर बुला उनको उन्हें सौप दिया जाता है । दोनों चैन स्नेचर बदमाश हैल्मेट लगा काफी दिनों से अनेक वारदात कर चुके थे। पुलिस सी सी टी वी कन्ट्रोल रूम से फूटेज देखती है सच्चाई का पता चलता है। बहुत ही शातिर पुलिस की नाक में दम किए हुए बदमाशों को पकड़ थाने ले जाया जाता है । इन शातिर चोरों को पकड़ने पर ईनाम भी रखा गया होता है। सासूमां बताती है कुछ दिन पहले उनके पड़ोस के घर में भी घूसकर ऐसे बदमाश कांड कर चुके हैं। 

बदमाशों को कारावास और सकुनी को इनाम की घोषणा की जाती है। सासूमां और सकुनी अस्पताल जाकर फिर वापस घर लौट आते हैं । घर पर और आस-पड़ोस में सकुनी के कारनामे की खबर सबको पहले ही मिल चूकी होती है। सभी सकुनी की प्रशंसा करते बड़ी गजब ये कराटे वाली बहु और अपनी लड़कियों को भी कराटे की शिक्षा दिलवाने के लिए सकुनी से पेशकश करते है। सकुनी ससुराल में सभी से कहती हैं वो मार्शल आर्ट्स अकादमी खोलना चाहती है। मुझे अपना अस्तित्व यानी सत्यता और वास्तविकता बरकरार रखनी है

मैं चाहती हूँ मेरी शिक्षा समाज में वास्तविक में मौजूद रहे मात्र कल्पना,या विचार बनकर ही न रहे। हर घर घर में लड़कियों, महिलाओं को यह स्वीकार करना होगा की उनका अस्तित्व इस बात पर निर्भर नहीं करता वो दूसरों के लिए क्या हैं…बल्कि इस बात पर निर्भर करता है…वह खुद के लिए क्या हैं…? तभी समाज में महिलाएं सुरक्षित रह सकेंगी और घर वाले उसके विचारों से सहमत, प्रभावित हुए उसको खुशी खुशी इजाजत दे भी देते हैं। और सकुनी  को क्या चाहिए…सकुनी की खुशी की सीमा नहीं रहती।

 लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

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