वसु मेरा खाना यहीं धूप में दे जाना दोबारा यही कहने पर भी जब भीतर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तब सुमित्रा जी भीतर रसोई में पहुंच गईं वहां भी वसु नहीं दिखी।
बहू जी तो नरेन भैया के साथ दुकान गई हैं कमला ने दाल में बघार लगाते हुए कहा तो सुमित्रा जी अचंभित रह गईं।दुकान ले गया है नरेन अपने साथ।वह वसु जो उनके सामने ठीक से बोलना नहीं जानती अब घर से बाहर बिना उन्हें बताए चली गई।हालांकि नरेन की दुकान घर के बगल में ही थी फिर भी नरेन को उनसे पूछना तो चाहिए था। हां अब तो बहू का ही मालिकाना हो जाएगा।अपने अधिकार क्षेत्र की उपेक्षा की तीव्र पीड़ा से उनकी आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया।
वह दिन उन्हें याद आने लगा जब वह वसु को पसंद करने उसके घर गईं थीं।
लज़ीली शर्मीली वसु ने आँखें भी नहीं उठाईं बस अपने झुके हुए सिर को थोड़ा और झुका लिया।
सुमित्रा जी उसकी हर गतिविधि का बहुत गौर से परीक्षण निरीक्षण करती जा रहीं थीं।उनका साक्षात्कार जारी था।
“तुम्हें घर के हर काम तो आते ही होंगे आखिर लड़की हो ये सब तो करना ही पड़ता है प्रश्नों की दुनाली से निकली हर गोली वसु को क्षत विक्षत कर जाती थी।लेकिन बहुत धीरज से वह हर सवाल का मौन जवाब देती जा रही थी।
अभी तो वह मात्र सत्रह साल की ही थी।पढ़ाई करने की अदम्य इच्छा भीतर उफान मार रही थी कि माता पिता ने पांच लड़कियों में सबसे बड़ी होने के कारण यह रिश्ता आते ही बात पक्की कर कोई रस्म करने की जल्दी मचा दी थी।
नरेन सुमित्रा जी का सबसे छोटा पुत्र था ।कितना चाहा उन्होंने की पढ़ लिख ले मगर वही ढाक के तीन पात । तब घर के सामने पड़ी खाली जमीन पर उसके लिए जनरल स्टोर खुलवा दिया था उन्होंने।सुमित्रा जी भी उसके साथ दुकान पर बैठ जाती थीं।पति सुरेन्द्र नाथ की मृत्यु तभी हो गई थी जब नरेन स्कूल में पढ़ रहा था।दोनों बड़े पुत्र पढ़ने में होशियार थे सो उनकी नौकरी पिता के सामने ही लग गई थी।आर्थिक अभाव से घर अछूता था।दोनों पुत्रों ने पिता के जाते ही अपने पसंद की लड़कियों से शादी कर ली, सुमित्रा जी का मंतव्य भी नहीं लिया।जब बेटों को ही मां के मन की परवाह नहीं तो बहुओं को कैसे होती।तीज त्योहारों पर किसी तरह सब इकठ्ठा होते तो सुमित्रा जी सबको खुश रखने के तनाव से ग्रस्त हो जाती किसी को किसी बात का बुरा ना लगे कम कम घर आना जाना चलता रहे बस इसी चिंता में उनकी जिंदगी के पल गुजर रहे थे।
नरेन को मां से बहुत लगाव था।उनका ख्याल रखने के प्रयासों में वह पढ़ाई के प्रति उदासीन होता गया था।शादी ब्याह की तरफ उसका रुझान कभी नहीं रहा और दोनों भाईयों को तो अपनी ही जिंदगी से फुर्सत ना थी।जब किसी ने ध्यान नहीं दिया तब थक हार के सुमित्रा जी ने ही छोटे पुत्र की शादी का बीड़ा खुद उठाया और लड़की की तलाश शुरू कर दी।
वसु की फोटो देख कर ही उनके दिल ने मानो स्वीकृति दे दी थी।नरेन ने तो फोटो देखने से ही इनकार कर दिया।”मां तेरे दो पुत्रों की शादी तो हो ही चुकी है अब इस एक पुत्र की ना भी होगी तो क्या फर्क पड़ना है”कहता वह हंस देता था। उसके तर्कों को वह सदैव काट दिया करतीं थीं कि नहीं किसी को फर्क ना पड़े मेरी बला से मुझेतो बहुत फर्क पड़ता है क्या दुनिया मुझे स्वार्थी ना कहेगी जो मैं तुझसे अपनी सेवा करवाती रहूंगी क्या तू यही चाहता है सारी दुनिया तेरी मां को ताना मारे कहती वह सुबक ही पड़ती थीं।
देख मां तुझे जो करना हो कर बस ये आंसू ना बहाया कर।जो लड़की तू पसंद कर देगी पास कर देगी मैं ब्याह कर लूंगा नरेन भावुक हो कर मां के पास बैठ जाता उसके आंसू पोछने लगता।
