मैं असहाय नहीं हूं.. – आराधना श्रीवास्तव

चटाक की आवाज के साथ कान सुन्न हो गए, रवीना अपलक सिद्धार्थ को देखती रह गई थोड़ी देर तक उनकी उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था सिद्धार्थ ने आखिर तमाचा क्यों मारा।

 वह तो सिद्धार्थ के इशारे की कठपुतली है जब चाहा जैसा चाहा वैसा घुमाया आज तक केवल उसकी जरूरत के बारे में ही तो सोचा सुबह 5:00 बजे अलार्म के साथ दिनचर्या शुरू होती है बस सिद्धार्थ का नाश्ता,  टिफिन  ङीनर और धूले एवं प्रेस किए हुए कपड़े, टाई, बेल्ट  रूमाल हर चीज सुनिश्चित स्थान पर रखना।

 सुबह से लेकर हर रात के सोते समय तक केवल उसी की जरूरत तो पूरी की है।

 उसको साड़ी पसंद है सूट एवं मैक्सी बिल्कुल नहीं पसंद है तो विवाह के बाद कभी सूट एवं मैक्सी को कभी हाथ तक नहीं लगाया, जबकि फिटिंग सूट पहनना हल्के ज्वेलरी के साथ  हल्का मेकअप करना उसे काफी अच्छा लगता था किंतु सिद्धार्थ की खुशी के लिए उसने सब कुछ त्याग दिया। 

 उसका बाहर जाकर नौकरी करना सिद्धार्थ को पसंद नहीं था तो उसने  दिल पर पत्थर रखकर वह भी स्वीकार कर लिया , फिर ऐसी क्या कमी रह गई कि वह छोटी-छोटी बात पर चिड़चिड़ाता है और आए दिन किसी न किसी बात को लेकर हाथ उठा देता है ।

यह शरीर पर चोट नहीं लगती बल्कि आत्म पर लगती है आंखों से आंसू नहीं बल्कि दिल रोता है।

 लेकिन अब वह और ज्यादतियां बर्दाश्त नहीं कर सकती वह अब दिखाएंगी कि..” वह असहाय नहीं है”l

 रवीना ने ठान लिया अब वह अपने बलबूते कुछ ना कुछ जरूर करेगी, उम्र हरा नहीं सकती ।

उसने ज्वेलरी मेकिंग बिजनेस जॉइन किया क्योंकि उसे शुरू से ही तरह-तरह की आर्टिफिशियल ज्वेलरी पहनना अच्छा लगता था

 अतः उसका इस तरफ काफी रुझान था ।

जरूरत थी एक अच्छे प्लेटफार्म मिलने की जल्द ही उसने ज्वेलरी मेकिंग कोर्स ज्वाइन कर लिया, जब सिद्धार्थ घर के बाहर रहता तो वह  उस समय का सदुपयोग कर  मोबाइल ऐप से ज्वेलरी सिखती धीरे-धीरे रवीना परफेक्शन के साथ ज्वेलरी बनाने लगी ।

तरह-तरह के रंग एवं डिजाइन का प्रयोग कर सुंदर ज्वेलरी बनाती इनफ्लुएंसर एवं इंस्टाग्राम रील से ज्वेलरी बिजनेस दिन प्रतिदिन अपना बाजार पकड़ने लगी ।

शुरुआत के दिनों में एक दो ही ऑर्डर आते किंतु धीरे-धीरे बाजार में पकड़ बनती जा रही थी लोग तरह-तरह की डिजाइन भेज रवीना से ज्वेलरी बनवाते जैसे कुंदन ज्वेलरी, मंगलसूत्र,  फ्लावर ज्वैलरी, ब्रास जवैलरी आदि।

अक्सर शादियों एवं नवरात्रि के समय लाखों रुपए की ज्वेलरी सेल हो जाती।

 अब उसकी खुद अपनी पहचान थी उसने धीरे-धीरे अपनी जैसी कितनी महिलाओं को ज्वेलरी सीखा आत्मनिर्भर बनाया, क्योंकि वह जानती थी…” समाज मे अभी भी बहुत सी महिलाएं शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना झेल रही है अगर वह आत्मनिर्भर बनती है तो उन्हें ऐसी परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा, उनकी अपनी पहचान होगी, वे सम्मान से सिर उठाकर जी सकेंगी  किसी की मोहताज नहीं रहेंगी।

 धीरे-धीरे रवीना “विख्यात ज्वैलरी ब्रांड एंबेसडर’ बन गई उसके अपने ज्वेलरी शोरुम खुल गए लाखों का टर्नओवर होने लगा।

 सिद्धार्थ  खुद को रविना के आगे बौना महसूस कर रहा था। उसे अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी ।

आज उसे समझ में आ रहा था महिलाएं अपने प्यार, 

  पति,  बच्चे के लिए सब कुछ सहती है उनकी जिंदगी तो इसी परिवार के इर्द-गिर्द सिमटी रहती है उन्हें कमजोर समझना मूर्खता है ।

जिस दिन वे ठान ले,अपने आप पर आ जाए वह सब कुछ कर दिखाती हैं ।

शायद ! रवीना ने भी प्रमाणित कर दिया था कि …

“वह असहाय नहीं है”। 

स्वरचित 

आराधना श्रीवास्तव

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