“ अरे वाह शुभ्रा मैडम, आज तो आप गज़ब ढ़ाह रही है, क्या मैचिंग है आपकी, और ये बालों में गज़रा, ओह माई गाड, काश कि मैं लड़का होती और हम कुछ साल पहले मिले होते” अखिला ने शुभ्रा को देखकर कहा।
“ तुम भी ना अखिला”, शुभ्रा ने कुछ शरमाते हुए कहा। सच में, मैं कभी झूठ नहीं बोलती, आप हो ही इतनी प्यारी । आप दोनों की जोड़ी यूं ही सलामत रहे।ये कह कर अखिला उन्हें बैठने का इशारा करके अन्य मेहमानों की और बढ़ गई।
दरअसल आज अखिला की बेटी नयना की सगाई थी तो उसने कुछ खास लोगों को ही बुलाया था। शुभ्रा और वो दोनों एक ही कालिज में लेक्चरार थी और दोनों की दोस्ती पूरे कालिज में मशहूर थी।
शुभ्रा अपने पति देवदत्त के साथ नयना की सगाई में आई थी। साथ लाया हुआ तोहफा और आशीर्वाद देकर वो दोनों एकतरफ बैठ गए। जब सब रस्में हो गई तो नाच गाने का दौर चला। शुभ्रा को भी शामिल होने के लिए कईयों ने पुकारा लेकिन वो नहीं उठी, उसे नाचना नहीं आता था, लेकिन देवदत्त अपने आप को फ्लौर पर जाने से रोक नहीं पाए।देवदत्त किसी और कालिज में प्रौफैसर थे।
प्रोग्राम पूरे शबाब पर था, तभी अखिला ने माईक पर एनाऊंसमैट की,” अब मिस्टर एडं मिसिज देवदत्त अपनी सुरीली आवाज में कोई गीत प्रस्तुत करेगें। म्यूजिक बंद कर दिया गया और हाल तालियों की गड़गड़ाट से गूंज उठा।शुभ्रा सचमुच ही अच्छा गाती थी, लेकिन आज वो इस मूड में नहीं आई थी। देवदत्त और वो दोनों ही गाने के शौकीन थे,
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लेकिन इस महफिल में।अभी वो सोच ही रही थी कि देवदत्त ने मुस्कराते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो उसे मजबूरन उसका हाथ पकड़ कर उठना पड़ा और माईक पर उसने गाना शुरू किया” प्यार हुआ इकरार हुआ, इस प्यार से फिर क्यूं डरता है दिल” तो अगली लाईनें उसे ही गानी थी।
पूरे हाल में पिन डरोप साईलैंस थी, दोनों ने इतनी खूबसूरती से गाया कि तालियां रूक ही नहीं रही थी। हँसी खुशी के माहौल में प्रोग्राम संम्पन हुआ। सब घरों को लौट गए।
घर पहुचें तो बेटा बहू भी सोने की तैयारी में थे। आज शुभ्रा की आंखों से नींद कोसों दूर थी। कभी उसके कानों में उसके लिए बजी तालियों की गड़गड़ाट गूंजती तो कभी वो शब्द जो उसे बचपन से सुनने को मिले। साधारण रंग रूप वाली शुभ्रा अपने मां बाप की पहली संतान थी। कह सकते हैं कि उसका रंग सांवला था।
उसके बाद पैदा हुई सलोनी जैसे दूध में नहा कर आई हो और फिर एक भाई भी लगभग उसके जैसा ही। लेकिन लड़कों के रंग रूप को तो कोई नहीं परखता, मीनमेख तो लड़कियों में निकाली जाती है और हमारे समाज में आज भी लड़कियों को न जाने कितनी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
