शुभा फोन है सिया का रोहित ने किचेन में मोबाईल ला के दिया… सिया खुशी से चहकती शुभा से बातें करने लगी…
शादी के बाद सिया अपना पहला वट सावित्री व्रत करने मायके आ रही थी और मनुहार कर रही थी बुआ तुम आओ ना साथ में व्रत करेंगे खूब मजा आयेगा… शुभा सिया की बात टाल नहीं पाई…
पर मायके में हुए कटु अनुभव ने मन में उदासी ला दी…
दो भाईयों की इकलौती बहन थी शुभा.. मां बाबूजी का प्यार दुलार खूब मिलता था… बड़ा भाई मानस और छोटा भाई मनोज दोनो शुभा को बहुत मानते थे… पीजी करते करते रिश्ते की बात चलने लगी .
बैंक पीओ रोहित देखने में स्मार्ट मृदुभाषी और अच्छे परिवार से थे बाबूजी के दोस्त ने रिश्ता सुझाया था… सबको रोहित पहली नजर में हीं भा गए..
सगाई फिर शादी खूब धूमधाम से संपन्न हो गई.. दोनो भाई शुभा से लिपट कर रो रहे थे देखने वालों की आंखें भी नम हो गई थी…
शुभा अपने ससुराल में बहुत खुश थी..
मायके जाती तो मां साथ में बाजार ले कर जाती और मनुहार कर शुभा के पसंद के कपड़े चूड़ियां वगैरह ढेरों उपहार खरीदती शुभा लाख मना करती पर मां मानने वाली कहां थी. मां बेटी खाते पीते मस्ती करते बाजार से लौटती…
जितने दिन रहती पसंद के खाने बनाती… कैसे चहल पहल में दिन बीत जाते..
दो साल बीतते बीतते शुभा बेटे शुभ की मां बन गई…
मां छठी में बाबूजी और भाइयों के साथ नाती के लिए ढेरों उपहार लेकर आई.. हाथ से बने स्वेटर बच्चे की सुलाने के लिए फलिया (पतले पतले गद्दे) सोने का चेन और भी बहुत से उपहार…
मायके जाती तो शुभ के साथ खेलने के लालच में मां बाबूजी और दोनो भाई एक दिन और एक दिन और कर रोक लेते.. शुभा को भी अच्छा लगता बच्चे से निश्चिंत खूब सोती और सहेलियों के घर घूमती सिनेमा देखती ..
बहुत अच्छे से दिन बीत रहे थे…
शुभा दुबारा मां बनने वाली थी कि अचानक बाबूजी हार्ट अटैक के कारण असमय चल बसे ..
मां बिल्कुल शॉक्ड हो गई… शुभा को बेटी हुई…
पर मायके से रस्म के नाम पर छोटा भाई आया…
मानस की नौकरी लग गई थी… बाबूजी के गए तीन साल बीत चुके थे.. रिश्ते की बात चल रही थी…
निधि भाभी बनके हमारे घर में आ गई… मां अब पहले जैसी नहीं रही . उदासीन हो गई थी अपनी गृहस्थी से… निधि भाभी ने धीरे धीरे बागडोर अपने हाथों में ले ली… दो साल बीतते बीतते मनोज की भी शादी हो गई.. दीप्ति। बहु बन के हमारे घर में आ गई…
मायके में मेरा कमरा निधि भाभी का स्टोर रूम बन चुका था… जाने पर मां के कमरे में हीं समान रखा जाता उसी कमरे में मैं रहती.
. मां को अच्छा खासा पेंशन मिलता था.. दोनो भाइयों की भी आमदनी बहुत अच्छी थी… पर कुछ समय बाद मां का एटीएम दोनो भाइयों के कब्जे में आ गया… मां कुछ नही बोल पाई.. आखिर बुढ़ापा उन्ही के सहारे कटना था… शुभा मायके जाना कम कर दिया.
