मायका – शुभ्रा बैनर्जी 

“सुमन! ओ सुमन, मधु आ रही है कल दामाद जी के साथ।सुबोध से कहना, छुट्टी ले ले दो चार दिन की।” सुमित (पति)ने फोन रख दिया था।सुमन समझ नहीं पा रही थी कि बेटी के आने की खुशी क्यों नहीं महसूस हो रही थी उसे? ऐसा नहीं कि मधु पहली बार आ रही थी राखी।पांच साल हो चुके थे

उसकी शादी को।दामाद जी हर राखी या तीज त्यौहार में लेकर आते थे उसे।पापा की लाड़ली मधु, पापा से मिलने को हमेशा आतुर रहती थी।सुमन भी उसकी पसंद के पकवान बनाकर खिलाती थी।सुबोध तो दीदी के आने की खबर पाकर ही घूमने की नई-नई जगहें ढूंढ़ रखता था।

इसी साल सुबोध की शादी भी हुई थी,रजनी के साथ।नई नवेली रजनी , दुल्हन बनकर जब से आई थी घर,पूरे घर को मन से अपना लिया था उसने।सारा दिन सुमन के आगे -पीछे घूमती रहती है मम्मी -मम्मी करके।सुबह के नाश्ते से लेकर रात को सोते समय सभी को हल्दी वाला दूध देना

अब उसकी जिम्मेदारी बन गई थी।कभी -कभी सुबोध कह ही देता था”मम्मी,आप मेरी मम्मी अब नहीं रही।जब देखो,ये ही आपके आस-पास डोलती रहती है।अब बालों में तेल रजनी के लगाती हैं आप।सारी कहानियां उसे ही सुनातीं हैं।मेरे साथ  बैठने तक  की फुर्सत नहीं है आपके पास आजकल।पापा ठीक कहतें हैं।इस घर में अब औरतों का ही आधिपत्य हो गया है।” 

सुमन प्यार से बेटे के गाल में चपत लगाकर कहती”ये क्यूं नहीं कहता कि मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई अब।पहले मैं तेरी और दीदी की मम्मी थी।फिर राघव (दामाद) जी की मम्मी बनी।अब रजनी की मम्मी बन गई हूं।मां के लिए तो सारे बच्चे एक समान ही होते हैं।जा ,तुझे अगर चिढ़ होती है,

तो नहीं करूंगी तेरी बीवी से बात।तुझे भी उसके साथ समय बिताने को मिलना चाहिए,है ना।” सुबोध झेंप जाता,और कमरे से निकल जाता।एक दिन रजनी ने सुबह ही सुमन से सवाल पूछना शुरू कर दिया”मम्मी जी, हमारे परिवार में क्या नियम है?मायके कब जा सकतें हैं?कौन सी पूजा में क्या करना होता है?

तिथि निकलवा कर ही बाहर क्यों जातें हैं?, वगैरह-वगैरह।सुमन ने उत्तर तो दिए सभी प्रश्नों के,पर अपना एक प्रश्न भी पूछ ही लिया”बहू,ये नियम की बातें आज अचानक जानने की क्या जरूरत पड़ गई तुम्हें ? किसी ने कुछ कहा है क्या? 

रजनी अब घबरा गई।बोली ” नहीं-नहीं, मम्मी।राखी में मुझे मायके जाने का मन था।तो मैंने आपके बेटे से पूछा। उन्होंने कहा कि हमारे यहां कहीं भी आने जाने के नियम होतें हैं।

मुझे सुनकर बहुत बुरा भी नहीं लगा मम्मी।जिन घरों में नियम बनाकर रखें जातें हैं, वहां सभी नियमों को मानना जरूरी भी है।”सुमन को खटका रजनी का उत्तर।उसे और कुरेदना ठीक नहीं लगा।सोचा सीधे सुबोध से ही अलग से बात करनी होगी।रजनी के मन में बहुत उथल-पुथल चल रही थी।

समय देखकर मधु ने सुबोध से इस बारे में बात छेड़ते हुए पूछा” रजनी को राखी में उसके मायके जाना है क्या?पहली राखी होगी उसके लिए।अपने माता-पिता और भाई‌ -बहनों‌ से मिलने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रही है राखी का।तूने क्या कहा है उसे?लेकर जाएगा ना?”

