“ऑफिस में जब काम के बजाय चाटूकारिता को महत्व दिया जाता है तो मेहनत करने वाला इंसान कहीं ना कहीं हताश हो जाता है सर”…
रमन अपने अधिकारी सुरेन्द्र सिंह से कह रहा था। ” ऐसा तुम्हें क्यों लगा रमन? तुम बिना सोचे-समझे इल्जाम लगा रहे हो बड़े साहब पर” सिंह साहब ने फाइल पलटते हुए कहा।
सर! ” मैंने देखा है कि रजत काम-धाम कुछ करता नहीं है और दूसरे के काम को अपना बता कर बड़े साहब को ‘लल्लो चप्पो ‘करके अपनी बातों में उलझाए रखता है
और बड़े साहब भी उसकी हां में हां मिलाते हैं। देखिएगा सर एक दिन कंपनी डूबेगी तो वो दोनों जिम्मेदार होंगे और बड़े साहब सबसे ज्यादा,जिनकी आंखों पर रजत के नाम की पट्टी बंधी है
क्योंकि काम तो रिजल्ट पर निर्भर है ना। रात दिन कड़ी मेहनत करते हैं हम और प्रमोशन हमें ना मिल कर रजत को मिलती है।
” सही कह रहे हो… क्या ही कर सकते हैं जब बाॅस को ही सही ग़लत का ज्ञान नहीं है। कंपनी में मेहनतकश और इमानदार लोग होने चाहिए ना
की खुशामद करने वाले ” सिंह साहब भी भुक्तभोगी थे और यही चलता आ रहा था और ना जाने कब तक चलेगा क्योंकि बड़े साहब भी ऐसे ही उच्च पद पर पहुंचे थे।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी
मुहावरा और कहावतें लघु कथा प्रतियोगिता