घर वालों ने कभी फर्क नहीं किया लेकिन बाहर वाले कहां किसी के सगे होते हैं। ‘ ये किस पर गई है, सलोनी इतनी गोरी चिट्टी और ये काली कलूटी’।रिशतेदारी में भी यही चर्चा । उसे तो अपनी छोटी छोटी बहन से बहुत प्यार था, लेकिन उसकी सुंदरता के सामने उसका कोई अस्तित्व नहीं था। बचपन में तो वो समझ नहीं पाई मगर हाई स्कूल में आते आते वो सब समझने लगी थी। उसे अपने घर वालों से कोई शिकायत नहीं थी, मगर उसे समाज में अपना उच्च स्थान बनाना था और दिखाना था कि रंग रूप सब कुछ नहीं होता।
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कुछ तो यहां तक भी कह देते कि इसकी तो शादी होनी भी मुशकिल है। दिमाग तेज था और घर की सपोर्ट थी तो उसने पढ़ाई की और खूब ध्यान दिया और बहुत अच्छे अंकों में पोस्ट ग्रेजुऐशन कर ली। पढ़ाई में तो सलोनी भी ठीक थी, लेकिन अपनी सुंदरता पर उसे गरूर था, और पढ़ाई में उसकी खास दिलचस्पी नहीं थी तो ग्रेजुऐशन के बाद उसने आगे पढ़ाई नहीं की। शुभ्रा कालिज में कांटरैक्ट बेस पर लग गई थी और साथ ही साथ उसने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।
रिशते की कई जगह बात चली लेकिन सांवला रंग आड़े आ जाता। उन दिनों लड़कियों की पढ़ाई से ज्यादा सुंदरता को आंका जाता था। अब तो सलोनी की भी शादी की उम्र हो चली थी। दो लोगों ने शुभ्रा की बजाए सलोनी को ही पंसद कर लिया। अगली बार सलोनी को सामने ही नहीं आने दिया। लेकिन बात फिर भी नहीं बनी।
शुभ्रा इन तमाशों से तंग आ चुकी थी, उसने घर वालों से स्पष्ट कह दिया कि वो सलोनी की शादी पहले कर दे, उसे कोई एतराज नहीं।
न चाहते हुए भी सलोनी की शादी हो गई। इसी बीच शुभ्रा की नौकरी पक्की हो गई और उसने दूसरे शहर में ट्रांसफर ले ली। उसका घर आना जाना कम ही हो गया था।सैमीनार वगैरह के सिलसिले में उसकी मुलाकात प्रौफेसर देवदत्त से हुई । उसे तो शुभ्रा में वो हर गुण दिखाई दिया जिसकी उसे तलाश थी।
घर वालों की रजामंदगी से दोनों की शादी सादे से समारोह में हो गई। देवदत्त और उसके परिवार से उसे इतना प्यार और सम्मान मिला कि वो पुराने बातें भूल गई। कालिज में भी उसकी बहुत इज्जत थी, अब उसे सजना सवंरना भी आ गया था।
वही रिशतेदार , जान पहचान वाले उसके गुणगान करते। अपनी मेहनत और लगन से उसने अपना अस्तित्व , अपनी पहचान साबित कर दी थी। संगीत का शौक उसे बचपन से ही था। यहां देवदत्त भी संगीत प्रेमी।दोनों के मिलन और प्यार मुहब्बत से सब सपने साकार हुए। दो प्यारे बच्चे बहुत पढ़ लिख कर सैटल हो चुके थे।
यह सब सोचतो सोचतो शुभ्रा न जाने कब नींद के आगोश में चली गई।
दोस्तों कहते है कि कंघी के दांत भले ही एक तरफ हो लेकिन दुनिया के दोनों तरफ होते है। रंग रूप कुदरत की देन है, लेकिन अपनी लगन मेहनत और जनून है तो मंजिल खुद चलकर आएगी। आप खुद अपनी पहचान बनोगे। सबको अपने अस्तित्व पर गर्व होना चाहिए। अपनी जिंदगी का रिमोट कंट्रौल अपने हाथ में रखे।अपने कमैंटस जरूर दें, धन्यवाद।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
विषय- अस्तित्व