मायके सुख (अर्चना सिंह)

“उफ्फ …ये लड़की भी न ! थोड़ी देर हो जाए फोन उठाने में तो लगातार फोन करेगी जब तक उठा न लूँ । रसोई से आकर झूले पर बैठते हुए अनिता जी ने कहा । अनिता जी के पति अरुण जी  चाय की चुस्की लेते हुए बोले…”खाना बनाते हुए तो फोन उठा ही सकती हैं अनिता जी ! ध्यान नहीं दिया मैंने लेकिन शायद रंजू का फोन था । सुबह – सुबह फोन की है तो कुछ जरूरी काम ही रहा होगा ।

“अजी ! आप तो रहने ही दीजिए ।इतना लाडली बनाकर मत रखिये उसे ।तभी तो वो किसी को नहीं समझती है । मुझे पता है कल से गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हुई हैं तो बच्चों के साथ यहाँ आने को बेचैन होगी । गुस्से से तमतमाते हुए अनिता जी ने कहा ।

अब पानी के दो घूँट भरकर अनिता जी ने रंजू को फोन मिलाया तो रंजू बोली…”मम्मी ! कितनी ब्यस्त हो गयी हैं आप भाभी के आने से ।देख रही हूँ दो साल से आपको  ।पहले तो झट फोन उठाती थीं और खुद भी कर लेती थीं । “छोड़ शिकवा शिकायत ! बता कैसे इतनी सुबह फोन किया ? सोच रही थी मम्मी कि टिकट तो मेरे ननदोई जी कन्फर्म करा देंगे तो क्यों न दो दिन बाद आने की प्लानिंग कर लूँ ?

अनिता जी ने प्यार से रंजू को समझाते हुए कहा..बेटा !अभी तो डेढ़ महीने की छुट्टी है न ! आराम से आओ, अपना काम, ससुराल की जरूरत सब देखकर । पीछे से अरुण जी ठिठोली करते हुए बोले…”आ जाओ बेटा ! कब से अपने दोनो नाती चीकू और मीकू को खेलाने के लिए परेशान हूँ । अनिता जी ने कहा..”रंजू ! पापा तो यूँ ही बोलते हैं बेटा, अपनी सुविधा देख समझ लो फिर जब टिकट ले लेना तो फोन करना । इतना ही कहकर अनिता जी फोन रखने वाली थीं तो रंजू ने कहा.”अच्छा मम्मी ! अंजू दीदी से मेरी बात नहीं हुई पिछले एक सप्ताह से, उनके सास- ससुर आए हुए थे वो उनकी शादी की सालगिरह मनाने में ब्यस्त थी फिर उन्होंने फोन नहीं किया । उनका कुछ कार्यक्रम है क्या बनारस (मायके) आने का ।

अनिता जी ने कहा…”वो तेरी तरह नहीं है ।बहुत कुछ सोच समझ कर चलती है । अभी कैसे आएगी? तीन दिन पहले बात हुई तो पता चला उसकी सास को वायरल फीवर हो गया है , उसने अभी नहीं कुछ बताया है आने के लिए ।

मम्मी के मुंह से अपने लिए ऐसी बातें सुनकर रंजू को थोड़ा बुरा लगा पर उसने ठान लिया था कि वो अपनी ननद सुधा दीदी के आने से पहले ही मायके चली जाएगी । अब ठीक है मम्मी टिकट होगा तब बताती हूँ कहकर उसने फोन रख दिया ।

अनिता जी अब छत पर कपड़े डालने चली गईं । अपनी बहू को रसोई में काम करते देख अरुण जी ने कहा…”थोड़ा, शकरपारे, नमकपारे, मठरी और चिवड़ा फ्राई काफी मात्रा में बनाकर रख लो बहू , अभी गर्मी की छुट्टियों में फौज आएगी तो फिर तुम्हें टाइम नहीं मिलेगा । नव्या ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा…”मैं दीदी लोग के आने पर साथ मिलकर बनाउंगी पापा जी ! आप फिक्र मत करिए सब हो जाएगा ।

छत से आकर देखा अनिता जी ने तो मैदे, सूजी चीनी और अन्य सामानों का मेला लगा हुआ था । चौंकते हुए उन्होंने बहू से पूछा…”ये क्या नव्या ? इतना बाजार फैला के रखा है और खाने के समय पर तुम बेल जूस पी रही हो । 

“हाँ मम्मी ! पापा जी ने कहा है…अंजू और रंजू दीदी इसी सप्ताह के अंदर आ जाएंगी तो बना कर रख लो अभी, फिर समय नहीं मिलेगा । उनलोगों के यहाँ ये स्नैक्स सबको बहुत पसंद हैं ।

