*मेरा अपना क्या* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

    माँ-ओ माँ, एक बात कहूं,पता नही क्यूँ आज मेरा मन तेरी गोद मे सिर रख कर सोने को कर रहा है।बहुत याद आ रही है, तेरी।पर यहां भी तो तेरा ये बेटा तेरी और अपनी मां के लिये ही लड़ रहा है।सुन सोनी है ना,थोड़ी अल्हड़ है,एकदम मुझसे रूठ जाती है,मैं उसे कैसे समझाऊं यहां भी तो मैं  फर्ज निभाने आया हूँ।

अब वह भी क्या करे माँ?अब साल भर पहले ही तो मुझसे ब्याह हुआ,भरपूर साथ भी ना रह पाये कि जंग छिड़ने के आसार हो गये,छुट्टियां खत्म कर दी गयी, यहाँ मोर्चे पर आना पड़ गया,उधर छुटकी आ गयी,बिल्कुल तुझ पर गयी है माँ,

पर अब कब उसे खिला पाऊँगा पता नही।माँ तू ही सोनी को समझा देना,संभाल लेना उसे,और हाँ माँ वो है ना अपने ही मुहल्ले में धन्नी बनिया उस पर मैंने पैसे जमा किये हुए हैं, वैसे वह अपने बाबूजी का भी काफी लिहाज किया करता था,उससे मैने कह रखा है,किसी भी चीज की जरूरत होगी तो उससे ले आना।

        वीर लखन मोर्चे पर तैनात,कब जंग शुरू हो जाये,इस आशंका और तैयारी के बीच विचारों के झंझावतों के मध्य थोड़ी सी भी फुरसत मिलती तो अपने मन मे आयी बातचीत को खत में लिख डालता,वह जानता था कि ये खत पता नही गंतव्य पर पहुंचेंगे भी या नही,फिर भी रोज लिखता,माँ को तो आज लिखा,

पर सोनी को तो रोज ही लिखता।उसका कसूर क्या है, उसकी भोली सी सूरत उसके सामने आ जाती, उसकी चिंता तो जायज थी, अपनी एक माह की गुड़िया को गोद  मे लिये चलते समय आंसुओ से भीगे स्वर में कह रही थी गुड़िया के पापा हमे भी साथ ले चलो, कैसे जिऊंगी तुम बिन?क्या उत्तर देता वीर लखन,बस इतना ही कह पाया,

इस कहानी को भी पढ़े 

अरे वीर की ब्याहता है, क्या रोना तुझे शोभा देवे है, सुन मैं जा रहा हूँ तो बता माँ को कौन संभालेगा?गुड़िया की देखभाल कैसे होगी?अरे बावली जंग हुई तो तेरा आदमी जीत के आवेगा, सिर उठा कर सीना तान कर आवेगा, बता तब तेरा मान नही बढ़ेगा?सोनी चुप सी हो गयी थी,फिर एक दम बुक्का फाड़ कर रो पड़ी थी,पर वीर मैं इतनी बड़ी बाते क्या जानूं,

मेरी दुनिया तो तू है रे वीर।उसके अंतर्नाद को सुन एक बार तो वीर लखन हिल गया,फिर बोला सोनी मुझे कमजोर मत बना,देख सरहद पर भी तो माँ का कर्ज अदा करना है।जा,गुड़िया और मां का जिम्मा तेरा,उन्हें संभाल।बिना सोनी से निगाह मिला चुपचाप सा वीर लखन मोर्चे पर रवाना हो गया था।

       सोनी को लिखे तमाम खत आज भी उसकी बंकर में ही एक अखबार में लिपटे रखे थे,कभी कभी  हेड क्वाटर से कोई चिठी पत्री लेने या देने आ जाता तभी चीठियाँ जा पाती,इधर काफी दिनों से कोई हरकारा आया ही नही।सब खत ऐसे ही उसके पास  संजोए पड़े थे।आज वीर लखन को मां की खूब याद आ रही थी,

तभी तो उसने मां को खत लिखा था।यह खत भी उसने उसी अखबार में लपेट कर रख दिया।खत जा तो नही रहे थे,पर खत लिखकर कुछ समय के लिये मन हल्का सा हो जाता था।आज अचानक खत लेने हरकारा शाम को आ ही गया।खुशी से झूमते वीर लखन ने अखबार में लपेटे तमाम खत हरकारे को दे दिये।हरकारा मुस्कुरा पड़ा,

