माँ का त्याग – नीरज श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

जब तुम माँ बनोगी तब पता चलेगा कि माँ का दर्द क्या होता ? औलाद को एक खंरोच भी आ जाये तो माँ का हृदय वेदना की दर्द से छलनी-छलनी हो जाता है। राधिका अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले ही रेवती ने जोर से किवार बंद किया और कमरे से बाहर चली गई।

राधिका की आँखों से आँसुओ का शैलाब उमर पड़ा। आज उसके सामने उसका इकलौता जवान बेटा बिस्तर पर पड़ा अपने जीवन की आखिरी सांसे गिन रहा था। डॉक्टर ने तो साफ-साफ कह दिया था कि ऋषि अब कुछ दिन का मेहमान है। ऋषि की दोनों किडनी फेल हो चुकी थी और उसका बचना नामुमकिन था। पर राधिका एक माँ थी और एक माँ कभी हार नहीं मानती। इसलिए वह अलग-अलग शहर और हॉस्पिटल के चक्कर काटने लगी और वह हर संभव कोशिश करने लगी जिससे ऋषि को जीवनदान मिल जाये।

    रेवती जो ऋषि की पत्नी थी। उसे जब से पता चला था कि ऋषि अब नहीं बचने वाला तब से उसने तो अपने हाथ ही खरे कर लिए थे। वह ना तो ऋषि से सीधे मुँह कोई बात करती और ना ही उसे समय देती। वह जब भी ऋषि से मिलती तो यही कहती कि तुमने मेरी जिंदगी नर्क बना दी है। बेचारा ऋषि मरने से पहले ही रोज़ कितनी बार मर जाता लेकिन वह कर भी क्या सकता था? हालात के सामने तो वह खुद मजबूर था।

            इधर राधिका को डॉक्टर ने ऋषि के बचने का एक आखिरी रास्ता बताया था और वो था किडनी ट्रांसप्लांट जो काफ़ी महँगा इलाज था। इस ट्रांसप्लांट का खर्चा लगभग बारह से पंद्रह लाख रुपये था।

    राधिका ने बहुत जगह से पैसे उधार लेने की कोशिश की पर उसे नाकामी ही हाथ लगी। कहते हैं मुसीबत के समय अपना साया भी आपका साथ छोड़ देता है और राधिका के साथ भी यही हुआ। राधिका के सारे रिश्तेदारों ने उससे मुँह मोड़ लिया। राधिका को जब कोई रास्ता न सुझा तब राधिका ने रेवती से बात की और कहाँ कि अपने घर को बेचने के अलावा और कोई विकल्प हमारे पास नहीं बचा।

     रेवती ने यह सुना तो वाह आग बबूला हो गई। उसने राधिका को साफ-साफ कह दिया कि मैं आपको ऐसा नहीं करने दूँगी। आप क्या चाहती हैं कि ऋषि के मौत के बाद मैं दर-दर भटकूं। नहीं, नहीं, मैं आपको ऐसा नहीं करने दूँगी। आखिर आप अपने बेटे का ही तो भला चाहेंगी। मेरे से क्या लेना देना आपको?

राधिका : देखो बहू तुम गलत समझ रही हो। मैं तो तुम्हारे ही भले की बात कर रही हूँ।

रेवती : क्या खाक भले की बात कर रही हैं आप? अरे, ऋषि मरने वाला है और आप मुझे बेघर करने पर तुली हुई हैं। कैसी माँ हैं आप? अपने बेटे का ही घर उजार रही हैं।

राधिका : बहू मेरी बात समझने की कोशिश करो। अगर ऋषि की जान बच गई तो तुम्हारा भविष्य सुधर जायेगा।

रेवती : मैं अपने भविष्य के लिए अपना घर नहीं बेच सकती। आप कोई और रास्ता ढूंढ लीजिए।

राधिका की रेवती के आगे एक न चली और वह मायूस हो फिर नई राह की तलाश में लग गई गयी।

   समय बीतता गया और ऋषि की हालत दिन प्रतिदिन बद से बद्तर होती चली गई। इधर राधिका भी समय के आगे मजबूर हो किसी चमत्कार का इंतजार करने लगी। पर ऐसा कुछ न हुआ।

       समय का पहिया घूमा और ऋषि से पहले राधिका ही दुनिया छोड़ चली। पैर फिसलने की वजह से राधिका छत की सीढियों से नीचे गिर गई। खून काफ़ी बह गया था। इसलिए राधिका की अकस्मात मृत्यु हो गई। अब तो ऋषि जैसे मरने से पहले ही मर चुका था। वह जीना नहीं चाहता था। पर माँ का अंतिम संस्कार तो उसे ही करना था।

        संस्कार की सारी तैयारियाँ हो चुकी थी और ऋषि आखिरी मंजिल की ओर बढ़ने ही वाला था कि तभी ऋषि का दोस्त राजीव वहाँ आया और बोला।

राजीव : ऋषि तुम अपनी माँ का अंतिम संस्कार अभी नहीं कर सकते।

ऋषि : क्यों,मैं अंतिम संस्कार क्यों नहीं कर सकता?

राजीव : क्योंकि तुम्हारी माँ ने अंगदान किया है।

ऋषि : अंगदान, मैं कुछ समझा नहीं??

राजीव: तुम्हारी माँ ने अपनी दोनों किडनी का दान, किडनी दान केंद्र में किया है। उनकी यह इच्छा थी कि उनकी मौत के बाद उनकी किडनी तुम्हारे ट्रांसप्लांट के लिए यूज़ किया जाये।

        ऋषि के पैरों तले तो जौसे जमीन ही खिसक गई थी। माँ के ऐसे कर्ज को चुका पाना उसके लिए संभव न था। चाहे वह कितने जन्म क्यों ना ले ले।

      ऋषि फुट – फुटकर रोने लगा और कहने लगा – रेवती, माँ की मौत सीढियों से गिरने की वजह से नहीं हुई बल्कि माँ ने मेरे लिए जानबूझकर अपनी जान दी है।

ऋषि के बगल में खड़ी रेवती अपने किये पर शर्मिंदा थी। उसके आँखों से आंसू छलक पड़े। रेवती ने रोते-रोते कहा – माँ जी ठीक कहती थी कि जब तुम माँ बनोगी तब पता चलेगा कि माँ का दर्द क्या होता ? ऐसा त्याग तो एक माँ ही कर सकती और कोई नहीं।

(पूर्णतः स्वरचित, सुरक्षित, अप्रकाशित एवं मौलिक रचना)

कहानी प्रतियोगिता वाक्य : #जब तुम माँ बनोगी तब पता चलेगा

लेखक : नीरज श्रीवास्तव
        मोतिहारी, बिहार

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