तो मैंने सोचा खाना आराम से खाऊँगी तब तक जूस पी लूँ । अब जल्दी से जूस खत्म करके नव्या रसोई से बर्तन ही निकालने लगी थी कि अनिता जी ने उसका हाथ पकड़ते हुए बोला…”रुक जा बहू ! इतनी हड़बड़ी मत कर, इनका तो काम ही है बोलना । अंजू रंजू सबको आ जाने दे न फिर मिल के बनाएँगे । इतनी गर्मी में तू अकेले क्यों परेशान होगी ? साल भर का है मुन्ना अभी उसका ध्यान रख । मिल बांट कर काम करेंगे तो आसानी होगी । 

तीन दिन बाद रंजू का फोन आया..”मम्मी ! कल की टिकट हुई है परसों सुबह पहुँच जाएँगे । अनिता जी ने उसकी बात खत्म होते ही कहा…”देखो बेटा तुम आ रही हो ठीक है, क्या तुमने अपनी ननद को पूछा ? उनका भी तो जी करता होगा, हर बार तुम्ही आ जाओगी तो उन्हें अकेले वहाँ अच्छा लगेगा ? 

“मम्मी पापा जी हैं न वहाँ , और इस बार तो उनके भाई कुणाल जी भी रहेंगे , वो हमें पहुँचा के दो दिन बाद निकल लेंगे । रंजू ने सफाई देते हुए कहा । और वैसे भी मायके सुख मुझे भी तो चाहिए । इस बार खूब सारी चीजें बटोर लाऊंगी अचार, बड़ी, पापड़, चिप्स और मठरी गुझिया आदि । 

इतनी लंबी सामानों की सूची सुनकर अनिता जी बोलने लगीं..”ठीक है आ जा पहले । अब अंजू को फोन मिलाया …”हाँ बेटा ! कैसी हो ? कल रंजू आ रही है । तुम्हारा आना कब हो रहा है और सासु माँ की तबियत कैसी है ?

अंजू ने कहा…”अब पहले से काफी ठीक हैं मम्मी ! दो दिन बाद सासु माँ की वापसी की टिकट है फिर घर के सारे बिखरे काम समेट लूँ तो एक सप्ताह के लिए आ जाऊँगी , मेरा तो नजदीक है मुझे टिकट थोड़ी न लेना है ।

अगले दिन नव्या सुबह जल्दी उठकर रंजू , कुणाल जी और बच्चों के मनपसंदीदा एक – एक व्यंजन बना ली , इधर घर की सफाई अनिता जी ने कर लिया ।  नहा धोकर सब तैयार थे और घर बिल्कुल व्यवस्थित था । अरुण जी गाड़ी लेकर जा चुके थे स्टेशन रंजू को लाने । कुछ देर बाद रंजू पति और बच्चों के साथ आ गयी । नव्या ने चाय और बच्चों को शेक परोसते हुए कहा..”अब आप सब लोग नहा धो लीजिए फिर साथ बैठकर नाश्ता करेंगे । रंजू ने नव्या को गले लगाते हुए कहा…”थैंक्यू नव्या भाभी ! मुझे पता है आपने मेरे लिए बैंगन भरवा और बच्चों के लिए पालक पूरी जरूर बनाया होगा और दोनों खिलखिलाकर हँस दी ।

सबने एक साथ टेबल पर नाश्ता किया और तब तक रंजू का भाई शिवम भी वापस आ गया जो किसी काम से दूसरे शहर गया हुआ था । घर में उत्सव सा माहौल लग रहा था । खाने के बाद सब अपने  कमरे में आराम करने लगे । रंजू ने नन्हें भतीजे को गोद मे माँ के पास ले जाकर अपनी ट्रॉली से एक सुंदर सा डिब्बा देते हुए कहा…इसके लिए चेन लायी हूँ मम्मी । अब भतीजे और उसके सारे सामान ले जाकर रंजू ने नव्या को देते हुए पूछा…”मठरी किधर रखी है भाभी ? या फिर एक गुझिया ही खाने दे दो । 

नव्या ने मुन्ने को गोद में लेते हुए कहा…”मम्मी जी ने मना कर दिया था दीदी की सब मिलकर साथ मे बनाएँगे इसलिए नहीं बनाया ।रंजू का मुँह थोड़ा उतरा हुआ सा हो गया । फिर भी उसने कहा..”बड़ी, अचार चिप्स है या वो भी नहीं बना ? पीछे से अनिता जी सारी बातें सुन रही थीं । उन्होंने बहु का पक्ष लेते हुए कहा..”कितने काम वो संभालेगी बेटा ? मैंने ही उसे मना किया कि जब सब आ ही रहे हैं तो काम यूँ हाथों हाथ हो जाएंगे ।और बाकी चीजें तो पहले से बनी हुई हैं । 

