मां की ममता – अमिता कुचया :  Moral Stories in Hindi

आज तीन बजे दिशा खाना खा पाई थी, अब उसका समय ज्यादा अहाना के हिसाब से चल रहा था। जब वो खेले, या सोए तब   ही उसका काम होता था। 

वह किचन समेट कर सोने ही गयी थी, तो आज उसे गहरी नींद लग गयी, अहाना उसकी तीन महीने की बेटी है, इधर जब वो उठ जाए तो उसे भी उठना पड़ता था। इस कारण उसकी नींद पूरी नहीं होती। जब से चौक हुआ था, तब से सारा काम दिशा करने लगी थी। 

आज शाम के छह बजे गए थे तो उसकी नींद नहीं खुली, तो उसकी सास सुशीला जी बार- बार इधर उधर हो रही थी। 

अब सुशीला जी को चाय की तलब लगी थी। उसने सोचा अब बेटे सोनू के आने का समय हो रहा है। तब वो किचन में अपने लिए और बेटे सोनू के लिए चाय बनाने लगती है ,उसी समय उनका बेटा सोनू आफिस से लौट आता है वह चौकते हुए कहता- मां ….मां…अरे मां तू किचन में!! आज मां तू चाय बना रही है!! तब सुशीला जी कहती है- क्या करु बेटा जब बहू चाय बना कर न देगी तो मुझे ही बनाना पड़ेगी ना…. 

यह सुनकर वह तेज -तेज आवाज लगाता है, दिशा दिशा ….क्या कर रही हो? देखो मां चाय बना रही है ,तो क्या तुम मेरी माँ को चाय बना कर भी नहीं दे सकती हो? उन्हें खुद से बनाना पड़ रही है । 

तब वह इशारा से कहती कि धीरे बोलो , अहाना सोई हुई है, उसकी नींद उचट जाएगी।तो फिर रोएगी। 

तब बाहर आकर कहती – सुनो जी मम्मी को कहा था कि अहाना को सुला रही हूं। थोड़ी देर से चाय बना दूंगी। मेरी देर तक नींद लगी रह गयी… 

देखो दिशा हमारे घर में गिनती के चार लोग है कम से कम समय पर चाय, खाना तो दे सकती हो। सोनू कहता है। 

 ये सुनकर दिशा कहती -ठीक है बाबा समय से चाय नाश्ता देने की कोशिश करुंगी। 

अब वह रात का काम निपटा कर सोने को करती है ,तभी अहाना जाग जाती है। और रोने लगती है,तभी वो देखती पैंटी उसकी गीली हो गयी है, वह बदल कर उसे दूध पिलाती है,और वह खेलने लगती है,उसका सोने जागने का कोई समय नहीं रहता है, तब पर भी वह रात में सुलाने की कोशिश करती है। लेकिन इसी समय उसे जागना होता है। इसी कारण उसे भी सोने में रोज देर हो जाती है। और इसी वजह से सुबह उठने में देर हो जाती है।

 अगले दिन फिर सुशीला कहती- अरे दिशा ऐसा कब तक चलेगा। दिशा घर के सारे काम करती थी , यहां तक की बच्ची की मालिश भी वही करती,,सबके कपड़े भी वही धुलती,तब भी उसकी सास सुशीला जी को हमेशा शिकायत रहती और वह हमेशा कहती कि दिशा दो लोगों के काम मैं तेरी नानी मरती है ,एक हम थे ,जो आठ लोगो का खाना बनाते थे। आजकल की बहूओं को बच्चों के बहाने सोने मिल जाए। बस क्या‌ और चाहिए !! काम हो या ना हो। बताओ तो आजकल की ऐसी ही बहूएं होती है … वे बड बड़ा रही थी। उन्हें पूजा करना था और ताजा पानी नहीं भरा था तो बड बड़ाए पड़ी थी….तब दिशा बोली- मम्मी जी सब काम तो मुझे ही करना है तो क्या देर..क्या जल्दी…. अपनी बेटी को भी वक्त देना पड़ता है…. क्या आप नहीं समझती.. 

तब सास सुशीला जी कहती-तो क्या दोपहर का खाना शाम को खाऊं! शाम की चाय वैसे ही छह  बजे मिलती है। 

अब तेरे अनुसार खाऊं पीऊं ये बता? 

तब दिशा कहती- मम्मी अहाना को आप संभालिए तो सारे काम समय पर कर दिया करुंगी। तब सुशीला जी कहती – तूने गोदी में ले ले कर उसे रोतडू तो बना दिया। सारे दिन गोद में लिए रहेगी तो क्या होगा !! 

वो लिबना वाली हो गई है। 

तो वह कहती- मम्मी जी मेरी बेटी अहाना को मेरी जरुरत है, मैं मां की ममता को नहीं मार सकती, उसके अनुसार ही सब मैनेज करती हूं। जब अहाना बड़ी हो जाएगी तो ये दिन लौट कर नहीं आएगें। मैं उसे अभी नहीं संभालूंगी तो कब संभालूंगी। 

तू ही अनोखी माँ ना है, हम लोग काम भी करते थे और बच्चे भी संभालते थे। 

मम्मी जी आपको लगता है कि मैं समय पर काम नहीं कर रही हूं, तो अहाना को आप ही संभाल लीजिए… 

इतने में वो कहती कौन सी बड़ी बात है… 

दिशा किचन में जाकर काम करने लगती है ,दस मिनट तो अहाना खेलती है, फिर नैपी गंदी कर लेती है तो फिर सुशीला जी आवाज लगाती है,,देख दिशा इसने नैपी गंदी कर ली ,जरा साफ कर दे। 

