मतलबी रिश्ते – स्नेहलता पाण्डेय ‘स्नेह’ : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सविता जी गाँव में अकेले रहती थीं। उनके एक ही बेटा था जो कानपुर में नौकरी करता था अतः बहू रेखा भी वहीं रहती थी।

आज महिनों बाद बेटे-बहू को अपने घर पर देखकर बहुत खुश थीं। दो साल की परी दादी की गोद में जाकर चिपक गई।

सविता जी पोती को लाड़ करने लगीं।

इतने में रेखा जल्दी से किचन में गई और सबके लिये चाय और स्नैक्स बनाकर ले आई।

अरे बहू आते ही रसोई में चली गई आराम कर लेती चाय मैं बना देती।

रेखा – नहीं माँजी मेरे रहते आप काम करें अच्छा नहीं लगता।

सविता जी सोचने लगीं -ये वही रेखा है जो जब मैं कानपुर जाती हूँ चाय बनाकर नहीं देना चाहती है।

सविता देवी जब कानपुर जाती थीं रेखा कोई न कोई बहाना बनाकर  घर के कामों से छुट्टी कर लेती थी।

उन्हें सुबह की चाय भी बहू को देनी पड़ती थी।

रेखा रात का भी खाना बनाती है खाते समय बेटा रवि कहता है कि माँ तुम यहाँ अकेले  ऊब जाती होगी हमारे साथ कानपुर चलो।

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सविता – “नहीं बेटा मुझे यहाँ अच्छा लगता है हमउम्र की सखियों और पड़ोसियों में समय अच्छी तरह कट जाता है वहाँ शहर में फ्लैट में मुझे घुटन होती है। “

रवि -“माँ लेकिन इस उम्र में हम आपको अकेले नहीं छोड़ सकते।”

रेखा – “माँजी आपकी पोती तो है न आपके साथ खेलने के लिये आपको मन बहलाने के लिये और किसी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।”

वे दोनों ज़िद करके सविता देवी को अपने साथ कानपुर ले आते हैं।

 रेखा जी को आश्चर्य हो रहा है कि रेखा उनका बहुत ख्याल रख रही है। आते ही किचन में जाकर चाय नाश्ता बनाकर ले आई रात का खाना भी बनाकर टेबल पर लगा दिया उनका कमरा भी व्यवस्थित कर दिया। उनकी दवा इत्यादि भी पति से कहकर मंगा दिया।

 नई जगह पर सविता जी को देर से नींद आई तो सुबह उनकी देर से आँख खुली। वे वाशरूम से आकर अपने कमरे में चाय की प्रतीक्षा करने लगीं। थोड़ी देर बाद बेटा रवि कमरे में आकर कहता है -” माँ हम आपको सरप्राइज देना चाहते थे। रेखा को जॉब मिल गई है।”

 वो कह रही थी अब तो मैं जॉब करुँगी और घर की ज़िम्मेदारी तो माँ के सुघड़ हाथों में सौंप देंगे।

 आज वो अपना नाश्ता बनाकर  स्कूल चली गई है आप मेरे लिये नाश्ता बना दो उसे आपके हाथ के परांठे बहुत पसंद हैं कल से उसके लिये भी दो परांठे बना दिया करना और परी को क्या -क्या खिलाना है कब नहलाना है सब कुछ डायरी में लिख कर रख गई है आप देख लेना माँ अब इस घर की पूरी जिम्मेदारी आप पर है।

 माँ आहत होकर इस मतलबी रिश्ते के नये रूप को देख रही थी।

स्नेहलता पाण्डेय ‘स्नेह’

नई दिल्ली

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