विजया की भाभी ने जब सुना कि आज विजया के ससुराल वालो को उसकी सास ने आज रात खाना पर बुलाया है तो उसने बहुत हंगामा किया और कहा कि मै खाना नहीं बनाउंगी। इस बात को विजया और उसकी देवरानी ने सुन लिया। यह बात जानने पर उसके पति ने उसे खूब डांटा। विजया और उसकी देवरानी ने बहू की बात सुन ली है
यह सुनकर विजया कि माँ वंदना जी ने अपना सर पीटते हुए कहा – “हाय राम! मेरी तो तकदीर ही फुट गईं जो ऐसी बहू आई” मैंने तो यह सोच कर विजया के ससुराल वालो को खाने पर बुलाया कि अब वे लोग इस शहर को छोड़ कर चले जाएंगे तो अब मिलना मुश्किल ही होगा तो जाते वक़्त तो साथ मिल बैठकर खा पी ले पर अब तो इसके कारण वह भी नही हो पाएगा।
सही बोल रही हो माँ इस औरत को बर्दास्त करना अब बहुत मुश्किल हो रहा है। जब समाज मे सम्मान ही नहीं रहेगा तो इसे क्यों बर्दास्त करेंगे। मै इसे आज ही इसके मायके छोड़ आऊंगा, तब इसका दिमाग़ ठीक होगा। बेटा यह समस्या का सामधान नहीं है, यह कभी नहीं सुधरेगी। अभी हमें यह सोचना है कि अभी क्या करें।
मै तो कहती हूँ कि तुम तुरंत विजया को फोन करके बुलाओ और समझाओ कि रात के खाने पर अपने परिवार के साथ आए। उसकी देवरानी घर पर सबसे कह दें और वे लोग आने से मना कर दें, उसके पहले तुम फोन करके उन्हें बुला लो। अभी वे घर नहीं पहुंची होंगी। माँ, मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि उन्हें किस मुँह से फोन करू. इसने तो हमें कही का नहीं छोड़ा।
इसका भी कुछ सोचेंगे, पर अभी तो विजया को बुलाओ। कुछ खाना बाहर से मंगा लेंगे और कुछ मै बना लुंगी। उनसे कह देंगे कि बहू की तबियत खराब है। आगे तो उसकी देवरानी बाद मे सबको बता ही देगी। अभी वंदना जी अपने बेटे को समझा ही रही थी कि विजया और उसकी देवरानी घर मे घुसे।. घुसते ही देवरानी ने कहा- यह क्या कह रही है माँ?
दो दो बेटियों के रहते खाना बाहर से क्यों आएगा? हम दोनों देवरानी जेठानी मिलकर सब बना लेंगी। मै तो दीदी को यह सोचकर बाहर ले गईं थी कि भाभी की बात सुनकर वे अभी बहुत गुस्सा मे है इस समय यदि हम अंदर गए तो शायद दोनों मे कुछ कहा सुनी हो जाय और कही रिश्ता पूर्णतः ही खराब ना हो जाय। बहन तुम तो बहुत ही समझदार है।
मै क्या करू मेरे तो सर पर यह ओरत आठ वर्ष से पड़ी है उसका तो हमें कुछ इलाज ही नहीं दिखाई देता है। मेरे बच्चो की माँ है, इस घर की इज्जत है, इसलिए इसे सहना पड़ रहा है, पर तुमसे इस बड़े भाई का निवेदन है कि इस बात की चर्चा अपने ससुराल वालो से नहीं करके, इस भाई की इज्जत संभाल लो। हाथ जोड़कर विजय ने विजया की देवरानी से विनती की।
अरे! भैया यह आप क्या कर रहे है?आप हमारे बड़े भाई है।आपका हाथ जोड़ना नहीं बनता है। आप बिल्कुल चिंता नहीं करें, मै घर मे किसी को नहीं बताउंगी और जाने से पहले भाभी का इलाज भी करके जाउंगी। आगे से वे दीदी को हरेक तीज त्यौहार पर विनती करके बुलाएंगी और खूब सारे उपहारो के साथ उन्हें विदा करेंगी।