“मम्मी ! इस बार मुझे सब थोड़ा ज्यादा चाहिए  ।मेरी ननद सुधा दीदी के यहाँ भिजवाना है । मैंने नहीं बताया कि ये सब आप और भाभी बनाती हैं । उन्हें लगता है सब मैं बनाती हूँ ।

अनिता जी ने कमर पर पल्लू बाँधते हुए रंजू का हाथ पकड़कर कहा…”तुम अपनी झूठी तारीफें बटोर कर क्यों दिखाना चाहती हो बेटा ? अपनी मेहनत के दम पर दूसरों की मदद करो । नहीं आता है बनाना तो सीख लो, लेकिन मैंने तो देखा है तुम्हें बहुत कुछ आता है बनाना सिर्फ आलस करती हो  । अभी तो सब मिलकर बनाएँगे ही न ! वैसे ही तुम अपने घर मे भी बना लेना । कितने बनाते रहेंगे हम दोनों । पहले मुन्ना नहीं था इतने काम नहीं थे । 

अगले दिन कुणाल जी ने गौर किया नव्या भाभी ने ढेरों व्यंजन बनाए थे और चेहरे पर मुस्कुराहट लिए सबको प्यार से परोस रही थीं । कुणाल ने रंजू से खाना खत्म करने के बाद कमरे में जाकर कहा…”खाने का स्वाद तो यहाँ आता है । इतने प्यार  मनुहार से भाभी परोसती हैं कि खाने की इच्छा और बढ़ जाती है । 

गुस्से से रंजू ने कहा..”मैं नहीं बनाती अच्छा खाना क्या ? यहां आकर आपको मेरी ही कमी दिख रही है । कुणाल ने बड़े शांत शब्दों में कहा…”खाना तुम सिर्फ बनाती हो , टेबल पर लगा देती हो । कभी भी सुधा दीदी , जीजा जी और बच्चे आते हैं तो न तुम उनसे बातें करती हो न आव भगत करती हो ।सब बोलते हैं साथ बैठकर खाने तो तुम कमरे में ले जाकर खा लेती हो । यही सब बातें हैं यहाँ की जो तुम्हें अपनी ओर खींचती हैं और तुम आने के लिए उतावली रहती हो । अगर भाभी भी तुम्हारी तरह करने लगें न तो तुम एक दिन नहीं टिक पाओगी ।

पहली बार ऐसा हो रहा था कि रंजू को हर बात में घुटन हो रही थी । वो बच्चों के कमरे में जाकर   मायूस सी लेट गयी , तभी चीकू ने फोन देते हुए कहा…”अंजू मौसी का फोन है । रंजू ने बोला..”कुणाल जी कल निकल रहे हैं दीदी , बच्चे भी याद कर रहे हैं । कब आ रही हो ? अंजू ने मुस्कुराते हुए कहा…आँखें बंद करके बालकनी तक आ मैं आ जाऊँगी और रंजू बालकनी गई तो सामने अंजू दीदी को देखकर पहले तो दंग हुई और फिर खुशी से उछल गई । फिर मम्मी पापा, भाई भाभी बच्चे सब खुशी से झूम उठे ।

सबने बैठकर छत पर ढेर सारी गपशप की और बच्चे आपस मे खेलने लग गए । अंजू की बेटी और बेटा दोनो मिलकर ट्रॉली से कुछ निकालने लगे तो अनिता जी ने कहा..”अभी कुछ मत निकालो बच्चों ! पहले बताओ किसे क्या खाना है ? बच्चों ने झट से आलू पराठा बोला और रंजू ने कहा…”बहुत दिन हो गए कोफ्ते नहीं खाए । आज रोटी कोफ्ते और खीर बननी चाहिए । फिर इस बार तो मठरी , गुझिया, चिप्स अचार सब मुझे खूब सारे चाहिए भाभी ।  उठते हुए नव्या बोली…”आपकी तो फरमाइश ही खत्म नहीं होती दीदी । शिवम ने मुस्कुराते हुए कहा…”रंजू दीदी की फरमाइश तो आ गयी अब आप भी बता दो अंजू दीदी क्या खाना है ? 

