मां की चुप दुआ और वक्त का फैसला – रेखा सक्सेना : Moral Stories in Hindi

राधा, अपने तीन भाइयों में सबसे छोटी और इकलौती बहन थी। उसका मायका बेहद समृद्ध था। पिता श्रीधर लाल का कपड़ों का बड़ा व्यापार था,

और दोनों बड़े भाई विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त कर वहाँ ही बस गए थे। उन्होंने अपनी पसंद से शादियाँ कीं और अब केवल वीडियो कॉल पर ही संबंध निभाते थे। राधा की शादी एक फौजी राजीव से हुई थी, जो सीधे-सादे लेकिन कर्तव्यनिष्ठ इंसान थे।

राधा का जीवन ठीकठाक चल रहा था कि एक रात अचानक पिता को दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। दोनों विदेश में बसे बेटों को खबर दी गई, पर उन्होंने छुट्टी न मिलने का बहाना बना दिया। छोटे बेटे दीपक ने अंतिम संस्कार की रस्में निभाईं। राधा तेरहवीं तक मायके में रहकर फिर अपने ससुराल लौट आई।

कुछ महीनों बाद दीपक की पत्नी, सीमा को सास सुशीलादेवी का रहना अखरने लगा। सुशीलादेवी को लकवा मार गया था,

जिससे वह पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो गई थीं। सीमा ने सास से सारे जेवर ले लिए और उन पर इल्ज़ाम लगाया कि उन्होंने सब कुछ राधा को दे दिया है। अब न ठीक से खाना देती, न देखभाल करती। उल्टा ताने मारती कि “तुम अब बोझ बन चुकी हो।”

कष्ट सहती सुशीलादेवी बस इतना ही कह सकीं,

“बहू, यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है।”

दीपक यह सब देखकर भीतर से टूट चुका था। एक दिन दुखी मन से वह माँ को वृद्धाश्रम छोड़ आया।

कुछ हफ्ते बाद राधा को यह बात पता चली। वह बिना समय गँवाए माँ को वहाँ से ले आई। राजीव भी पत्नी के निर्णय में साथ थे।

राधा ने माँ का इलाज करवाने के लिए लोगों के घरों में खाना बनाना शुरू किया और शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती। माँ के लिए वह किसी से एक पैसा भी नहीं लेती। उसकी सेवा में कोई कमी नहीं रखती।

सुशीलादेवी की आँखों से आँसू बहते रहते, लेकिन अब वे दुख के नहीं, संतोष और गर्व के आँसू थे।

“राधा, तू मेरी भगवान जैसी बेटी है,” वे अक्सर कहतीं।

समय बीता। एक दिन विदेश से बड़े भाइयों को खबर मिली कि व्यापार में घाटा हो गया है। और फिर एक और खबर—दीपक की पत्नी सीमा को ब्रेन स्ट्रोक हुआ और खुद वह बेरोजगार हो गया। अब तीनों भाइयों को माँ की याद आई। पर तब तक देर हो चुकी थी।

माँ अब भी जीवित थीं, लेकिन अब वे राधा की माँ नहीं, राधा की संतान जैसी थीं।

राधा ने अपनी सेवा से यह सिद्ध कर दिया था कि

जो माँ-बाप को भगवान मानते हैं, उनका घर कभी उजड़ता नहीं।

और जो उन्हें बोझ समझते हैं, उनका जीवन खुद ही बोझ बन जाता है।

“बहू, यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है,”

यह वाक्य जैसे आज भी घर के आँगन में गूंजता रहता है…।

रेखा सक्सेना

Leave a Comment

error: Content is protected !!