माँ पापा के संघर्ष की जीत : संगीता अग्रवाल

” मम्मी पापा कहाँ है आप जल्दी आइये !” रिया कॉलेज से घर आ अपने माता पिता को आवाज़ देती हुई बोली।

” आ गई लाडो …क्या हुआ सब ठीक तो है ?” पिता किशन ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

” पापा मेरे कॉलेज मे हमें महान लोगो की जीवनी लिखने को बोला था जिन्होंने अपनी मेहनत के बल पर अपना एक मुकाम बनाया है और फर्श से अर्श का सफर तय किया है । वो भी बिना किसी सहारे के बिना घमंड किये !” रिया बोली।

” फिर तूने किसकी जीवनी लिखी ऐसे महान लोग तो जाने कितने होंगे है ना !” रिया की माँ कालिंदी बोली।

” हाँ माँ बहुत है और उनमे से जिन दो लोगो ने मुझे सबसे ज्यादा प्रेरित किया उनके बारे मे लिखा है मैने !” रिया माँ के गले मे बाहें डालती हुई बोली।

” कौन है बेटा वो लोग !” किशन ने पूछा।

” वो दो लोग है मेरे सबसे खास सबसे पसंदीदा कालिंदी और किशन यानी मेरे मम्मी पापा !” रिया दोनो के गले मे बाहें डालती हुई बोली।

” तू पागल है ..इतनी बड़ी बड़ी हस्तियाँ है हमारे संसार मे उनके बारे मे लिखती तो तुझे इनाम भी मिलता। तूने लिखा भी तो हम लोगो के बारे मे जिनका ना तो कोई नाम है ना कोई काम किया जो किसी को प्रेरित करे । तू तो पक्का हार गई होगी इस प्रतियोगिता मे !” किशन बोला।

” नही पापा मैं तो बल्कि प्रथम आई हूँ और अगले हफ्ते कॉलेज के जलसे मे मुझे पुरस्कार मिलेगा आप दोनो को भी चलना है मेरे साथ !” रिया के इतना बोलते ही किशन और कालिंदी हैरान रह गये साथ ही उन्हे खुशी भी थी कि उनकी बेटी प्रथम आई है। 

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एक हफ्ते बाद सभी रिया के कॉलेज पहुंचे वहाँ रिया को अपना लिखा पढ़कर भी सुनाना था। तो उसे मंच पर आमंत्रित किया गया। 

” दोस्तों हमारे विश्व मे कितनी महान हस्तियाँ है जिन्होंने अपनी मेहनत के बल पर फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है । पर मै जिन दो लोगो के सफर की भागीदार रही हूँ मैने उन्ही के बारे मे लिखा है और वो दो लोग है मेरे माँ पापा कालिंदी और किशन। जब मै छोटी सी थी तब हमारे गाँव मे बाढ़ आई और हमारा सब कुछ बह गया।

तब पापा हमें लेकर शहर आये और माँ के साथ मिलकर एक झोंपड़ी ली और उसी झोंपड़ी के बाहर समोसे की छोटी सी दुकान शुरु की जिसमे माँ ने बराबर का साथ दिया। शुरु मे कितनी परेशानियां आई कभी कभी तो सारा सामान बेकार जाता था फिर भी उन्होंने हिम्मत नही हारी मेरे लिए मेरी पढ़ाई के लिए वो दोनो दिन रात मेहनत करते यहाँ तक कि मुझे अच्छी परवरिश मिले इसलिए उन्होंने दूसरे बच्चे का विचार भी त्याग दिया।

जमीन पर बैठ समोसे बेचते बेचते उन्होंने एक रेड़ी खरीद ली माँ के हाथ के समोसे मे इतना स्वाद होता कि बिक्री बढ़ती रही रेड़ी से दुकान । झोंपड़ी से घर । फिर दुकान से एक रेस्टोरेंट बना । पर मेरे माँ पापा ने जो भी अपनी मेहनत के बल पर हांसिल किया उसका घमंड नही किया।

आज जबकि मेरे पापा के रेस्टोरेंट मे पांच लोग काम करते है तब भी माँ खुद रेस्टोरेंट जाकर रसोई देखती है सब चीज अपनी देख रेख मे बनवाती है पापा उस रेस्टोरेंट के मालिक होने के बावजूद भी ग्राहकों से खुद जाकर पूछते है यहाँ तक की स्टॉफ जब छुट्टी पर होता है तो ग्राहकों के झूठे बर्तन तक खुद उठा लेते है। इतने संघर्ष इतनी व्यस्तता के बाद भी मेरे माँ पापा ने कभी मुझे मेरी परवरिश को नज़रअंदाज नही किया।

मैने जो चाहा मुझे मिला पर साथ ही एक सीख भी मिली कि मेहनत से मत डरो और सफलता का कभी घमंड मत करो। मेरे माँ पापा दुनिया के लिए कोई बड़ी हस्ती नही पर मेरे लिए मेरे भगवान है और भगवान सर्वोच्च होता है मेरे लिए मेरे माता पिता सर्वोच्च है।

रेस्टोरेंट का काम बढ़ गया है अब पापा दूसरा रेस्टोरेंट खोलने वाले है और मेरी दिली इच्छा है एम बी ए करने के बाद मैं माँ पापा के पद चिहनो पर चलती उनका रेस्टोरेंट संभालू वो भी उनकी दी सीख को याद रखते हुए। ये है दुनियां के लिए साधारण पर मेरे लिए असाधारण मेरे माँ पापा के जीवन की कहानी !” रिया एक सांस मे सब बोल गई उसके रुकते ही सब ताली बजाने लगे। सामने कुर्सी पर बैठे किशन और कालिंदी की आँखे भर आई।

” रिया आपने इतनी महान हस्तियों को छोड़ अपने माता पिता के बारे मे ही क्यो लिखा जबकि उन्होंने तो ऐसा मुकाम पाया भी नही जो बाकियो ने पाया है । आपको ये नही लगा कि आपने जो लिखा उसकी वजह से आप विजेता सूची से बाहर भी हो सकती थी। ” चीफ गेस्ट ने सवाल किया। 

” सर बाकी लोगो ने भले कितना ऊंचा मुकाम पाया हो पर उनके संघर्षो की मैं गवाह नही उनके बारे मे जो मैं लिखती वो गूगल से पढ़ा या किसी से सुना लिखती । मैं गवाह हूँ अपने माँ पापा के संघर्षो की तो मैं इनकी जीवन कथा से ही न्याय कर सकती थी ।

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वैसे भी सर माँ पापा भगवान है मेरे लिए और भगवान को छोड़ किसी इंसान के बारे मे लिखना वो भी किसी प्रतियोगिता मे इनाम के लिए मुझे गँवारा नही हुआ । मेरी आज की ये जीत मेरी नही मेरे माँ पापा के संघर्ष की जीत है !” रिया के इतना बोलते ही सभी ने खड़े हो तालियां बजा रिया की बात का समर्थन किया। 

जब रिया को ट्रॉफी मिल रही थी तब उसने अपने माँ पापा को स्टेज पर बुलाया । दो साधारण से व्यक्तित्व आज आसाधारण बन गये थे पर उनके चेहरे पर आज भी कोई घमंड नही था। 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )

#घमंड 

साहित्य जो दिल को छू जायें के लिए।

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