मां जी मैं भी आपकी बेटी जैसी हूं – सीमा सिंघी

अरे डोली बहू तुम रसोई का काम देख लो और हां तुम रसोई में दही बड़े, दाल का हलवा पुलाव और थोड़ी पुड़िया तल लेना। तुम्हारी जेठानी बाहर की साफ सफाई सब कर लेगी। वैसे भी रसोई में दो इंसानों का काम तो है नहीं।

 मैं तो अपने जमाने में मिंटो में बहुत कुछ कर लिया करती थी। आजकल वैसे भी रसोई में बहुत कुछ बाजारू चीजें भी आने लगी हैं तो उनकी मदद से सब फटाफट तैयार हो जाती है कहकर मीना जी सोफे पर बैठ गई। 

ऐसा अक्सर होता था। जब भी कोई घर में मेहमान आने वाले होते,तो मीना जी अपनी बड़ी बहू को हल्का-फुल्का और छोटी बहू को पूरी रसोई सौंप देती। शुरुआती दिनों में तो डोली को कुछ समझ नहीं आया।

 वह सोचती रहती थी की मां जी मुझे रसोई के काम में पारंगत बनाने के लिए यह सब कर रही हैं । मगर अब तो कुछ दिन नहीं, कुछ महीने नहीं, कुछ सालों से यही होते आ रहा है ।

अब डोली को बहुत अच्छी तरह समझ आ गया था कि उसकी सासू मां का मन उसकी जेठानी की ओर ज्यादा झुका हुआ है । 

वह फिर बड़ी समझदारी से सोफे पर बैठी हुई सासू मां से बोल पड़ी। मां जी काम ही तो होना है तो आज मैं बाहर का संभाल लूंगी और रेवती दीदी रसोई का संभाल लेगी। डोली की बात सुनते ही जेठानी रेवती तुरंत बोल उठी।

 नहीं मां जी मैं बिल्कुल रसोई का काम नहीं कर पाऊंगी क्योंकि यह सब अब मुझसे नहीं होता। मुझे रसोई में काम करना अब अच्छा नहीं लगता क्योंकि आप ही तो डोली के आते ही मुझे हल्का हल्का-फुल्का काम देने लगी । जिससे अब मेरी आदत पूरी तरह छूट गई है । 

जेठानी रेवती की बात सुनकर सासू मां तुरंत डोली से बोल उठी। 

अरे डोली बहू तू बना ले आखिर एक ही तो बात है। आज सासू मां की बात सुनकर डोली से रहा न गया । वह निराश होकर बोल उठी। 

मां जी जब से मैं दुल्हन बनकर इस घर में आई हूं। तब से मैं मेरे और रेवती दीदी के प्रति आपके भेदभाव को देखती आई हूं ऐसा क्यों । आप तो खुद जानती ही है मां जी दाल का हलवा और दही बड़े आदि बनाने में समय लगता है। 

वही अगर दो इंसान मिलकर तैयार करें तो बड़ी सहजता से और जल्दी तैयार हो जाते हैं और अच्छा लगता है वह अलग फिर आप हम दोनों के साथ अलग-अलग व्यवहार क्यों कर रही हैं।

जबकि हम दोनों ही इस घर की बहू है।

 मां जी मैं भी तो आपकी बेटी जैसी हूं । मैंने तो आपको पहले दिन से ही अपनी मां मान लिया था मगर आप मुझे अपनी बेटी नहीं स्वीकार कर पाई। ऐसा क्यों।

कल को मैं भी अपने बच्चे रमन और गुड्डी में यह भेदभाव करने लगूंगी तो उनकी नजरों में मेरा क्या सम्मान रह जाएगा और मां जी मैं रमन और गुड्डी तो क्या बल्कि जेठानी जी का बेटा गोलू को भी सदा अपना मानती आई हूं और आप इतनी बुजुर्ग होते हुए भी हम दोनों को बराबर का प्यार और सम्मान नहीं दे पाई कहते कहते डोली के आंखों से आंसू बरस पड़े।

आज मीना जी पहली बार अपने किए गए व्यवहार पर शर्मिंदा होते हुए डोली से कहने लगी। डोली बहू तुम बिल्कुल सही कह रही हो। अक्सर वही घर टूटते हैं जहां बड़े बुजुर्ग समझदारी से कदम नहीं उठाते। 

मैं घर की बड़ी होते हुए भी तुम दोनों में ही भेदभाव कर बैठी जबकि तुम दोनों बराबर के प्यार और सम्मान की हकदार थी। मगर आज अब मैं समझ गई हूं और मैं यह स्वीकार करती हूं कि तुम भी मेरी बेटी जैसी ही हो कहते हुए डोली को अपने गले से लगा लिया।

 मीना जी की बात सुनकर आज रेवती को भी अपनी गलती का एहसास हुआ और वो भी डोली से क्षमा मांगते हुए उसके गले लग गई।

स्वरचित 

सीमा सिंघी 

गोलाघाट असम

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