बहू को रसोई घर मे देखकर वंदना जी ने कहा बहू तुम उठ गईं?सुनो बहू आज रात मैंने विजया के ससुराल वालो को खाने पर बुलाया है। तो ऐसा करना कि खाने मे मटर पनीर, सत्तू की कचौड़ी, खीर सलाद आदि बना लेना। मिठाई मैने विजय से लाने के लिए कह दिया है। हाँ और मै तो यह भूल ही रही थी कि विजया के सास ससुर तला भुना नहीं खाते है तो उनके लिए लौकी की सब्जी छौक देना और रोटी का आटा गुंथ कर रख देना खाते वक़्त गर्म गर्म रोटी सेककर दें देंगे।पनीर तुम बगल के दुकान से जाकर लेती आओ और जाने के पहले मटर और प्याज़ लहसुन मुझे पकड़ाती जाओ।
तुम्हारे आने तक मै छिल काट कर रख दूंगी। इन सब के बाद मै सत्तू का मसाला भी बना दूंगी। वंदना जी अपने ही रौ मे कहे जा रही थी बहू की तरफ उनका ध्यान नहीं था उधर बहू उनकी बात सुनकर चिढ रही थी और तरह तरह के मुँह बनाकर बड़बड़ा रही थी।आए दिन का इनका शगल है बेटी को खाने पर बुला लेना है और बेटे को फोन कर देना है मिठाई लेते आओ। लगता है जैसे समान खरीदने मे पैसे नहीं लगते है। बेटा समान लाएगा और
घर मे एक नौकरानी के रूप मे बहू है ही वह बनाएगी और
बेटी के ससुराल वालो की सेवा टहल करेगी।थोड़ी देर बाद जब बहू ना तो बाजार गईं और नाही कुछ सामान सास को लाकर दिया तो फिर वंदना जी ने कहा क्या हुआ बहू, सुनी नहीं? सामान दें जाओ। सब तैयार करने मे समय लगेगा। हमारे उनके मिलाकर पंद्रह आदमी हो जाएगे। इतने आदमी का खाना बनाने मे समय लगेगा। जल्दी सब निबटा लेंगे तब तो उनके आने पर उनके साथ बैठकर थोड़ा बातचीत भी कर सकेंगे, नहीं तो पता चलेगा कि वे लोग आ गए और हम रसोई ही बना रहे है।
उनके दोबारा कहने पर बहू ने चिल्लाते हुए कहा क्या चिल्ला रही है जब से उठकर आई हूँ तब से लगातार बक बक किये जा रही है। आदमी उठकर आया है चाय पानी पिएगा,लेकिन नहीं इन्हे तो बस बेटी से मतलब है। मुझसे इतने लोगो का खाना नहीं बनेगा। इतना ही शौक है बेटी के ससुराल वालो के साथ डिनर करने का तो सभी किसी रेस्टोरेंट मे जाकर साथ मे खा लेंगे। मुझसे खाना बनाने की उम्मीद नहीं करें। आपने किस से पूछकर उन्हें बुलाया है। आपको पता नहीं है कि मुझे यह सब पसंद नहीं है।
मै इतना काम नहीं कर सकती और हाँ ऐसा नहीं कि अपने बेटे से बिल दिलवाने लगना,विजया को ही पेमेंट करने को बोलना।अभी और पता नहीं बहू और क्या क्या बोलती, तब तक वंदना जी ने टोका यह क्या कह रही हो, तुम्हारी शादी के बाद कब मैंने विजया के घर वालो को बुलाया है। पहले तो साल मे एक बार राखी के दिन विजया आ जाती थी, पर उसमे भी तुम कीच कीच करती थी तो अपनी ननद की शादी के बाद ननद आ रही है कैसे आऊं,यह बहाना करके राखी मे भी उसने आना बंद कर दिया।
तुम्हारे बच्चो के जन्मदिन मे भी वही बाहर खिलाने ले जाती है यह कहकर कि बुआ की तरफ से बच्चो का उपहार है।इधर दोनों सास बहू मे तू तू मै मै हो रही थी तभी विजया और उसकी देवरानी आ गईं और दरवाजा पर ही उनकी बात सुनकर रुक गईं। विजया को समझ ही नहीं आ रहा था कि अपनी देवरानी से क्या कहे। आज देवरानी के सामने उसके मायके की इज्जत उसकी भाभी ने दो कौड़ी का बना दिया था। विजया को तो अपनी भाभी का स्वभाव पता था,
पर उसने अपने ससुराल मे इस बारे मे कुछ नहीं बताया था उन्हें लगता था कि विजया को अपने घर के कामों से फुर्सत नहीं होने के कारण अपने मायके नहीं जाती है। उन्हें क्या पता था कि उसकी भाभी को उसका मायके आना पसंद नहीं है,इसलिए नहीं जाती है।विजया की माँ तो आज भी उन्हें खाने पर नहीं बुलाती, लेकिन विजया के पति ने दूसरे शहर मे नौकरी ज्वाइन कर ली थी,इसलिए अब वे सभी यहाँ से नये शहर मे जा रहे थे। विजया के सास ससुर उसके साथ ही रहते है।.