सुबोध आश्चर्य से मधु को देखने लगा और‌ बोला” क्या मम्मी,आप कल की आई रजनी की भावनाओं‌ को इतनी गंभीरता से क्यों ले रहीं‌ हैं?आप खुद कभी जा पाईं हैं अपने मायके राखी या भाई

दूज पर‌। बहुत बार तो हमने दोनों मामा को यहां आकर राखी बंधवाते देखा है।जब आप नहीं जानतीं,तो रजनी कैसे जाएगी?उसे भी अब इस घर की परंपरा को निभाना होगा।मैंने तो समझा दिया है,बस तुम इमोशनल होकर सांत्वना देते हुए जाने को ना कह देना।पापा को अच्छा नहीं लगेगा।” 

बेटे की तर्क शक्ति देखकर सुमन भी अवाक थी।ये ,जो कभी पापा के सामने बैठा भी नहीं होगा अकेले  कभी,आज पापा के नियमों को‌ कंठस्थ कर ताबीज बना लिया।अब यह सारे नियम अपनी बीवी के ऊपर यह कहकर थोपने की कोशिश करेगा कि, मम्मी भी तो मानीं हैं सारी जिंदगी ये नियम। तुम्हें भी मानना चाहिए।

नहीं-नहीं।ससुराल में जब बहू के कुछ दिन ना रहने से कोई गंभीर समस्या नहीं है, तो वो मायके क्यों नहीं जाएंगी? उसके घर वाले भी तो यही अपेक्षा करते होंगे ना ससुराल वालों से, कि जैसे खुद के बेटी-दामाद आतें हैं, हमारे यहां भी हमारे बेटी दामाद को जरूर भेजेंगें।

रात को सोते समय ही पति से इस विषय पर बात छेड़ी सुमन ने”, सुनिए जी , बहू की शादी के बाद की पहली राखी है, उसे सुबोध के साथ दो दिनों के लिए भेज देतें हैं।बहू भी उतावली हो रही है सबसे मिलने के लिए।”,

सुमित तुरंत उठ कर बैठ गए और बोले”तुम औरतों का यही इमोशनल ड्रामा मुझे पसंद नहीं आता।अरे सब ठीक चलता रहता है तभी तुम लोगों को अचानक मायके की याद आने लगती है।भई एक बार शादी हो गई,तो जिम्मेदारी तो इस घर के प्रति ही बढ़नी चाहिए।बहू का कितना ख्याल रखते हैं हम सब।तुम तो सुबोध से ज्यादा उसका ध्यान रखती हो।तो अब मायके जाने के लिए उतावलापन क्यों?ऐसे ही बार-बार मायके की याद आती रही,तो इस घर से जुड़ पाएगी क्या कभी?तुम समझाना उसे।तुम भी तो कभी नहीं गई,तीज त्यौहार में मायके। तुमने ससुराल को अपना घर माना‌ है,ये सब तुम्हें भी मानते हैं।हां जरूरत पड़ने पर मैं खुद लेकर गया हूं तुम्हें,गया हूं कि नहीं ,सच बोलना।”

“हां ,बेशक जब भी मेरे मायके में किसी भी प्रकार की परेशानी या सुखद पल आए, तुम भेजते थे मुझे।सीमा रेखा तय कर दिया करते थे।चौथे दिन में ही आ जाना , नहीं तो मत आना।यही था ना तुम्हारा फेवरिट डॉयलॉग? और मैं भी‌ बेवकूफ बनी‌ उसी दिन वापस आ जाती।आपकी जीत हो जाती।आपका ईगो संतृप्त है जाता।इसे आपने इतनी बार दोहराया है कि आपको लगने लगा, यही नियम है।घर की बहुएं कम समय के लिए मायके जाएं, या ना ही जाएं तो ससुराल में सब व्यवस्थित चलता रहता है।”

अब सुमन की आंखों से गिरने वाले आंसू देख सुमित ने सफाई देनी शुरू कर दी ” मेरा मतलब वो नहीं था।तुम भी तो जिम्मेदार थी, समझदार थी, इसलिए यहां की परेशानी से वाकिफ थी।ऐसे ही अपनी बहू को भी थोड़ा जिम्मेदारी सिखाओ तुम।वो‌ भी समझ जाएगी।”

सुमित की‌ बात खत्म होते ही सुमन ने गंभीर‌ स्वर‌ में कहा” इस बार राखी में ,मैं जाऊंगी अपने मायके।मां कब से रास्ता देख रही है।बीमार भी रहती है।सालों से राखी पोस्ट कर के भेजती आई हूं,इस बार बुढ़ापे में‌ ही‌ सही अपने भाईयों के हांथों‌ में राखी तो मैं अपने हाथों से ही बांधूंगी।मधु को बता दूंगी।सुबोध रजनी को लेकर सीधा वहां पहुंच जाएगा।यदि आना चाहे , तो आ जाएगी कुछ दिनों के लिए।”