पर मां और मायके का मोह खींच हीं लाता… निधि भाभी दो बच्चों की मां बन गई थी और दीप्ति को भी एक बेटा था…
जब कभी मायके जाती भाभी और दीप्ति आपस में राय मशवरा कर सस्ती सी लेनदेन में मिली साड़ी पकड़ा देती भैया बड़े शौक से लाये हैं आपके लिए पहनिएगा जरूर… क्या बोलती शुभा कामवाली भी ये साड़ियां अब नही लेती… मां चुपचाप सब देखते रहती… बेटियों को मायके से थोड़ा प्यार मान सम्मान और पांच गज के वस्त्र के अलावा और कोई आस नही होती मायके हमेशा भरा पूरा और आबाद रहे यही दुआ मांगती है.. सारा धन संपत्ति भाइयों के लिए हीं होता है पर सब भी सभी बेटियों के नसीब में कहां होता है… और एक दिन मां भी चल बसी..
तेरहवीं से लौटते वक्त कितना बिलख बिलख कर रो उठी.. आज ये मजबूत कड़ी जो मायके आने के लिए विवश कर देती थी टूट गई… रोहित ने मुझे संभाला…
लंबे अरसे बाद सिया की शादी में गई… सिया की शादी देखकर मुझे अपनी शादी याद आ गई.. बाबूजी और दोनो भाइयों ने कितने शौक से मेरी शादी का इंतजाम किया था.. आज सिया का भाई और पिता वैसे हीं लगे हुए थे…
शादी में भाभी और दीप्ति का व्यवहार भैया और मनोज की चुप्पी मुझे आहत कर गई… मेरी आंखे भर आई जिसे मैंने चुपके से पोंछ डाला कोई देख लिया तो…# क्योंकि मैं भी तो एक बेटी हूं # सिया विदाई के वक्त मुझसे लिपट के खूब रोई.. मैने खुश रहने के अलावा मन हीं मन ये भी आशीर्वाद दिया की मायके में तुम्हारा प्यार दुलार मान सम्मान हमेशा बना रहे मेरे साथ जो हो रहा है तुम्हारे साथ ना हो..
इतना बड़ा घर होते हुए भी मैं पूरी शादी अतिथि कक्ष में अतिथियों के साथ कमरा शेयर किया.. भाभी और दीप्ति के मायके वालों के लिए उपर अलग कमरे में सारा व्यवस्था था… और उस घर की बेटी शुभा ओह….
आज सिया के मनुहार ने शुभा को विवश कर दिया फिर मायके जाने के लिए.. अपनी पूरी तैयारी के साथ गई शुभा नई साड़ी चूड़ियां पंखे हाथ मे मेंहदी लगवाई.. रोहित को भी दो दिन के लिए ले गई जबरदस्ती…
भाभी और दीप्ति को कोई खुशी नहीं हुई शुभा को देखकर.. बेटी दामाद के स्वागत में तल्लीन थी.. सिया गले लग गई.. बुआ मेरी अच्छी बुआ प्यारी बुआ..
त्योहार के दिन भाभी ने सिया के लिए पीला और लाल कांबिनेशन की कांजीवरम साड़ी दामाद के लिए सिल्क का कुर्ता पायजामा सब रेडी करवा के रखा था.. और शुभा के लिए साधारण सी सिंथेटिक साड़ी पहन के पूजा कर लीजिए.. शुभा ने कहा मैं सब रेडी कर के लाई हूं…
कल को भगवान ना करे की सिया के साथ भी वही हो जो मेरे साथ आज हो रहा है…
और शुभा ने निर्णय लिया की एक दो कमरे का फ्लैट मायके में बेटी के लिए भी मुझे तैयार रखना है.. और उसके नाम से कुछ पैसे भी.. आज भाई बहन में इतना प्यार है कल न जाने क्या हो!
शुभा निर्णय ले चुकी थी बेटी और बेटे की शादी से पहले मुझे ये काम कर लेना है.. कल मेरी बेटी मायके आए तो उसका सामान और वो इस कमरे से उस कमरे तक ठिकाना नहीं ढूढें . स्थाई जगह हो उसका… वो भी तो उसी घर का एक अभिन्न अटूट हिस्सा है… और शुभा के होठों पर मुस्कुराहट आ गई…
❤️🙏✍️
Veena singh..