मातृत्व का सफर – श्वेता अग्रवाल

शिखा डॉक्टर के चेंबर में बैठी बेसब्री से अपनी रिपोर्ट का इंतजार कर रही थी। बेचैन होकर कभी वह अपने साड़ी के पल्लू को अपनी ऊॅंगली में लपेटती और खोलती तो, कभी अपने माथे पर आए पसीने को पोंछती। कभी अचानक ही चेयर से उठकर  चेंबर में टहलने लगती तो फिर अगले ही पल जाकर चेयर पर बैठ जाती। अब यह इंतजार शिखा से बर्दाश्त नहीं हो रहा था।

डॉक्टर की आते ही वह डॉक्टर की ओर आशा भरी नजरों से देखने लगी। डॉक्टर ने एक बार गहरी नजरों से शिखा की ओर देखा और फिर रिपोर्ट की ओर देखते हुए धीरे से बोली ” सॉरी शिखा, इस बार भी तुम्हारी प्रेगनेंसी रिपोर्ट नेगेटिव है |” डॉक्टर के मुॅंह से यह सुनते ही शिखा खुद को संभाल नहीं पाई और वहीं फूट-फूट कर रो पड़ी | लगातार छठी बार उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी | हर बार पीरियड मिस होने पर उम्मीद की किरण जगती लेकिन, खुशखबरी तक पहुँचने के पहले ही वह बुझ जाती |

शिखा को इस तरह टूट कर बिखरते देख डॉक्टर ने उसे हिम्मत देते हुए कहा “शिखा यू आर अ ब्रेव लेडी, इस तरह नहीं रोते, हिम्मत रखो | ‘Polycystic ovary’ की प्रॉब्लम में ऐसा होता है लेकिन ये curable है | तुम एक दिन जरूर माँ बनोगी |”

“डॉक्टर पिछले चार सालों से मैं यही सब तो सुनती आ रही हूँ | अब तो दवाइयाँ खाते-खाते भी थक चुकी हूँ | न जाने मेरा इंतजार कब खत्म होगा।” शिखा ने रुआँसे शब्दों में कहा और उदास और थके हुए कदमों से चेम्बर के बाहर निकल पड़ी |”

इसी तरह दिन बीतते -बीतते आखिरकार, वह दिन भी आ गया जब शिखा के अंदर मातृत्व की झंकार हुई | इस बार शिखा की प्रेगनेंसी रिपोर्ट पॉजिटिव थी | सबकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था | शिखा भी अपना बहुत ध्यान रख रही थी | वह अपनी प्रेगनेंसी को इंजॉय कर रही थी | कभी आधी रात को

आइसक्रीम खाने लगती तो कभी सुबह-सुबह गोलगप्पे | कभी खट्टा तो कभी मीठा | आज वह डॉक्टर के पास अल्ट्रासाउंड के लिए आई थी | आज उसकी प्रेगनेंसी के पाँच महीने पूरे हो रहे थे।वह और उसका हस्बैंड अंश आज बहुत एक्साइटेड थे |आज डॉक्टर अंश को उसके बेबी से मिलाने वाली थी |

लेकिन, यहाॅं भी बदकिस्मती ने उसका पीछा नहीं छोड़ा, अल्ट्रासाउंड के दौरान ही डॉक्टर को पता चला कि शिखा अपना बच्चा खो चुकी है | इस आघात ने शिखा को अंदर तक तोड़ दिया | वह तो मानो जीना ही भूल, एक जिंदा लाश ही बन गई थी। हमेशा उदास और गुमसुम सी रहने लगी थी, बस अपने आप में गुम।

ऐसे ही दिन बीतते जा रहे थे। एक दिन शिखा बालकनी की सफाई कर रही थी | तभी उसे बालकनी के छज्जे के ऊपर चिड़िया का घोंसला दिखाई दिया जिसे उसने उठा कर फेंक दिया | दूसरे दिन,उसे फिर से उसी जगह घोंसला दिखाई दिया जिसे उसने फिर से उठा कर फेंक दिया | अब तो यह रोज

का ही सिलसिला हो गया | रोज वह फेंकती और रोज ही वहाँ नया घोंसला तैयार मिलता | इसी तरह छह-सात दिन हो गए | ना शिखा घोंसला फेंकना छोड़ती और ना चिड़िया नया घोंसला बनाना | आखिरकार थक, हारकर शिखा ने घोंसला फेंकना ही छोड़ दिया | धीरे-धीरे उस घोसले में चिड़िया ने

बच्चे दिए और बालकनी में चिड़ियों की चहचहाहट गूॅंजने लगी | अब तो वह शिखा कर पसंदीदा कोना बन गया | सुबह शाम शिखा वही चाय पीती | एक दिन चाय पीते पीते उसने सोचा “मैंने कितनी ही बार इसका घोंसला उठाकर बाहर फेंका लेकिन, इसने हार नहीं मानी | जब एक छोटी सी चिड़िया ने हार नहीं मानी तो मैं कैसे जिंदगी से हार सकती हूँ, निराश हो सकती हूँ |”

इस सोच ने शिखा की जिंदगी ही बदल दी | उसके जिंदगी जीने का नजरिया ही बदल दिया | उसने जिंदगी को नए सिरे से जीना शुरु किया |अब वह सुबह शाम योग करती। अपनी हॉबीज के लिए भी

समय निकालती।साथ ही साथ उसने एक प्ले स्कूल भी ज्वाइन कर लिया | छोटे-छोटे बच्चों के साथ खेलना, उनके साथ समय बिताना, उसे बहुत भाता | अब वह बहुत खुश रहने लगी थी | जिंदादिल, जिंदगी से भरपूर |

इसी बीच उसे पता चला कि वह प्रेग्नेंट है| इस बार उसने अपना बहुत ज्यादा ध्यान रखा और भगवान ने उसकी सुन ली।आखिरकार, उसका इंतजार खत्म हुआ और उसने सकुशल जुड़वा बच्चों को जन्म दे,अपने मातृत्व के सफर को पूरा किया |

धन्यवाद

लेखिका- श्वेता अग्रवाल,

धनबाद , झारखंड

कैटिगरी -लेखक /लेखिका बोनस प्रोग्राम (सितंबर माह-सातवीं कहानी)

शीर्षक-मातृत्व का सफर 

Leave a Comment

error: Content is protected !!