मेहमान
बहु, आज खाने मे कुछ अच्छा बना लेना, तेरेे गांव वाले आ रहे है, फोन आया था. माँ जी की बात सुनकर दीपिका बहुत ख़ुश हुई, पर खाना बनाने से जी चुराने वाली, सोच मे पड़ गई, कि कौन आ रहा है, पूछने की हिम्मत नहीं हुई. अमोल और दीपिका की शादी हुए अभी कुछ ही महीने हुए थे.
अमोल पढ़ा लिखा था और कानपुर मे नौकरी करता था, और उसका बड़ा भाई गांव मे खेती बाड़ी संभालता था. पिताजी थे नहीं, और माता जी कभी कानपुर तो कभी गांव. गांव कानपुर से लखनऊ के रास्ते मैं था और ज्यादा दूरी नहीं होने की वजह से रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहता था.
दीपिका और अमोल दोनों के गांव पास पास थे परन्तु अमोल शहर मैं रहकर पड़ता था और दीपिका गांव के स्कुल मे. दीपिका खाना बनाती जा रही थी और सोचती जा रही थी कहीं मम्मी पापा तो नहीं आ रहे, पर नहीं, उनकी तो सेहत ठीक नहीं है, शायद भईया भाभी, हाँ हाँ, वहीं होंगे, पर आज तो इतवार नहीं है, फिर कौन?
चलो जो भी है, थोड़ी देर मे पता चल जायेगा. खाना बनाकर दीपिका फ्रेस होकर अच्छे से तैयार होकर बैठी ही थी कि डोर बेल बज गई, दीपिका ने दरवाजा खोला तो आगंतुक को देखकर चौक गई क्योंकि गांव से सासु माँ के भाई भाभी आये थे. भाई भाभी शहर दवाई लेने आये थे और बहन से भी मिलने आ गए. कुछ देर रुककर और खाना खाकर चले गए.
जाने से पहले खाने की बहुत तारीफ की. कुछ ही दिन बीते थे की सासु माँ ने दीपिका को फिर से अच्छा खाना बनाने के लिए बोला और कहा तेरे गांव से 2 लोग आ रहे है. इस बार फिर दीपिका ने न चाहते हुए भी खाना बनाया और सोचती रही शायद मम्मी पापा आ रहे होंगे.
थोड़ी देर बाद सासु माँ का भतीजा अपनी पत्नी के साथ आ गया. वो गांव से अपने पारिवारिक फंक्शन का न्योता देने आया था और सबको आने का आग्रह किया. जाने से पहले वो दोनों भी खाने की बहुत तारीफ करके गए. उनके जाने के बाद बहु को बहुत गुस्सा आ रहा था
कि इतनी मेहनत से खाना बनाया और मेरे गाँव से कोई नहीं आया, तो उसने माँ जी से डरते डरते पूछा, कि आप तो बोले थे तुम्हारे गांव वाले आ रहे है, पर ये तो इनके गांव वाले थे.
माँ जी बोली, शादी के बाद इनका गांव तुम्हारा नहीं हुआ क्या? और अगर बता देती तो क्या खाना बेमन से बनाती? बहु, अतिथि केवल कुछ घंटो के लिए आते है, पर हमेशा के लिए यादें ले जाते है. अब अपने गांव चलने कि तैयारी कर, न्योता आया है.
निमंत्रण के हिसाब से अमोल और दीपिका माँ जी के साथ गांव के लिए जल्दी ही निकाल पड़े ताकि दीपिका को उसके माता पिता से भी मिलवा दें. माँ बाबूजी से मिलकर, खाना खाकर सब लोग फंक्शन के लिए आगे निकल पड़े. मायके मैं दीपिका को सबकुछ सामान्य लगा. परन्तु
फंक्शन पर पहुंचते ही लगभग सारे गांव वालो ने दीपिका और उसके माता पिता को घेर लिया, दीपिका और उसके खाने की बहुत तारीफ करने लगे. तारीफ सुनकर दीपिका मन ही मन बहुत खुश हो रही थी,सोच रही थी, जिन लोगों से मैं कभी मिली नहीं, वो भी मेरे खाने की तारीफ कर रहे है.
ये देखकर सासु माँ बोली, मेरे भाई भतीजे आये थे न, ये उन्ही की देन है. फिर माजी बोली, बहु, तू मुझ से पूछ रही थी न मैंने तुझे क्यों नहीं बताया था की कौन आ रहा है, अब समझ आया की नहीं. अब देख पूरे गांव मे तेरी तारीफ हो रही है,
कितना अच्छा लग रहा है. इसलिए अतिथि का स्वागत हमेशा खुले दिल से करना. सासु माँ की बात सुनकर ” दीपिका लज्जित हो गई”. दीपिका बोली, माँ जी मुझे माफ कर दो, आगे से मै ध्यान रखूगी.
साथियो, पहले जमाने मै अतिथि के आदर सत्कार मै कोई कमी नहीं आने दी जाती थी, इसे अपना सौभग्य समझा जाता था. आज कि युवा पीढ़ी मै ऐसे संस्कारो का आभाव है.
शास्त्रों मे तभी तो कहा गया है, “अतिथि देवो भवें “, अर्थात, मेहमान देवता के समान होता है, इसपर आपकी क्या राय है, जरूर बताये.
लेखक
एम. पी. सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित