मायका कभी बूढ़ा नहीं होता – वंदना सिंह

वक्त के साथ सब बदल जाता है,

मा‌ँ–बाप बूढ़े हो जाते हैं पर,

मायका कभी बूढ़ा नहीं होता……

 

बचपन की ज़िद बदल जाती है समझौते में,

न चाहते हुए भी ओढ़ लेती हैं जिम्मेदारियां,

सब कुछ बदल सा जाता है पर

मायका कभी बूढ़ा नहीं होता…..

 

कोमल हाथों के स्पर्श

आज भी वही हैं, बस

झुर्रियों की चादर ओढ़ लेते हैं।

आ‌ँखों में सपने नहीं

अब मोटे चश्मे सजते हैं,

बहुत कुछ बदला पर

मायका कभी बूढ़ा नहीं होता…..

 

पापा की इक आवाज़ पर, दौड़े चले जाते थे

आज उन्ही को कई बार आवाज़ लगाते देखा है।

उनसे कुछ कहने से भी डरते थे,

आज उन्हीं को हरदम डरते देखा है।

बहुत कुछ बदल गया,

पर मायका कभी बूढ़ा नहीं होता…..

 

आज भी वही प्यार,

वही दुलार, सब कुछ वही है।

 बस मा‌ँ के साथ अब भाभी भी खड़ी है।

बहुत कुछ बदला पर मायका कभी बूढ़ा नहीं होता…..

 

बचपन में लड़ने वाला भाई अब,

प्यार से समझाता है।

कोई परेशानी हो तो

मैं साथ हूं ये जताता है।

बहुत कुछ बदला पर

मायका कभी बूढ़ा नहीं होता…..

 

नन्हें कदमों से जिस आ‌ँगन में दौड़ लगाते थे,

आज भतीजे, भतीजी को दौड़ते देखा है।

बेटा, दीदी सुनते थे

अब बुआ होने पर इतराते हैं।

बहुत कुछ बदल गया

पर मायका कभी बूढ़ा नहीं होता…..

 

नम आ‌ँखों से जब लांघनी पड़ती है वो

मायके की दहलीज

खोइंचा लिए खड़े

मां को चुपचाप देखा है।

बड़ी अजीब सी रीत है दुनिया की

अपने ही घर में खुद को पराया होते देखा है।

सब कुछ बदल जाता है पर

मायका कभी बूढ़ा नहीं होता…..

 

ढेरों सपने और दिल में दुआएं लेकर जाते हैं

वापसी में मीठी यादें और आंखों में नमी ले आते हैं।

सब कुछ बदल जाता है पर

मायका कभी बूढ़ा नहीं होता…….

मायका कभी बूढ़ा नहीं होता…..

 

      वंदना सिंह

 

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