देवर देवरानी दूसरे जगह रहते है।अब इस शहर को हमेशा के लिए छोड़ कर जाना है यह सोचकर उसके देवर और ननद भी आए थे क्योंकि उनके पापा भी यही नौकरी करते थे उनका बचपन यही गुजरा था फिर विजया के पति भी उसी कम्पनी मे नौकरी करने लगे, इसलिए वे सब बहुत दिनों से यही रह रहे थे। विजया के पापा भी उसी कम्पनी मे काम करते थे तो जान पहचान थी इसलिए उन दोनो का विवाह हो गया।अब जब विजया के पति ने दूसरी जगह काम पकड़ लिया है तो वे भी इस शहर को छोड़कर जा रहे है।
विजया की देवरानी ने कहा कि दीदी इतने लोगो का खाना भाभी अकेले कैसे बनाएंगी हम दोनों पहले से चल चलते है। काम मे भी हाथ बटा देंगे और इसी बहाने उनके साथ थोड़ा ज्यादा देर तक समय गुजार लेंगे। आपका तो मायका है आप आगे भी आएंगी, पर मेरा तो पता नहीं अब कभी आना भी हो पाएगा या नहीं। देवरानी की बात सुनकर विजया को पहले आना पड़ा नहीं तो उसे तो अपनी भाभी का स्वभाव पता ही था। भाई का एक रुपया भी यदि विजया पर खर्च हो तो वह बर्दास्त नहीं करती थी।
भाई राखी मे उनसे छुपाकर कुछ उपहार ले जाता था यदि पता चल जाता था तो घर मे कलह कर देती थी। अब विजया को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। देवरानी ने बात को संभालते हुए कहा दीदी हमलोग तो बच्चो के लिए कुछ उपहार लिए ही नहीं है। ऐसा करते है कि बाजार चल के कुछ ले लेते है फिर आएगे। अभी दोनों बाहर की तरफ मुड़ी ही थी कि सामने से विजय आ रहा था उनको घर से बाहर जाते देखकर बोला कहा चली सब, अंदर चलो। विजया की देवरानी ने कहा भैया,कुछ काम याद आ गया है
वह करके अभी आ रहे है।विजय ने घर मे जाकर माँ से पूछा विजया और उसकी देवरानी कब आए थे और क्यों चले गए। माँ ने आश्चर्य से विजय को देखा और कहा वे कहा आई थी तुमसे किसने उनकी आने की बात कही। मै उनसे बाहर मिला।
अब उसकी माँ को बात समझ आ गईं और उसने बहू की सारी बात विजय को बताते हुए कहा शायद उन्होंने सब सुन लिया है इसलिए चली गईं। यह सुनकर विजय ने अपनी पत्नी को डांटते हुए बोला “अब तो पड़ जाएगी न तुम्हारे कलेज़े मे ठंडक “ आज तक विजया अपने मायके का सम्मान बचाने के लिए यहाँ ना तो कभी आती है और नाही कभी अपने घर के लोगो को लाती है।हमें तो पहले से ही पता है कि किससे कब और क्या बोलना चाहिए इसका तो तुम्हे शहूर ही नहीं है। वह तो आज भी आने को तैयार नहीं थी। हम माँ बेटा के बहुत जिद करके पर वह सपरिवार खाना खाने घर पर आने पर तैयार हुई थी, पर आज तुमने हमारे इतने दिनों के किये कराए पर पानी फेर दिया। आज उसकी देवरानी के सामने तुमने हमारा सम्मान दो कौड़ी का भी नहीं छोड़ा।
वाक्य – अब तो पड़ जाऐगी न तुम्हारे कलेज़े मे ठंडक
लेखिका : शुभ्रा मिश्रा