सुमित के मुंह से तो आवाज निकलनी बंद हो गई।सुमन ने आगे बात बढ़ाई “मेरे मायके जाने से यहां बाबूजी को लेकर परेशानी हो जाती थी।मां अकेली उन्हें संभाल नहीं पाती थीं, इसलिए मुझे जल्दी लौटना‌ पड़ता।फिर कभी छुटकी (ननद)की डिलीवरी की वजह  से नहीं जा पाई।जाती भी थी,तो आप नए,-नए झूठ बोलकर बुलवा लेते थे।यह सिलसिला कब नियम बन गया आपका पता ही नहीं चला।मैं नहीं चाहती कि,रजनी को इस गंदी राजनीति में धकेला जाए।राखी,भाई-दूज तो है ही त्योहार भाई -बहनों का।दो दिन के लिए बहू बेटी बन जाती है मायके में,यह सुख क्यों छीनना उससे।”,

सुबोध को भी सुमन ने नियम और कानून की वैधता बता दी थी।उसे इस बात की जिम्मेदारी लेना भी सिखाना पड़ा कि ससुराल में जैसे बहू सबकी बेटी बनकर रह रही है,तुम्हें भी ससुराल में दामाद नहीं बेटा बनना होगा।जो मेरे त्योहार होंगें,उसमें तो नहीं जाने दूंगी।”,

रजनी शायद चुपके से सुन रही थी,आकर सीने से लगकर रोने  लगी।,

रोते हुए उसने ऐसी बात कही कि सुमन के मन को ही झिंझोड़ डाला,”मम्मी,आप क्यों नहीं जाती मायके?अब तो नानी जी और नाना जी काफी बूढ़े हो रहें हैं।आपको जोर नहीं देते होंगे अपने यहां आने का,पर क्या आपका मन नहीं कहता कि आप भी एक बेटी हैं,।अपने भाईयों को यहीं बुलवा कर राखी बांधी है आपने।अब भी आपका शरीर चल रहा है।आराम से जा सकती हैं।” 

सुमन की आंखों से बरसों के अवरुद्ध अश्रु बहने लगे।तभी उसने फैसला ले लिया।पति से कर ली ना बात ,मायके जाने की।अपने हिसाब से जिसे तोड़ा -मरोड़ा जाए,वो और कुछ भी हो सकते हैं,नियम नहीं।अब बात उठी मधु को बताने की।मधु के पापा के लिए तो यह बहू बड़ी बात थी कि,बेटी -दामाद घर आएं,और घर में कोई ना रहे।छि छि,कितनी शरम की बात है।अब उसे बताना तो पड़ेगा यहां की योजना के बारे में।

शाम को फोन पर बेटी से बात हुई,तब तो खुशी के मारे कुछ बोला नहीं गया,पर अब तो बोलना ही पड़ेगा।मधु को फोन ख़ुद सुमित ने ही लगाया” गुड्डो,लाडो,इस बार तुम्हारी मां को पता नहीं मायके जाने का भूत पकड़ा है।बोल रहीं हैं”मैं भी किसी की  बेटी हूं। सिर्फ पत्नी,मां ,नानी,सास  बस नहीं।ऊपर से रजनी की भी पहली राखी है,सुबोध को जाना पड़ेगा साथ में।वहां से सीधा तेरे शहर आएंगे,तुझसे मिलने।ठीक है ना बेटा।” 

मधु थी तो सुमन की ही बेटी,मां को फोन लगाकर कहा” ये हुई ना बात मोटिवेशनल गुरू।अपनी बहू के साथ वो सब ना हो,जो तुमने झेला है, इसीलिए बरसों से चली आ रही बंदिशों की कैद तोड़कर आज मुक्त हुई हो।ऑल द बेस्ट मम्मी।वी आर प्राउड टू यू।अच्छा ही होगा,सुबोध और रजनी मेरे पास आ जाएंगें,और तुम जाना अपने मायके पति को लेकर ही जाना।यह भी नियम है ना?भूल तो नहीं गई?रजनी भी एक बेटी है,मैं भी एक बेटी हूं।और हम सब यह कैसे भूल गए कि आप भी एक बेटी हैं।इतने सालों से घर की जिम्मेदारी के चलते,तुमने अपनी इच्छाएं मारी हैं।अब तुम्हें यह पिंजरा बेड़ी मुक्त करने की शुरुआत कर दी है।इस घर में बेटी के लिए कोई नियम नहीं,पर बहूओं के लिए सौ-सौ नियम ।आपने अब अपने बेटी होने का अहसास जिंदा कर लिया मम्मी।,

अब कोई भी नियम बहानों से नहीं मूल्यांकन से बनेंगे।किसी भी बेटी को यह क्यों याद दिलाना पड़े कि वह एक बेटी भी  है।जहां उसने मुक्त आकाश में अपने भाई-बहनों, माता-पिता,के साथ अनगिनत सपने देखें थे।”,

आज सुमन भारहीन महसूस कर रही थी।‌

शुभ्रा बैनर्जी 

#मैं भी तो एक बेटी हूं

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