लक्ष्य पर नजर – विमला गुगलानी

  चेतराम और मनसा राम दो भाई एक ही घर में पले बढ़े। तीन बहनें भी थी। समय के साथ सबके अपने परिवार हो गए। गांव में अपना घर और जमीन थी। मां बाप के मरने के बाद बंटवारा हो गया। आज भी बहुत कम बेटियां पिता की जायदाद में हिस्सा मांगती है, लेकिन समाज में बेटियों के प्रति संकीर्ण सोच रखने वालों की भी कमी नहीं। 

   बड़े भाई  चेतराम के दो बेटे राजवंत और किशोर हुए और छोटे  मनसा राम के एक बेटा अंगद और एक बेटी शालिनी हुई।दोनों भाईयों के घर पासपास ही थे और आना जाना भी था। चेतराम की पत्नी सारंगी स्वभाव की अच्छी नहीं थी, मुँह से तो मीठी लेकिन मन में जलन, खोट रखती थी।जबकि मनसा राम की पत्नी विनती कोमल ह्रदय और मीठे स्वभाव की थी।  

  सारंगी के दोनों बेटे पढ़ाई में मन नहीं लगाते थे। एक ने दसवीं और दूसरे ने चार सालों में बारहवीं पास की और खेती में लग गए। दूसरी तरफ अंगद को भी खेती का ही शौंक था लेकिन वो एग्रीकल्चर में डिग्री लेना चाहता था ताकि आगे बेहतर तरीके से आधुनिक उपकरणों  से आर्गैनिक खेती कर सके। 

     उसकी बहन शालिनी शुरू से ही खेलकूद में दिलचस्पी लेती और पढाई में भी अव्वल रहती। दोनों बहन भाई आगे की पढ़ाई के लिए शहर चले गए।सारंगी से यह सहन नहीं होता था कि देवर के बच्चे पढ़े लेकिन वो क्या कर सकती थी, लेकिन दिल का गुबार निकालने के लिए वो विनती को कहती , खेती ही तो करनी है, इसके लिए बेटे को पढ़ाई करने के लिए शहर भेजने की क्या जरूरत है, और लड़की को तो बिल्कुल भी अकेले नहीं छोड़ना चाहिए। भले ही होस्टल में रहें लोकिन क्या भरोसा, लड़की जात है क्या ऐतबार, कल को कुछ उँच- नीच हो गई तो पूरे परिवार की नाक कट जाएगी। 

       गांव में भी कुछ न कुछ उन्के विरूद्ध कीचड़ उछालती, खास तौर पर दबी जबान में  शालिनी के विरूद्ध तो कुछ न कुछ बुरा बोलती ही रहती। चली है कलक्टरनी बनने , आई बड़ी पढ़ाई करने वाली,वहां शहर में लड़के, लड़कियां साथ ही पढ़ते कम और घूमते ज्यादा है, और भी न जाने क्या क्या बोलती रहती।चेतराम और उसके बेटों ने भी कई बार समझाया कि माँ ऐसा कुछ नहीं, पढ़ाई बहुत जरूरी है, जो पढ़ सके जरूर पढ़े। काश , कि हम भी पढ़ सकते, चलो अंगद से कुछ न कुछ तो सीखेगें, भाई है हमारा। दोनों भाई शालिनी से बहुत प्यार करते थे, वही तो राखी बांधती थी उनहें। 

    उधर शालिनी कबड्डी चैम्पियन बन गई, स्कूल में भी उसका यही शौंक था। दीवाली पर सब इकट्ठा हुए तो शालिनी और उसके पहनावे को देखकर वो दंग रह गई। सुबह उठते ही वो जांगिग के लिए दूर निकल जाती । सारंगी से यह सब सहन न होता। 

  उसके जाने के बाद उसका फिर वही अलाप , राम जाने ये लड़की क्या गुल खिलाएगी। नाक कटवा के ही रहेगी। लड़की होकर कबड्डी खेलती है। अरे माँ लड़कियों की टीम अलग होती है, उसके बेटे समझाते। राम राम, कैसे निकर पहन कर घूमती है। 

      समय पंख लगाकर उड़ता गया, शालिनी ने स्टेट लेवल और उपर तक के मैच खेले और पढ़ाई भी की। डीलडौल तो पहले ही अच्छा था, उपर से स्पोर्टस कोटा , उसे पुलिस में नौकरी मिल गई। उधर अंगद ने खेती बाड़ी यूनिवर्सिटी से डिग्री लेकर दूसरी खेती के साथ साथ आर्गैनिक खेती की भी पिताजी से आज्ञा ले ली। 

     ग्राम पंचायत ने और स्कूल प्रिसिंपल ने भी अंगद और शालिनी का बहुत सम्मान किया। पुलिस की वर्दी में शालिनी को देखकर पूरे गांव को गर्व महसूस हुआ। अब तो सांरगी की बोलती बंद हो चुकी थी और वो उसे बिटिया बिटिया कहते न थकती। 

    शालिनी और अंगद  को ताई की सब बातों का पता था लेकिन उन्होनें  कभी किसी और ध्यान न देकर लक्ष्य पर अपनी नजर रखी और सफलता प्राप्त भी की।

दोस्तों, पाठकों, कोई किसी पर कितना भी कीचड़ उछाल ले, अगर अपनी नजर लक्ष्य पर हो मंजिल की और कदम हो तो सब संभव है, किसी की परवाह करने की जरूरत नहीं। 

विमला गुगलानी

चंडीगढ़।

मुहावरा- कीचड़ उछालना

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