लतिका! मासी जी आई है, चाय नाश्ता लेकर आना। आशा जी ने अपनी बहू लतिका को आवाज़ लगाई। थोड़ी ही देर बाद, लतिका चाय और नमकीन लेकर आती है, जिसे देखकर आशा जी कहती हैं, यह क्या बस नमकीन? पकौड़े ही तल लेती? पर उसमें तो मेहनत लगती है, तो फिर कामचोरी कैसे हो पाती? यह कहने के बाद, थोड़ी देर में ही वह हँस कर अपनी बहन से कहती है, अरे मैं तो ऐसे ही मज़ाक करती हूं अपनी बहू के साथ, क्यों बहू बुरा तो नहीं मान लिया ना? वैसे पकौड़े बनती तो अच्छा ही होता।
लतिका: पर मम्मी जी! उसमें तो काफी समय लग जाता है, मासी जी को कब तक चाय के लिए इंतजार करवाती? इसलिए यही समझ आया।
आशा जी: अच्छा तो कौन सा मासी जी हड़बड़ी में है? तू तो बस कामचोरी के बहाने ढूंढती हैं, यह कहते हुए वह अपनी बहन से कहने लगी, के बताओ जीजी एक हमारा ज़माना था, मेहमान के लिए जो भी करें वह कम ही होता था और एक आज का ज़माना है।
लतिका यह सारी बातें सुनते हुए रसोई में चली गई। इससे पहले भी कई बार आशा जी ने उसे ऐसे ही ताने मारे हैं, जबकि वह हर संभव प्रयास करती थी घर को संभालने की। वह झगड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि आशा जी हर ताने के बाद कहती थी, कि वह मज़ाक कर रही है, पर लतिका खूब जानती थी कि मज़ाक के आड़ में आशा जी अपनी भड़ास निकालती थी। एक दिन की बात है लतिका ने अभी-अभी रसोई खत्म ही किया था, कि आशा जी उससे कहती है, क्या बनाया है खाने में?
लतिका: दाल, चावल, आलू परवल की सब्जी और रायता
आशा जी: और पापड़? पापड़ नहीं तले?
लतिका: नहीं मम्मी जी! आपको तले खाने से परहेज करना है ना? इसलिए नहीं बनाया, क्योंकि मैं जानती हूं अगर मैं पापड़ तलूंगी तो आप जरूर खाएंगी।
आशा जी: परहेज़? और कौन करवाएगा तुम? तुम मेरी बहू हो अम्मा बनने की कोशिश मत करो। जब आशा जी यह सब कह ही रही होती है, तब वहां उनके घर काम करने वाली पूजा खड़ी मुस्कुरा रही थी, जिसे देख लतिका आशा जी से कहती है, मम्मी जी! कम से कम कुछ बोलने से पहले देख तो लीजिए कि किसके सामने क्या बोल रही है? ऐसे आप पूजा के सामने कहेंगी तो वह चार घरों में जाकर बताएगी, तो हमारी ही बदनामी होगी ना? आपको क्या अच्छा लगेगा?
आशा जी: अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी, मेरी इस मज़ाकिया आदत से पूजा भी वाकिफ है और वह किससे क्या कहती है? इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं किसी के लिए अपनी आदत नहीं बदल पाऊंगी। यह कहकर आशा जी वहां से चली गई, पर इस बार लतिका को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई। पहले तो वह घर वालों के सामने ताने मारती थी, पर अब तो बाहर वालों के सामने भी ऐसी हरकतें कर रही थी। अगर इन्हें अभी ना रोका, तो बाद में यह मुझ पर ही भारी पड़ेगा। यही वह बैठे-बैठे सोच रही थी, तभी उसके पास एक अच्छा मौका भी आ गया।
आशा जी आकर लतिका से कहती है, लतिका! कल मेरी किटी है, तो कुछ सामान बाहर से मंगवा लेंगे और कुछ तुम बना लेना। हर बार की तरह मेरी किटी ही सबसे अच्छी होनी चाहिए। तुम पनीर के पकौड़े, पुरिया और मूंग दाल का हलवा बना लेना, बाकी बाहर से दाल मखनी और गुलाब जामुन मैं मंगवा लूंगी।
