मिताली – गीता अस्थाना

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शिवेंद्र ने ट्रेन के कोच में भरी पैसेंजर के बीच तेज़ आवाज़ में कहा, ‘ कब तुमने मुझे रुपए दिए ‘ उनकी तेज़ आवाज़ से भयभीत सी होकर नीचे देखने लगी। उसकी आंखों में आंसू आ गए। रात्रि का सफर था, सो वह अपने बर्थ पर जाकर लेट गई। काफी देर तक वह जागती रही। पलकें कब बंद हुईं, उसे नहीं पता।

पितृ विहीना मिताली जब दो वर्ष की थी, नि: संतान शिवेंद्र ने अपनी पत्नी अम्बिका की सहमति से अपने स्वर्गीय भाई की पत्नी जानकी से मिताली को एडाप्ट किया था । एडाप्ट करने का एक कारण यह भी था कि वे मिताली और उसकी मां जानकी की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। रेलवे में सर्विस होने से उन्हें कुछ सुविधाएं मिल रही थी।

ईश्वर की कृपा से कुछ वर्ष पश्चात् दम्पति को लक्ष्मी की प्राप्ति हुई।उसका नाम रखा प्रिया। मिताली नवें वर्ष की दहलीज़ पर आ गई थी। नवजात शिशु प्रिया को देखकर बहुत खुश होती।उसे गोद में उठा कर पूरे घर में घूमती।कहती ‘तू जल्दी बड़ी हो जा, फिर हम दोनों साथ खेलेंगे।’कई बार अम्बिका मना करती कि गिर जाएगी,मत उठाओ। वह कहती ” नहीं मां, मैं नहीं गिराऊंगी”को “छटांक भर की हैं, नहीं गिराऊंगी, बैठकर खिलाया कर”अम्बिका ने प्यार से डांटते हुए कहा।

नवागत प्रिया के आने के पश्चात् धीरे धीरे शिवेंद्र और अम्बिका का आकर्षण मिताली के प्रति कम होने लगा।

पहले उसे  इच्छित चीजें स्वत: ही मिल जाती थीं, पर अब उसे मांगना पड़ता है। अभी तो वह अबोध ही थी।समझ नहीं थी कि ऐसा क्यों है। अम्बिका से कहती, ” मां मुझे चाकलेट चाहिए। पहले पापा लाते थे,अब भूल जाते हैं।” “चाकलेट टाफी खाना बंद करो।दांत खराब हो जाते हैं।”अम्बिका ने थोड़ी बेरुखी से कहा। मैं बड़ी मां से मांग लूँगी । वो मना नहीं करतीं।” अम्बिका ने फिर कहा”जा मांग ले। मैं जैसे कुछ देती ही नहीं। जिस पेड़ की छाल है उसी से न लिपटेगी “।

अन्तिम वाक्य को धीरे से कहा कि कोई सुन न ले।आशय तो मिताली के समझ में आया ही नहीं।

आफिस से आने पर शिवेंद्र ने अम्बिका और जानकी को बताया कि आज महिम (घनिष्ठ रिश्तेदार) का फोन आया था। अपने बेटे के मुण्डन संस्कार में हम सभी को बुलाया है।

अम्बिका ने कहा,” मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है। भाभी जाना चाहें तो आप दोनों चले जाइए।” जानकी ने कहा,” तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है और एक छोटा बच्चा है। अकेले क्या करोगी।”फिर शिवेंद्र से बोलीं,” उपस्थिति ही तो देनी है।आप चले जाओ।”   “ठीक है, मैं चला जाता हूँ।” पास बैठी मिताली उत्साहित होते हुए बोली,” पापा मैं भी चलूंगी।”

वहां तुम्हारा ध्यान कौन रखेगा? न मां जा रही हैं,न बड़ी मां।” ” मैं बड़ी हो गई हूँ ।अपना ध्यान मैं रख लूँगी।” “अच्छा चलो, तैयारी कर लो।” 

शिवेंद्र मिताली मुण्डन संस्कार में शामिल हो गए। वहां सभी ने शिवेंद्र के आने से प्रसन्नता व्यक्त किया। मिताली ने भी खूब आनन्द उठाया। मुण्डन संस्कार समाप्ति के दूसरे दिन शिवेंद्र वापस लौटने लगे तो महिम की पत्नी ने मिताली को सौ रुपए बिदाई के दिए। भीड़भाड़ की उपस्थिति में ही मिताली ने वे रुपए पापा को दे दिया। स्टेशन आकर ट्रेन में बैठने के बाद शिवेंद्र ने मिताली से पूछा,”तुम्हें भाभी ने कुछ दिया?” हां,सौ रुपए दिए थे, मैंने आपको  तो दिया है।”मिताली ने जवाब दिया। शिवेंद्र पुनः कहा,” मुझे कब दिया। कहीं गिरा दिया होगा।” “नहीं पापा, मैंने आपको ही दिया है।”शिवेंद्र पुनः गुस्से में आकर बोले,” दो झापड़ लगाऊंगा, तब याद आ जाएगा। मुझे न जाने कब दिया।”उनके गुस्से को देखकर मिताली सहम गई। आंखों में आंसू आ गए। बैठे पैसेंजर भी देखने लगे।पापा का यह वाक्य “झापड़ लगाऊंगा” जहर के समान लगा जिसे उस समय उसे पीना पड़ा। वह चुपचाप अपने बर्थ पर लेट गई। बहुत देर तक जागती और सोचती रही। नींद ने कब डेरा डाला, पता नहीं चला।  रास्ते भर उसने पापा से बिल्कुल बात नहीं किया। सुबह घर पहुंची । थोड़ा सुकून महसूस किया।

स्वलिखित मौलिक,

गीता अस्थाना,

बंगलुरू, कर्नाटका।

विषय – जहर का घूंट पीना।(असह्य बात सहन कर लेना)

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