तब वो काम छोड़कर उसे साफ करके नैपी बदलती है। तब वह मम्मी जी को कहती है- मम्मी जी सब्जी थोड़ी चला देना ,मैंने छोंका लगा दिया है। 

तो सुशीला जी बोली -ले फिर मुझसे काम की आशा करने लगी। 

तब वो इतना सुनते ही पैर पटकते हुए जाती है- सब्जी चलाती है और रोटी भी बनाने लगती है ,तब अहाना का भूख के मारे बुरा हाल रहता है। वो बहुत तेज -तेज रोने लगती है। इतने में उसकी आवाज सुनकर सोनू आ जाता है और उसे आवाज लगाकर बुलाता है – कैसी मां हो तुमसे एक बच्ची संभाली नहीं जा रही है मेरी बेटू का बुरा हाल है, तो तुनकते हुए कहती -क्या करु यहां समय पर काम भी करू और बेटी भी संभालू ,मैंने मां जी सब्जी चलाने का क्या कह दिया वो तो ताने मारने लगी लो अब मेरे से काम कहा जा रहा है। अब बताइए मैं क्या करु ,मैं अपनी मां की ममता को मारु या खाना बनाऊँ?आपने भी मुझे कह दिया कि बेटू रिहाना रो रही है , क्या सुनाई नहीं दे रहा है, मुझे पता था कि बेटू को भूख लगेगी तो दूध पिला दूं पर मम्मी जी को सब्जी चलाना भी भारी पड़ गया।अब मम्मी जी अहाना को चुप क्यों नहीं करा रही है ,उन्होंने भी बच्चे पाले हैं ,आप ऐसे ही बड़े तो नहीं हुए होगे। पहले घर परिवार के सदस्य साथ नहीं देते थे। क्या!! 

तब सुशीला जी को याद आता है कैसे उसकी सासु मां उसके हाथ से सोनू को छीन लेती थी। उसे चौके पर काम करने भेज देती थी, सोनू को रोने देती थी, कभी कभी रोते अंगूठा चूसते हुए सो जाता था,पहले सोनू सबके पास ज्यादा रहता था, उसके पास कम ही आता था,केवल दूध पिलाने ही उसे दिया जाता था। एक बार तो ननद ने दूध में बिस्कुट घोलकर खिला दी थी, तब वो कुछ न बोल पाई, और उसका ममत्व उस समय व्याकुल हो उठा था,पोट्टी वगैरह भी ननद ही साफ कर देती है ,मैं गोदी में लेने तरस जाती थी।इस तरह सुशीला सोचते रह जाती है। 

उसी समय सोनू कहता- मां ये क्या है, आपको जब समय पर काम चाहिए तो रिहाना को संभालना चाहिए तब वो कहती- अरे बेटा रिहाना भूखी है, उसे दिशा ही दूध पिला सकती है ,मैं तो चुप करा रही थी, मैनें झुनझुना भी बजाया, तब भी वह रोए जा रही थी, वो दिशा ही दूध पिलाएगी, तभी उसका पेट भरेगा और चुप होएगी ना….

अच्छा तो ये बात,, ये बात पता है मां, तब पर भी आशा कर रही हो, कि बहू समय पर काम करे, यदि थोडे़ बहुत काम करा दोगी तो क्या हो जाएगा। इतने में वह कहती है बहू के होते हुए क्या मैं चौका संभालू….. 

तब सोनू कहता है जब तक अहाना बड़ी नहीं हो जाती तब तक आपसी समझ से काम करना ही होगा। मैं ये नहीं चाहता कि अहाना रोए, यदि दिशा की नींद पूरी नहीं होगी, देर से ही काम होगा। 

तभी दिशा कहती- मम्मी जी एक समय में दोनों चीजें कैसे संभालू?आप ही बताइये। हमारी अहाना को रोते हुए आज ये भी नहीं देख पाए तो मैं कैसे रोता छोड़ दूं अपनी बेटी को…. मेरे अंदर भी मां की ममता है, मैं कोई सौतेली माँ नहीं हूं मैनें जन्म दिया है आज रोता छोड़ मेरा दिल कितना दुखा है ये मैं ही जानती हूं। 

तब वो कहती है हां दिशा बहू मैं भी कहीं न कहीं गलत हूं, अगर अपनी पोती को संभाल लूं, तो तू भी निश्चिन्त होकर काम कर ले, या तू जब उसे देखे तो मैं काम कर लूं। तुझे तो अहाना को संभालना जरुरी है। मैं अब से काम करा लिया करुंगी। 

फिर सोनू कहता -मां मेरी शादी के पहले पूरा काम आप ही करती थी। थोड़ा बहुत मदद करा दो। तो क्या हो जाएगा,कम से कम काम समय से हो जाएगा। 

ठीक है बहू मुझसे जितना हो सकेगा तो मैं करुंगी। आखिर तुझे भी छोटी बच्ची के कारण काम बढ़ा हैं। तब सोनू और दिशा कहते हैं ये हुई ना दादी वाली बात….. 

इस तरह सुशीला जी दिशा के काम में सहयोग करने लगती है, और घर में काम वाली भी लगवा लेती है। 

सब काम समय से होने लगता है। दिशा को भी सुकून मिलता है। और दिशा अहाना को भी भरपूर समय दे पाती है। 

स्वरचित मौलिक रचना

अमिता कुचया ✍️

 जबलपुर

मासिक रचना के अन्तर्गत रचना

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