बात कुछ वर्ष पहले की है, जब प्रीति और राजीव की शादी को कुछ ही समय हुआ था। शादी के बाद दोनों एक नए शहर में आए जहाँ राजीव की नई नौकरी लगी थी। बहुत खोजबीन के बाद उन्हें एक किराये का मकान मिला।
वह एक बड़ा घर था जिसमें ऊपर एक संयुक्त परिवार रहता था—बुज़ुर्ग ‘बाउजी’, उनका बेटा, बहू, पोती जिम्मी और कुछ अन्य सदस्य। नीचे दो हिस्से थे जिनमें से एक प्रीति और राजीव को मिल गया।
घर सादा था—एसी नहीं था, बस एक पुराना कूलर था क्योंकि उस समय तक एसी बहुत आम नहीं थे। जैसे ही घर मिला, दोनों पति-पत्नी ने दो-तीन दिन में सारा सामान सेट कर लिया। कुछ ही दिनों में राजीव अपनी टूरिंग जॉब के चलते बाहर चले गए और प्रीति घर पर अकेली रह गई।
हर सुबह साढ़े पाँच बजे के आसपास, जब उजाला और अंधेरा मिला-जुला होता था, उस वक्त पानी आता था। बाउजी नीचे आते थे ताकि अपने पौधों को पानी दे सकें। साथ ही, वो किरायेदारों के कूलर भी भर दिया करते थे। यह शुरू में एक अच्छी बात लगी।
लेकिन कुछ दिनों बाद, प्रीति को अजीब महसूस होने लगा। उसे ध्यान आया कि जब भी बाउजी सुबह कूलर भरने आते हैं, तो वे जाली की तरफ झुक-झुक कर अंदर झाँकने की कोशिश करते हैं। एक सुबह उसकी नींद अचानक खुल गई। पर्दा हल्की हवा से हिल रहा था और बाहर की रोशनी से कमरा दिखाई दे रहा था। तब उसे महसूस हुआ कि बाउजी उसे देख रहे हैं।
पहले उसने सोचा कि यह उसका भ्रम होगा, लेकिन यह रोज़-रोज़ होने लगा। खासकर तब, जब वह घर में अकेली होती थी। वह दूसरे कमरे में सोने लगी, जहाँ कूलर नहीं था, लेकिन वहाँ की उमस में नींद नहीं आती थी। मजबूरी में वह फिर उसी कमरे में आ जाती। अब उसने नाइट गाउन की जगह सूती नाइट सूट पहनना शुरू कर दिया था।
दिन के उजाले में बाउजी ऐसा नहीं करते थे, शायद उन्हें डर रहता कि कोई देख न ले। लेकिन जब भी प्रीति बाहर जाती या गली में किसी से बात करती, बाउजी अक्सर मिल जाते और उनकी नज़रें असहज कर देती थीं। प्रीति का मन घबरा जाता। वह कई बार बातचीत अधूरी छोड़कर अंदर चली आती।
एक दिन उसने तय कर लिया कि अब चुप नहीं रहेगी। उसने अलार्म लगाया और सवेरे ही उठ गई। जब उसने पर्दा हटाकर देखा तो बाउजी फिर से झांकने की कोशिश कर रहे थे। उसकी नज़रें बाउजी से टकराईं, और वो सकपका गए। तुरंत पौधों को पानी देने लगे, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
जब राजीव टूर से वापस लौटे, तो प्रीति ने सारी बात विस्तार से बताई—कैसे बाउजी झांकते हैं, कैसे वह असहज महसूस करती है। राजीव पहले चौंके लेकिन उन्होंने प्रीति की बात को गंभीरता से लिया और कहा कि इस पर चुप नहीं रह सकते।
राजीव और प्रीति ने तय किया कि पहले ऊपर नीलम भाभी से बात करें। प्रीति ने धीरे से कहा,
“भाभी, बाउजी को लेकर कुछ दिनों से मुझे अजीब लग रहा है… जब वो सुबह टंकी भरते हैं, तो ऐसे देखते हैं जैसे अंदर झांक रहे हों…”
भाभी थोड़ी देर चुप रहीं, फिर बोलीं,
“तुम्हें वहम हो गया है शायद… वो बुज़ुर्ग हैं। आज तक किसी किरायेदार ने कुछ नहीं कहा, तुम पहली हो। वो तो भले इंसान हैं, खुद ही नीचे आकर कूलर भरते हैं। तुम तो अभी नई-नई दुल्हन हो, थोड़ा समय लगेगा। ऐसी बात मत करो।”
प्रीति ने बहस नहीं की लेकिन अब उसने चुप रहना छोड़ दिया था।
अगले दिन कुछ और हुआ—प्रीति नहा रही थी, सिर पर शैम्पू था और तभी पानी चला गया। नहाने के लिए पानी अधूरा था, और वॉशिंग मशीन में कपड़े रुके पड़े थे। वह ऊपर गई और पूछा,
“भाभी, क्या पानी नहीं आया?”