आज वसु को देखने उससे मिलने वह नरेन को जिद करके लेकर आईं थीं।
ऐसी ही बहू तो मुझे चाहिए अपने नरेन के लिए जो चुपचाप रहती हो।आज्ञाकारी हो विनम्र हो घरेलू कार्यों में रुचि लेती हो ज्यादा चूं चपड़ ना करती हो मेरी दोनों बड़ी बहुओं के समान अपने पतियों को पल्लू में बांधकर नचाने वाली ना हो मन ही मन सुमित्रा जी विश्लेषण करती जा रहीं थीं। वसु उम्र में नरेन से काफी छोटी है उन्होंने हिसाब लगाया करीब दस साल का अंतर है लेकिन जब नरेन की तरफ देखा तो उन्हें लगा कि अभी तो मेरा बेटा भी बहुत छोटा ही है। मैं भी तो नरेन के पिता से बारह वर्ष छोटी ही थी।सोलह साल में ब्याह भी हो गया था उनका।क्या इस बात से कोई फर्क पड़ा था बिल्कुल नहीं मेरा निबाह तो बहुत अच्छे से हो गया था।नरेन के पिता की इच्छा अनुसार वह हर कार्य करती रहीं उनके जाने के बाद बड़े पुत्र की इच्छानुसार चलती रहीं।नरेन के बियाह में ही उन्हें अपनी बुद्धि लगानी पड़ रही है क्योंकि उसने सब कुछ मां पर ही छोड़ दिया है।
वसु को देख उन्हें यूं महसूस हुआ मानो वसु उनकी ही प्रतिकृति है।
वसु के घरवालों ने सुमित्रा जी की रजामंदी मिलते ही तुरत पंडित को बुला एक रस्म कर दी ताकि रिश्ता पक्का हो जाए कोई अपनी बात से पलट ना जाए।शादी की तारीख एक साल बाद की रखी गई क्योंकि मंझली बहू की डिलीवरी होनी थी।
शादी के बाद वसु ने सब कुछ बहुत अच्छे से संभाला ।सुमित्रा जी की हर बात उसके लिए ब्रह्मवाक्य रहती थी।यहां तक कि दोनों बड़ी बहुओं के साथ भी उसका व्यवहार बहुत मधुर और स्नेहिल रहा।नरेन भी बहुत संतुष्ट था वसु के आने से उसे लगता था कि मां अपनी पसंद की बहू लाई हैं तो अब वह खुश ही रहेंगी।सुमित्रा जी बहुत खुश थीं अपनी पसंद पर।मन ही मन खुद को बधाई देती कि क्या छांट के बहू लाई हूं मैं।
पर ऊपर से कुछ ना कहतीं।कभी भूले से भी वसु की तारीफ ना करतीं ये सोचकर कि इसका दिमाग चढ़ जाएगा।थोड़े दिन तो सब ठीक चला लेकिन धीरे धीरे सुमित्रा जी को संदेह होने लगा कि नरेन ज्यादातर वक्त वसु के साथ बिताने लगा है कई बार तो मां की बात नजरअंदाज कर देता है।अब वह उनसे दुकान पर बैठने को भी नहीं बुलाता बल्कि वसु को अपने साथ ले जाना चाहता है।वसु भी नरेन से बहुत घुल मिल कर बातें करती है जबकि उनके साथ उतना खुल कर बात नहीं करती।अनजाने ही ईर्ष्या की लहर उनके हृदय में डोलने लगी।दोनों बड़े पुत्रों की तरह नरेन से बिछोह की आशंका से आकुल हो वह अलग मंसूबे बनाने लगीं।
अब वह रोज वसु के कामों में कमी ढूंढती रहतीं।तनिक सी गलती पर उसकी लानत मलानत करने लगतीं।नरेन से उसकी बुराई करने का कोई मौका ना छोड़ती।वसु तो वैसे ही चुप रहती थी अचानक सासू मां के हर वक्त के उलाहनो और तानों ने उसे ज्यादा ही खामोश कर दिया।
मां ए मां तूने खाना खाया क्या सोच रही है अचानक नरेन की तेज आवाज से सुमित्रा जी चौंक गईं ।नरेन ने दुकान से आकर उनसे पूछ रहा था वसु उसके बगल में खड़ी थी।सुमित्रा जी आंखों में आंसू भर आए वह फट पड़ी” कितने दिनों बाद तुझे आज मां की सुध आई ब्याह क्या हुआ बीबी क्या आ गई मां को ही भूल गया।”
नरेन स्तब्ध रह गया उसका दिल आहत हो गया मां के इस अप्रत्याशित कटु प्रहार से।
उसी दिन उसने वसु को मायके पहुंचाने का प्रबंध कर दिया।
वसु रोने लगी क्या गलती हो गई मां मुझसे। मैंने क्या किया है ये मुझ से नाराज हैं कहते हैं तुम्हारे कारण मेरा ध्यान मां से हट गया है मेरी मां दुखी हैं।मुझे एक मौका और दे दीजिए मां मैं अब आपका पूरा ध्यान रखूंगी लेकिन जब तक सुमित्रा जी कुछ कहती समझातीं नरेन वसु को लेकर चला गया था।