हाथ से ना का इशारा करते हुए अंजू बोली ..नहीं भाई ! एक तो भाभी किसी चीज में मदद नहीं चाहती है , खुद ही इतने प्यार से खिलाती है और तो और मेरी फरमाइश पूछ रहे हो ? ,,पेट भर खाना मिल जाता है और सबके साथ हँसी ठिठोली मौज मस्ती हो जाती है । बस और क्या चाहिए ?

रंजू का मुँह देखने लायक़ था । कुणाल जी उसका चेहरा पढ़ने जा रहे थे लेकिन वो बुरी तरह झेंप गई । अब कुणाल जी निकल चुके थे घर के लिए । नव्या रसोई में लग चुकी थी, अंजू  ज़बरदस्ती मदद करने लग गयी । शिवम फिर से बाहर निकल चुका था  । खाना बनाने के बाद अंजू ने भाभी के पसन्द की अमावट, माँ की पसन्द के नमकपारे, पापा की पसन्द के चिवड़ा फ्राई और बच्चों का मनपसंद होममेड चॉकलेट और नारियल लड्डू सब  निकालकर भाभी के हाथ मे सौंप दिया । नव्या खुशी से अंजू के गले लग गयी ।चीकू मीकू ने अपना उपहार मम्मी और नानी को दिखाया   । इधर रंजू अपनी सहेलियों से गपशप करने में लगी थी । 

अरुण जी को नव्या का  इतना काम करना बिल्कुल हजम नहीं हो रहा था तो उन्होंने इशारे से कहा…”भाभी, दीदी के साथ मिलकर हाथ बंटा दे बेटा । रंजू ने फोन काटकर कहा…”क्या पापा ! आप भी बिल्कुल बदल गए हैं, ऐसे तो आराम ही नहीं कर पाऊंगी फिर क्या फायदा आने का । देखा आपने भाभी मुझे एक चीज आर्डर करने पर कैसे सबके सामने सुनाई ? इसी बीच अरुण जी ने रंजू को अपने कमरे में बुलाकर बैठाते हुए कहा…”देख रही हो बेटा ! समय कैसे बदलता है । भाभी तुमसे छोटी है लेकिन बिना शिकवा शिकन लिए तुम सबकी जिम्मेदारी निभाती है ।  तुमने इतने आर्डर किए वो उफ्फ नहीं की और बनाने में लग गई । तुम इस तरह हमेशा आर्डर देती रहोगी तो वो भी इंसान है न । कुछ भी उचित अनुचित बोल सकती है ।तुम्हें भी भाभी से सीखना चाहिए ससुराल में निभाने के तौर तरीके । मुन्ना को माँ संभाली हुई है और वो तुमलोगों के  काम पर इतना ध्यान दे रही है सिर्फ इसलिए कि मायके में उसे पूछने के लिए मम्मी और भाभी कोई नहीं है । वो सर्वस्व तुम्हीं में देख रही है तुम्हें भी उसके एहसासों की कद्र करनी चाहिए । तभी अनिता जी ने आकर कहा…”देखा ! बोलती थी कुछ समझाइए इसे , लेकिन आप मेरी बातों को हवा में उड़ाते थे । 

बच्चे भी आकर वहीं भीड़ जुटा लिए । अब रंजू का गुस्सा सातवें आसमान पार था । अब वो अपने ऊपर इतनी ज्यादती बर्दाश्त नहीं कर सकती थी । उसने गुस्से में बच्चे का सामान और अपना सामान पैक किया और बोलते हुए जाने लगी…”आप भी बिल्कुल बदल गए पापा ! आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी । अंजू नव्या अपने कामों में ही उलझे रह गए और रंजू मेन गेट के पास गाड़ी के लिए खड़ी थी । अंजू के बच्चों ने अपनी मम्मी और मामी को देखने के लिए बुलाया…”देखो मौसी जा रही हैं   समझ ही नहीं पायीं दोनो । अंजू ने मम्मी पापा की शक्ल देखते हुए पूछा…”क..क..क्या हुआ, क्या बात है ? नव्या ने कहा…”रुकिए दीदी ! मुझे बताइए न क्या हुआ  ? अरुण जी ने कहा…”मत रोको बेटा, जाने दो । अब आगे से जब भी आएगी मायके में रहने के लिए थोड़े तौर तरीके सीखकर आएगी  । अभी अपनी ननद सुधा के स्वागत की तैयारी भी करनी है इसे । पापा की ये कड़वी बातें सुनकर रंजू ने मुट्ठी तेज से गुस्से में भींच ली और गाड़ी में बैठकर रवाना हो गयी । सब अवाक देखते रह गए ।

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

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