लतिका: जी मम्मी जी हो जाएगा, अगली सुबह लतिका ने तैयारी शुरू कर दी और इधर आशा जी अपनी तैयारी में लगी हुई थी। बीच में एक बार वह रसोई में गई तो देखा लतिका पुरी के लिए आटा लगा रही थी और एक तरफ पनीर के पकौड़े की तैयारी भी की हुई थी। यह देखकर आशा जी बड़ी खुश होती है। फिर कई सारे औरतें आती है, तो सबसे पहले कोल्ड ड्रिंक लेकर लतिका आती है और उसके थोड़ी ही देर बाद लतिका पनीर के पकौड़े लेकर आ जाती है। पकोड़े रखते वक्त लतिका सबके सामने कहती है, मम्मी जी! यह लीजिए पकौड़े खाइए और कुछ ज़रूरत हो तो मुझे बिल्कुल ना बुलाए। सारी तैयारियां रसोई में रखी हुई है जाकर खुद बना लीजिएगा। पर मुझे मत तंग कीजिएगा। यह सुनकर तो आशा जी के साथ-साथ वहां बैठी सभी औरतें हैरान हो जाती है। तभी लतिका जोर से हँसते हुए कहती है, मैं तो मजाक कर रही थी, आप सबको पता नहीं हम दोनों में हमेशा ही ऐसा मज़ाक चलता है, क्यों मम्मी जी बुरा तो मन नहीं लिया ना? वैसे इतना खाना मैं अकेले नहीं बना सकती, आप भी चलिए मेरी मदद करने, तो जल्दी भी हो जाएगा।
आशा जी तो मानो काटो तो खून नहीं, ऐसे सन्न सी खड़ी थी और फिर चुपचाप लतिका के पीछे-पीछे रसोई में जाकर कहती है, यह सब बाहर क्या था लतिका? मज़ाक हर जगह नहीं होता। तुम तो रिश्तो की मर्यादा ही भूल गई। यह जो तुमने किया अब यह हर घर में जाकर ढिंढोरा पीट कर कहेंगी के आशा की बहू उस पर हुकुम चलाती है।
लतिका: पर मम्मी जी, आपको तो किसी के कुछ सोचने से कोई फर्क नहीं पड़ता ना?
आशा जी: क्या कहना चाहती हो तुम?
लतिका: बस यही कहना चाहती हूं कि आपको भी समझना चाहिए कि हर रिश्ते की मर्यादा होती है और मर्यादा सभी के लिए होती है। जिस तरह आज आपको मेरा मज़ाक बुरा लगा, उसी तरह आपका मज़ाक भी मुझे हर वक्त चुभता है, मैं कहती तो आप कहती है, मैं तो ऐसे ही हूं, बस इसीलिए आज आपको करके दिखाना पड़ा कि आपको बदलना ज़रूरी है।
आशा जी अब चुप थी, फिर थोड़ी देर बाद वह कहती थी, समझ आ गया बहू तुम क्या समझाना चाह रही हो! मैं अपनी भड़ास निकालने के लिए हमेशा मज़ाक का सहारा लेती थी, क्योंकि मैं बिना क्लेश किए अपनी बात तुझसे मनवाना चाहती थी, पर मुझे क्या पता था कलेश तो तब भी हो रहा था, पर तेरे अंदर। माफ कर दे बहू अब से ऐसा नहीं होगा। पर एक बात कहूं तूने आज यह सब मुझे सबक सिखाने के लिए किया है यह जानकर दिल को थोड़ी ठंडक मिली, मैं तो डर ही गई थी कि कहीं तू यह सच में तो नहीं कर रही है ना?
लतिका: और एक बात मैं कहूं मम्मी जी! मैंने भी मज़ाक की आड़ अपनी काफी दिनों की पुरानी भड़ास ही निकाला आप पर, दिल को बड़ी ठंडक मिली। सच में अब से आपकी कोई बात नहीं सुनूंगी मैं, चलिए पुरिया बेल दीजिए मैं तल दूंगी।
आशा जी: क्या?
लतिका फिर से हँसते हुए कहती है, मम्मी जी मज़ाक था, पुरिया तैयार है वह देखिए, यह तो एक्स्ट्रा आटा था जो आपको सबक सिखाने के लिए बेलवाने के लिए रखा था। फिर दोनों एक साथ मिलकर हँसने लगती है।
दोस्तों हर रिश्ते की एक मर्यादा होती है, जो अगर पार करने लगे तो कलेश होना तय है, मर्यादा में रहकर हम हर एक रिश्ते को ना ही सिर्फ निभाएंगे, बल्कि उसे जिएंगे भी।
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
#रिश्तो की मर्यादा