भाभी ने नज़रें चुराकर कहा, “नहीं आया शायद।”
लेकिन उनके गीले बाल और धुले बर्तन कुछ और ही कह रहे थे। नीचे आकर प्रीति ने बगल वाली भाभी से पूछा,
“आपके यहाँ पानी आया था?”
उन्होंने कहा, “हाँ, फुल टंकी भर गई।”
अब प्रीति को यकीन हो गया कि जानबूझकर पानी रोका गया था।
कुछ दिन बाद राजीव दुकान गए जो बाउजी और उनके बेटे की थी। वहाँ बेटे ने कहा,
“अब खाता नहीं चलेगा, जो सामान लेना है अभी के अभी पैसा देना होगा।”
राजीव चौंक गए। बाद में पता चला कि बाउजी ने ही खाता बंद करवा दिया था।
राजीव बोले,
“प्रीति, ये साफ बदले की बात है। अब हमें नया घर ढूँढना होगा।”
प्रीति रो पड़ी,
“कहाँ जाएँगे? शादी का लोन चल रहा है, एडवांस कहाँ से लाएँगे?”
उसने माँ को फोन किया और रोते हुए सब कुछ बताया। माँ ने कहा,
“चिंता मत कर, कुछ पैसे भेज रही हूँ। दूसरा घर देख लो तुरंत।”
राजीव ने अपने दोस्त से बात की। वह बोला,
“तुमने मुझसे पहले क्यों नहीं कहा, मेरे ताया-ताई का कमरा खाली है।”
ताया-ताई बहुत अच्छे लोग थे। वहाँ जाकर प्रीति को पहली बार चैन की साँस मिली।
घर छोड़ने से पहले राजीव ने बाउजी से कहा,
“बाउजी, औरत छोटी-छोटी बातों से बहुत कुछ समझ जाती है। उसका इंट्यूशन ईश्वर का दिया हुआ वरदान है। अगर यही बात आपकी पोती जिम्मी कहती, तो क्या आप भी यही कहते — कुछ नहीं हुआ? हम सिर्फ़ किरायेदार थे, लेकिन इज़्ज़त के साथ जा रहे हैं।”
बाउजी चुप रहे। चेहरा भावशून्य था लेकिन राजीव जान गए कि अंदर कुछ हिला है।
उस दिन प्रीति ने जाना—मर्यादा दीवारों में नहीं, नीयत में होती है।
रिश्ता चाहे किरायेदार और मकान मालिक का हो, उसमें भी सम्मान जरूरी है।
जब एक औरत चुप्पी तोड़ती है, तो वो सिर्फ़ अपने लिए नहीं, हर अगली लड़की के लिए बोलती है।
सखियों,
ये कोई कहानी मात्र नहीं है।
कई बार ये जीवन की सच्चाई होती है।
औरत का स्वाभिमान उसका सबसे कीमती गहना होता है।
प्रीति ने अपनी हिम्मत से ये साबित किया कि डर के आगे सिर्फ़ चुप्पी नहीं, बोलने की ताक़त होनी चाहिए।
आस-पड़ोस की सभी महिलाओं को उसने ये बात बताई—
कि जब भी कुछ असहज लगे, तो चुप न रहें।
दोस्तों ये कहानी कैसी लगी?
इंतज़ार में
ज्योति आहूजा