वसु को छोड़कर घर वापिस आने के बाद से नरेन दिन रात मां के ही पास रहने लगा दोनों वक्त का खाना उनके साथ ही खाता हर वक्त उनका ख्याल रखता।
सुमित्रा जी नरेन के साथ खुश तो रहतीं लेकिन वसु का मासूम चेहरा उनकी आंखों के सामने अक्सर कौंध जाता ।धीरे से एक अपराधबोध उनके भीतर जड़ जमाने लगा।अब उन्हें नरेन की खुशी में अनकही वेदना दिखने लगी उसके कहकहो में अव्यक्त रुदन के स्वर सुनाई पड़ने लगे। वसु का जिक्र करते ही नरेन की भवें चढ़ जातीं वह बात बदल देता ।वह वसु के बारे में बात करना चाहतीं उसे बुलाने की मंत्रणा करना चाहतीं लेकिन नरेन हाथ ना रखने देता।
अपराध बोध की घनीभूत पीड़ा ने सुमित्रा जी को बीमार कर दिया।दिल का दर्द किसी से ना कह सकने की विवशता और दर्द के समाधान की दिशाहीनता असहायता से उन्होंने खाट पकड़ ली।तबियत ज्यादा बिगड़ी तो नरेन घबरा गया भाई भाभियों के असहयोग से विकल हो गया।सुमित्रा जी वसु को बुलाने का जोर देने लगीं।
अंततः एक दिन नरेन वसु को लिवाने उसके घर पहुंच गया। देखा तो वसु सूख कर कांटा हो गई थी। घरवालों के समाज के तानों ने उसे अधमरा कर दिया था।नरेन को अकस्मात आया देख वह बौरा गई।रास्ते भर दोनों खामोश ही रहे।वसु समझ नहीं पा रही थी अचानक नरेन लिवाने कैसे आ गए।
घर में घुसते ही दरवाजे पर सुमित्रा जी उसे दिखाई नहीं दी।
अन्दर से भी उनकी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी।प्रश्नवाचक नजरों से नरेन की तरफ देखते ही नरेन ने आंसू भरी आंखों से भीतर के कमरे की तरफ इशारा कर दिया।वसु के तो पैर ही जम गए जब उसने सुमित्रा जी को इस हाल में बिस्तर पर देखा।
मां क्या हुआ आपको कहती वह उनके पैरों पर झुकती चली गई।
कौन है वसु है क्या तू आ गई बेटी।मुझे माफ कर दे।अब यहां से मत जाना।नरेन मुझे एक मौका और दे दे अपनी गलती सुधारने का।मै तेरे प्रति स्वार्थी हो गई थी।तुझ पर अपना मालिकाना समझने लगी थी।बेटे को बहू के साथ बंटता हुआ नहीं देख पा रही थी।तेरे और वसु की बढ़ती आत्मीयता को अपने लिए खतरा समझ रही थी।भूल गई थी कि जो बेटा मां के कहने पर ही शादी किया वह मां की पसंद को अपनी पसंद बनाना भी मां के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन ही समझ रहा था।भूल गई थी कि वसु उसकी पत्नी भी है उसका भी मालिकाना है सिर्फ मेरी बहू नहीं है। मैंने अपने नरेन का दिल तोड़ दिया अब तू आ गई है मुझे भूल सुधार का एक मौका दे दो मरने से पहले सुमित्रा जी वसु को कलेजे से यूं लिपटाए जा रहीं थीं मानो वह फिर हाथ छुड़ाकर चली ना जाए।
वसु तो व्याकुल हो गई।इतने दिनों के बिछोह और अपमान की पीड़ा मां से मिलते ही पिघल कर वेग से बह निकली।सुमित्रा जी के घुटते संताप से मानो उसका संताप एकाकार हो उठा था।
नरेन मां से आकर लिपट गया नहीं मां तुझे कुछ नहीं होगा तेरी कोई गलती नहीं है सारी गलती मेरी है मैं तुझे समझ नहीं पाया। वसु तुम भी मुझे माफ कर दो ।तुम्हारा सबसे बड़ा अपराधी तो मैं हूं। मैं भी तुम्हारे ऊपर अपना मालिकाना समझने लगा था।जब जैसा चाहा तुमसे करवा दिया।तुम्हारे बिना मुझसे कोई काम ठीक से नहीं हो पाया। अब हम दोनों मिल कर मां की सेवा करेंगे और मां को ठीक कर देंगे नरेन भी रो रहा था मां भी रो रही थी और वसु भी।लेकिन आज तीनों ने एक दूसरे पर हक को और उस हक के दायरे को भी समझ लिया था।वे अब कभी भी नहीं रोने के लिए रो रहे थे।
लेखिका : लतिका श्रीवास्तव