मन का टूटना – लतिका पल्लवी :  Moral Stories in Hindi

संध्या के जेठ जी जैसे ही अपने कमरे से बाहर आए, बाहर उनका बेसब्री से इंतजार करने वाली संध्या नें उनसे पूछा दीदी की तबियत ठीक नहीं है क्या? कल शाम को तो वो ठीक थी।रात का खाना भी बनाया था।तबियत का क्यों पूछ रही हो? नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। दीदी अभी तक उठी नहीं है इसलिए पूछ रही थी। तबियत ठीक रहने पर क्या कोई ज्यादा देर तक नहीं सो सकता है? कल बहुत रात तक फ़िल्म देख रही थी। वैसे भी आज उसे स्कूल नहीं जाना था तो मैंने ही कहा कि पूरी फ़िल्म देख लो।

कल थोड़ी देर से उठना।जेठ जी यह कहकर सुबह की सैर के लिए चले गए। संध्या अब क्या ही बोलती चुपचाप मन मार कर रसोई मे गईं और झटपट अपने बेटे के लिए नाश्ता बनानें लगी। वैसे ही काफ़ी देर हो गईं थी। संध्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि दीदी क्यों नहीं जगी क्योंकि स्कूल

जाना हो या नहीं जाना हो वह तो एकदम सुबह ही उठती है और नाश्ता बनाती है। पर जब आज सुबह संध्या उठी तो देखा कि जेठानी तो अभी तक जगी ही नहीं है। संध्या को बड़ा आश्चर्य  हुआ, इसलिए वह जेठ जी का इंतजार कर रही थी कि वह जब सैर के लिए निकलेंगे तो उनसे पूछेगी। संध्या को देर

तक सोने की आदत है, पर उसकी जेठानी एकदम सुबह ही उठ जाती है। शादी के कुछ दिनों बाद तक संध्या के देर से उठने की बात पर  उसकी सास बहुत गुस्सा करती थी, पर जेठानी नें समझाया रहने दीजिए माँ अभी नई नई शादी हुई है, काम करने की आदत नहीं है, काम और ऑफिस दोनों को

संभालते संभालते थक जाती है। धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। रात को तो खाना बनाने मे मदद करती ही है। मै तो सुबह स्कूल जाने के लिए उठती ही हूँ और सबका नाश्ता बनाती ही हूँ।जहाँ इतने लोगो का बनाती हूँ वहाँ एक और के लिए बनाने में क्या दिक्कत है। बात एक आदमी की नहीं है बहू, बात अपनी जिम्मेदारी समझने की है।आपकी बात सही है माँ, पर अभी नई है। बाद में देखते है। कहकर जेठानी नें सासु माँ को मना लिया, पर वह बाद कभी नहीं आया।संध्या की देर से उठने की

आदत में बदलाव नहीं हुआ।उसकी जेठानी नें इस पर कभी आपत्ति भी व्यक्त नहीं की।यहाँ तक की संध्या को एक बेटा हो गया, वह स्कूल भी जाने लगा। अब उसका टिफिन बनाने की जिम्मेदारी भी जेठानी की हो गईं। बेटा भी बड़ी माँ से खूब लगाव रखता था। वह जो कहता उसकी बड़ी माँ बना कर

टिफिन मे देती। सासु माँ नें समय समय पर आपत्ति जताई, पर जेठानी नें हर बार कुछ ना कुछ कहकर मना कर दिया कि बच्चा छोटा है, रात भर जगता रहता है जिससे नींद पूरी नहीं होती है, उसे स्कूल भेजनें के लिए तैयार करना होता है। जेठानी को लगता था कि थोड़ा सा काम के लिए घर में

कलह हो या घर टूटे यह सही नहीं होगा।पर आज पता नहीं सुबह  उसकी जेठानी  क्यों नहीं उठी? यह संध्या को समझ नहीं आ रहा था।वह नाश्ता बना रही थी और साथ ही भुनभुना रही थी, पहले कहना चाहिए था, बेटा का आज परीक्षा है नहीं तो छुट्टी ही करा देती।दीदी और उनके बच्चो का तो परीक्षा हो गया, पर अभी इसका बाकी ही रह गया। सुबह सुबह उसे रसोई घर में देखकर उसकी सासु

माँ आई और बोली क्या बात है आज तुम नाश्ता बना रही हो! माँ आप भी ना मुझे ताना देने का कोई मौका नहीं छोड़ती है। एक तो पहले ही देर हो रहा हैऔर अब आपके ताने।दीदी नें बताया भी नहीं कि आज वे बाबू का टिफिन नहीं बना रही है। पता नहीं क्या बात है,ऐसा तो वो कभी नहीं करती है।‘ ताली एक हाथ से नहीं बजती है ’मै समझी नहीं माँ आप क्या कह रही है। वही कह रही हूँ जो सच्चाई है

बड़ी बहू नें तो फिर भी एक हाथ से ताली बजाने की बहुत कोशिश की,पर कोई कितना दिन बर्दास्त कर सकता है। उसने तुम्हे हमेशा छोटी बहन की तरह माना, पर जब वह अपनी माँ की बीमारी में उसने मिलने गईं तो तुमने दश दिनों में ही अपना रंगत दिखा दिया। उसने इतने वर्षो तक तुम्हारा,

तुम्हारे पति और बेटा के लिए नाश्ता, टिफिन सब तैयार किया, पर तुमने उन दश दिनों में उसके बच्चो को या उसके पति को ना तो नाश्ता बना कर दिया और ना ही उनके लिए टिफिन तैयार किया। तुमने उसके इतने दिनों के प्यार का जो सिला दिया है उससे तुम्हारे तरफ से उसका मन टूट चूका है।वह तो बड़ी बहू की अच्छाई है जो वह अभी भी अपने लिए जब बनाती है तो तुमलोगो का भी बना देती है, पर

जब आज उसकी और उसके बच्चो की छुट्टी है तो वह सुबह उठकर तुमलोगो का नाश्ता क्यों बनाए?थोड़ी देर में जगेगी तो अपना और हमारा नाश्ता बनाएगी क्योंकि तुमसे तो हम यह भी उम्मीद नहीं कर सकते कि तुम हमें नाश्ता बना कर दोगी तुम्हारे राज में तो मुझे भी अपना और तुम्हारे ससुर जी का नाश्ता स्वयं बनाना पड़ रहा था। संध्या सोचने लगी दश दिन का आलस्य अब जीवन भर के लिए भारी पड़ गया।

मुहावरा — एक हाथ से ताली नहीं बजती 

लतिका पल्लवी 

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