आप अब चिंता नहीं करें यह आपकी छोटी बहन का आपसे वादा है।मै जो कह रही हूँ वह होगा और आप इसे आज से ही महसूस करेंगे। बड़े ही आत्मविश्वास के साथ विजया की देवरानी ने विजय को आश्वासन दिया। दोनों देवरानी, जेठानी तथा उनकी माँ ने मिलकर सारा खाना बनाया। खाना बन जाने के बाद विजया की देवरानी यह कहकर की अब सभी आते ही होंगे मै जाकर भाभी को भी तैयार होने को कह देती हूँ भाभी के कमरे मे चली गईं।
विजया के ससुराल वालो के आने पर उसकी भाभी घर के बाहर जाकर सभी को सम्मान के साथ घर मे लाई। तुरत ही मिठाई पानी लाकर देते हुए कहा आपलोग पानी पीजिए तब तक मै चाय लाती हूँ, उसके बाद सभी के लिए खाना लगाउंगी। उसने सभी का अच्छा से स्वागत सत्कार किया। सभी उसके व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुए और कहा विजया तुम तो बहुत ही भाग्यशाली हो जो इतनी अच्छी भाभी मिली है।
जाने के पहले भाभी ने विजया की ननद को उलाहना देते हुए विनती किया कि आप राखी मे आती है इसलिए हमारी ननद रानी नहीं आ पाती है, इसलिए आपसे निवेदन है कि आगे से आप अपने भाई को राखी बाँधने के बाद अपने भाई भाभी को भी राखी बाँधने के लिए भेज दीजिएगा।उसकी ननद ने कहा जरूर भाभी, मै तो कहती ही हूँ, पर वे कहती है, भाई को ही बुला लेती हूँ।
कहती है कि कही नन्दोई जी को जाने पर बुरा ना लगे, पर अब आपने कह दिया तो मै जरूर भेज दूंगी। आप जैसी भाभी तो बहुत भाग्य से मिलती है। विजय, विजया और वंदना जी मन ही मन सोच रहे थे कि देवरानी ने क्या जादू कर कि वह एक दो घंटे मे बदल गईं। सबके सामने पूछ भी नहीं सकते थे। उनके जाने के बाद जब भाभी अपने कमरा मे बच्चो को लेकर सोने चली गईं
तो विजय वंदना जी के कमरा मे गया और बोला विजया कि देवरानी को फोन लगाओ और पूछो कि उसने ऐसा क्या कहा जो वह इतना बदल गईं है। जो हम आठ वर्ष मे नहीं कर पाए उसे उसने दस मिनट मे कर दिया। देवरानी ने हँसते हुए कहा, कुछ नहीं भैया। मै इतना तो समझ ही गईं थी कि भाभी को पैसो का लालच बहुत है, तो बस मैंने इतना ही कहा भाभी तैयार हो जाइये और मेरे घरवालों का स्वागत कीजिए
नहीं तो कही ऐसा ना हो जाय कि थोड़ा बचाने के चक्कर मे आपको ज्यादा गवाना पड़ जाय। आज जब हम यहा से गए तो दीदी बहुत गुस्से मे थी और कह रही थी कि आज जब तुम जान ही गईं कि मेरी भाभी कैसी है और तुमसे कल को सब घर वाले भी यह बात जान ही जायगे। अब जब ससुराल मे मायके का सम्मान ही नहीं रहा तो क्या सोचना।
अब मै जायदाद मे हिस्सा के लिए केस करूंगी और अपना हिस्सा लेकर इनसे रिश्ता तोड़ लुंगी। मैंने तो दीदी को डराने के लिए यह भी कहा कि फिर भाभी माँ की सेवा के लिए आपको ले जाने के लिए भी तो कहेंगी। तो उन्होंने कहा इसमें क्या दिक्कत है।माँ का पेंशन आता ही है तो तुम्हारे जेठ जी आपत्ति भी नहीं करेंगे। अब आप सोच लो कभी कभी थोड़ा उपहार और थोड़ा सम्मान दोगी कि जायदात मे हिस्सा।
बस भाभी को अपना नफा नुकसान समझ आ गया। मेरा घर बचाने के लिए धन्यवाद कहकर विजय ने फ़ोन रख दिया। इधर वंदना जी सोच रही थी कि यह भी एक बेटी बहू है जो जेठानी के भी मायके का सम्मान बचाने मे लगी है और एक मेरी फूटी किस्मत जो ऐसी बहू मिली जो रिश्ते भी नफा नुकसान देखकर चला रही है
वाक्य – हाय राम! मेरी तो तकदीर ही फूट गईं जो ऐसी बहू आई
शुभ्रा मिश्रा