“लास्ट कॉल” – दीपा साहू “प्रकृति”

मोबाइल की रिंग लम्बी बज रही है, पर कोई रिसीव नहीं कर रहा।रात के लगभग 2 बजे हैं, “कृति” को अब सब्र न हुआ।ये लास्ट कॉल कर लेना चाहती है।आँखें मसलते रात के 2 बजे मोबाइल स्क्रीन पर टाइम दिख रही थी और नाम देखकर “विहान” चौका।इधर बेचैन होकर कृति बस मोबाइल रखने ही वाली होती है कि उधर से कॉल रिसीव हो गई ।”हैलो चिंताजनक स्वर में कृति तुम ठीक तो हो न” ? इस समय तुम………..

“विहान मुझसे सब्र न हुआ,ये लास्ट कॉल तुम्हे कर रही हूँ”।

“लास्ट मतलब क्या है?कृति क्या हुआ है ?”

विहान………………..  आई ल……….

 

आगे न बोल पाई।और रुकर बोली -ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण हिस्सा अकेले गुज़ार चुकी हूँ जहाँ जिस वक्त किसी का बहुत ही ज्यादा साथ होना चाहिए था।वो वक़्त अँधेरों में कट चुका ,अब तो सिर्फ मैं बिना किसी ख्वाहिशों के ही बाकी रह गई हूँ।ज़िंदा हूँ पर सिर्फ ज़िंदा हूँ।बस कोई मिल जाए, विहान तुम्हें तो पता है यार मुझे क्या चाहिए सिर्फ मुझे अपने दिल में बहुत सारी जगह दे दे कोई,और सिर्फ दोस्त जैसा ध्यान रखले पत्नी जैसा किरदार नहीं मांग रही।नाही उसके जैसा हक,हां बस वफादार हो इतना करम कर दे मुझपऱ।फिर बचीखुची ज़िन्दगी कट जाएगी ।पत्नी जैसा  प्यार न करे कोई बात नहीं बस ध्यान रखले मेरा । उससे उसका बिस्तर भी नहीं चाहिए,बस मन का साथ चाहिए। पत्नियों के कोई सुख नहीं चाहिए।

विहान विहान विहान.कभी तुमने पूछा था कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं कि नहीं मैं  कभी तुम्हें जवाब न दे पाई।पर 

 ……………….”विहान”तुझसे प्यार तो मैं बहुत पहले से करती हूँ अकेले होने के बाद जब से तुमसे मिली तब से,पर उसे मान पाना या बता पाना वो सत्य था

 

 जिसे बोलना  बहुत मुश्किल।”



कृति एक साँस सबकुछ बोले जा रही है।

उसकी आवाज़ रुंधने लगी।

विहान ने कहा-कृति …….

कृति बोली -“रुको विहान मुझे कह लेने दो आज न बोली तो फिर कभी न बोल  पाऊंगी।

विहान तुमसे प्यार करने के बाद किसी और का होना मुझसे न होगा,इसलिए आज तक तुमसे खुद को छुपाए रखा।और तुम्हे पा पाना एक न पूरा हो पाने वाला ख़्वाब।तो बोल मैं क्या करती।कोई रास्ता था क्या मेरे पास चुप रहने के अलावा।खुद को ये दिलासा की कोई आएगा उसका होना है।तुझे दिल मे रखूंगी तो धोखा होगा न ।पर आज जब किसी और से मुझे  दुबारा बाँधा जा रहा है, जो हर तरह से काबिल है मेरे बच्चे को भी अपनाएगा।

पर मेरी ज़िंदगी वही है मैं तेरे बाद उसे प्यार नहीं कर पाऊंगी।तुम सारी ज़िन्दगी मेरे ज़हन में रहोगे।हा पर मुझे ये रिश्ता निभाना होगा,मेरे पास कोई रास्ता नहीं।अब अकेले नहीं जिया जाता।किसी का  सहारा बहुत ज़रूरी है।

 

बोल क्या करूँ ?

पर ये अंतिम संवाद तुमसे कि – क्या तुम मुझे और मेरे बच्चे को अपनाओगे ?तुम्हारे बिना ……

हा कोई ज़बरदस्ती नहीं विहान मैं सिर्फ अंतिम संवाद करना चाहती थी।”मैं तुमसे तुम्हारा सिर्फ साथ माँगूँगी, तुम्हारे दो मीठे बोल हक से बस पूछ लोगे न कि तू कैसी है खाना खाई की नहीं तू ठीक है न।रोज शाम तेरे आफिस से आने का इंतज़ार करूँगी,तेरे बिना खाना न खाऊँगी। रोना आए तो कांधा दे देना एक बार जोर से गले लगा लेना बस तेरी बनाई छाया में थोड़ी सी जगह।

विहान ने कुछ न कहा…………………..

 

अनंत ख़ामोशी पसर गई  ………………,….

 

दीपा साहू “प्रकृति”

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