अरे वीर क्या यहाँ खत ही लिखते रहते हो।पत्नी की बहुत याद आती होगी,है ना?हल्के से मुस्कुरा दिया,वीर लखन।आज उसके मन को संतुष्टि थी,उसके खत अब उसकी सोनी और मां तक पहुंच जायेंगे।इसी संतुष्टि भाव से वीर बंकर में कमर टिकाने घुस गया।कुछ समय ही बीता होगा कि गोलियों की तड़ तड़ की आवाज से पूरा इलाका गूंज उठा।

इस कहानी को भी पढ़े 

दुश्मन द्वारा हमला हो चुका था,उनकी बटालियन ने तुरंत ही मोर्चा संभाल लिया और दुश्मन के हमले का जवाब देने लगे। वीर लखन एकदम से दहाड़ मार कर अपनी स्टेनगन ले दुश्मनों पर टूट पड़ा।आज उसका रौद्र रूप देखने लायक था। चिल्ला चिल्ला कर बोल रहा था,एक को भी नही छोडूंगा,सोनी तू चिंता न कर री,दुश्मन खत्म हो जायेगा तो मैं तेरे और गुड़िया के पास आ जाऊंगा।

सोनी मैं आज ही इस लड़ाई को खत्म कर दूंगा।वीर लखन मानो पागल सा हो गया था।अंधाधुंध फायरिंग करता हुआ वह दुश्मन को नेशतनाबूद करने में लगा था कि एक गोली उसके सीने में पैठ गयी।एक ओर लुढक गया वीर लखन।वह समझ चुका था,अंत करीब है,अब वह न अपनी सोनी से मिल पायेगा,न गुड़िया से और न माँ से।उसकी आँखों से दो बूंद टपक पड़ी।

धीरे धीरे वीर होश खोता जा रहा था,उसने देखा पीछे से दूसरी बटालियन आ गयी है,दुश्मन या तो समाप्त हो गया था या फिर भाग गया था। उसके मुंह से निकला सोनी मुझे माफ़ कर दे–ना।एक गहरी सांस ले वीर लखन एक ओर को लुढक गया।

      वीर लखन को भी हॉस्पिटल ले जाया गया,जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।वीर लखन शहीद हो चुका था।उधर मां अपने वीर के खत को पढ़कर बुदबुदा रही थी, वीर तू क्यो चिंता करता है रे,तेरी सोनी इतना कमजोर थोड़े ही है,मेरे वीर लखन की भार्या है,शेरनी है,हमारी सोनी।तू आयेगा ना तब देखना सोनी ने पूरा घर संभाल रखा है,मुझे तो वीर वो खाट से भी उतरने नही देती।बड़े कर्मो वाली है हमारी सोनी।

दरवाजे पर बजी सांकल से माँ की तंद्रा टूटी तो दरवाजे की ओर ऐसे भागी मानो उसका वीर आ गया हो।हाँ वीर तो नही आया था,पर उसकी शहीदी का पैगाम आ गया था। सुनकर गश खा कर गिर पड़ी माँ।सोनी दौड़ी आयी,दरवाजे पर खड़े दूत और बेहोश पड़ी मांजी को देख उसने समझ लिया,उसका वीर तो बलिदान हो गया भारत माँ के चरणों मे।

वीर लखन के खत उसे भी तो आज ही मिले थे,जिन्हें उसने एक सांस में ही पढ़ डाला था,मोर्चे पर रहकर भी उसका वीर भारत माँ के लिये सब कुछ न्योछावर करने की ललक अपने खतों में दर्शा रहा था तो जीत कर जल्द ही वापस आने का विश्वास भी खतों में जता रहा था।वीर लखन के खतों ने सोनी की अल्हड़ता को मानो खत्म कर दिया था,उसे लग रहा था, उसका वीर जीत कर बस आने ही वाला है उसके पास।

      सोनी ने भी परवाना पढ़ लिया था,उसके सामने चुनौती थी  माँ को संभालने की गुड़िया के परवरिश की।एक क्षण में ही उसने ठान लिया था नियति से संघर्ष करने का,आखिर तभी तो वह अपने वीर की निशानी गुड़िया को भी वीर बना पाएगी।

       सफेद कपड़ो में लिपटी सोनी ने अपने वीर को प्राप्त परम वीर पदक  प्राप्त किया तो सोनी की आंखों में आंसू तो जरूर थे पर उसका मस्तक शान से ऊपर था,उसकी आंखों में सपना था अपने वीर की गुड़िया को भी वीर  बनाने का।

        बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

         मौलिक कहानी

#*तुम्हारी चिंता तो जायज है* वाक्य पर आधारित कहानी:   

Leave a Comment

error: Content is protected !!