बेटा.. मुझे कुछ पैसों की जरूरत है जैसे ही सुमित्रा जी अपने बेटे से कहने लगी तभी उनकी बहू नव्या वहां आ गई और सुमित्रा जी कहते कहते चुप हो गई! बेटे ने एक दो बार पूछा भी की मां बताओ कितने पैसे चाहिए और क्यों चाहिए किंतु मां ने कहा..
कोई बात नहीं बेटा शाम को जब तू ऑफिस से आएगा तब बता दूंगी और फिर रजत अपने ऑफिस के लिए रवाना हो गया! शाम को रजत ऑफिस से आया तो नव्या रजत से बोली …रजत शायद मां तुमसे कुछ कहना चाहती थी मुझे लगता है मां को पैसों की जरूरत है
और मेरे सामने वह कहने मे हिचकिचा रही हैं तुम जाकर उनसे बात करो! रजत अपनी मां के पास गया और बोला …मम्मी बताओ सुबह क्या कहना चाहती थी? बेटा… मेरी मंदिर वाली सहेलियां हरिद्वार ऋषिकेश और मथुरा वृंदावन की यात्रा पर जा रही है
उन्होंने मुझे भी बहुत आग्रह किया है किंतु 15 से ₹20000 का उन्होंने खर्चा बताया है मेरी भी इच्छा थी कि मैं भी उनके साथ जा पाती? हां हां क्यों नहीं मां… यह तो बहुत खुशी की बात है वैसे भी साल भर से आप पापा के जाने के बाद बिल्कुल ही गुमसुम सी हो गई है
आज पहली बार आपने अपने लिए कुछ मांगा है आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए नव्या आपकी यात्रा की सारी तैयारी करवा देगी आप अपनी सहेलियों को हां बोल दीजिए! बेटे की बात सुनकर सुमित्रा जी खुश हो गई और वह शाम की आरती के लिए मंदिर चली गई! खाना खाने के बाद नव्या रजत से बोली …
रजत आज मां को अपने बेटे से ही पैसे मांगने में कितनी शर्म और हिचकीचाहट महसूस हो रही है,5 साल पहले जब मैं इस घर में आई थी तब से मैंने देखा था मां को बाहर घूमने फिरने का और सजने सवंरने का कितना शौक था पापा कितना खुश होते थे मम्मी को ऐसा देखकर, किंतु मुझे यह देखकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा की अभी तो यह उन की छोटी सी इच्छा है उसमें यह हाल है
सोचो अगर कभी उनकी ऐसी बड़ी इच्छा हुई तो.. ! मुझे लगता है आप हर महीने मां को एक निश्चित रकम दिया कीजिए जिस पर सिर्फ मां का अधिकार हो, मां उसे किसी भी तरह से खर्च करें हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए!
पर नव्या मैंने तो मां को कभी मना नहीं किया और यह जो सब कुछ भी है जो हमारा है क्या मां का नहीं है! अपने बेटे से मांगने में कैसी शर्म! रजत में समझती हूं यह घर मां का ही है किंतु मां को अपने बेटे से पैसे मांगने में भी एक शर्म महसूस होती है सोचो अगर उनके पास में पैसे हाथ में होते तो क्या उनको इतना सोचना पड़ता और तुम्हें पता है
मां को बैंक से पैसे निकालना नहीं आता, बैंक में पैसे होने का उनके लिए क्या फायदा? अच्छा तुम चाहे ₹10000 ही सही हर महीने मां को पॉकेट मनी के तौर पर दे दिया करो ,तुम तो जानते हो रजत मेरे मायके में मेरी मम्मी एक-एक पैसे के लिए मेरे भैया पर निर्भर रहती है और जब भी मम्मी थोड़े बहुत भी पैसे की इच्छा करती है
भैया कोई ना कोई बहाना लगा देता है और भाभी भी भैया को नहीं समझाती, रजत क्या पति के जाने के बाद पत्नी का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता अपने उसी घर में जिसमें उसने अपनी जिंदगी के कीमती वर्ष लगा दिए, वह क्यों एक-एक चीज के लिए मोहताज हो जाती है पापा के होने तक जो बच्चे मम्मी के आगे पीछे मंडराते रहते थे
अपने हर सुख दुख की बात उनसे साझा करते थे आज वही उन्हें उपेक्षित क्यों करते हैं, मैं मां की कितनी मदद करना चाहती हूं पर मां बेटी से कोई मदद देना नहीं चाहती फिर भी मैं जबर्दस्ती मां के हाथों में कुछ पैसे रख कर आती हूं बेटे के होते हुए एक मां को बेटी से पैसे लेने में कितनी झिझक होती है वह मैं ही समझती हूं,
अपने आंसुओं के सैलाब को रोकते हुई नव्या फिर बोली रजत.. यहां भी मैं चाहती हूं की मम्मी को आपसे पैसे मांगने में कोई शर्म ना हो उनकी आर्थिक स्थिति इतनी तो हो कि वह जब चाहे अपने छोटे-मोटे फैसले खुद ले सके, चाहे तुम मां को मना नहीं करते किंतु मां को लगता है अगर मैं अपने बच्चों से पैसे मांगूंगी तो उन्हें लगेगा मां को पैसे की क्या जरूरत,
इस उम्र में भी पैसों की आवश्यकता कई प्रकार की होती हैं जो हम नहीं समझ सकते रजत मैं नहीं चाहती जो मायके में मेरी मां की स्थिति है वह तुम्हारी मां की भी हो, मां को अपने अस्तित्व के लिए लड़ना ना पड़े उनका जो अस्तित्व पहले था
वह हमेशा रहना चाहिए ,वह मां है इस घर की धुरी, वह है तभी तो हमारा अस्तित्व है! सच कह रही हो नव्या अगर तुम्हारी जैसी समझदार बहू हर घर में हो तो घर अपने आप ही स्वर्ग बन जाएगा!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (अस्तित्व) .
# “अस्तित्व ”