लाडो – सविता गोयल

रामानंद आज बहुत खुश था। घर में कदम रखते ही सब को आवाज लगाई। उनकी एक आवाज पर ही सब भागे चले आए। 

“क्या बात है जी बहुत खुश लग रहे हैं?” रामानंद की पत्नी ने रसोई से निकलते हुए पूछा। 

अपनी सबसे छोटी बहन राधा के सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा, “हमाारी लाडो का रिश्ता पक्का करके आया हूँ। बहुत अच्छा खानदान है, घर का सबसे बड़ा लड़का है। हमारी लाडो बड़ी बहु बनकर राज करेगी।” 

ये सुनते ही राधा शरमाते हुए भाग गई| 

राधा चार भाईयों के बाद सबसे छोटी और लाडली बहन थी। रंग थोड़ा सांवला था लेकिन नैन नक्श बहुत सुन्दर थे। माँ ने तो प्रसव पीड़ा में ही प्राण त्याग दिए थे। और पांच साल की उम्र में ही पिता का साया भी सर से उठ गया। लेकिन चारों भाईयों ने अपनी बहन की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। कुछ सालों के बाद बडे़ भाई रामानंद की शादी हो गई। भाभी भी मां स्वरूप ही आई थी। भाई – भाभी के अपनत्व की छांव में राधा को कभी मां- बाप की कमी महसूस नहीं हुई। 

उम्र तो सोलह बरस हो गई थी लेकिन सबसे छोटी होने के कारण उसमें बहुत बचपना था। बच्चों के साथ खेलती, कूदती, अपनी पसंद का खाना खाती। घर के काम काज का भी ज्यादा दबाव नहीं था। 

अब भाई- भाभी का यही सपना था कि बस एक अच्छा घर- बार देखकर उसके हाथ पीले कर दें। उनका ये सपना अब पूरा होता दिखाई दे रहा था। 

अपनी लाडली बहन को विदा करना उनके लिए आसान तो नहीं था लेकिन दुनिया की रीत के आगे किसी का बस नहीं चलता। 

खुब सारे दान- दहेज के साथ उन्होंने अपनी छोटी बहन को विदा किया। हाथ जोड़कर दस बार लड़के वालों से विनती की कि उनकी बहन का ख्याल रखें। कोई गलती होने पर अपनी बच्ची समझकर माफ़ कर दें। सहमे-सहमे कदमों से राधा ने गृह प्रवेश किया। राधा के ससुराल में कई सदस्य थे। छोटे- छोटे चार देवर और ननदें थी। उम्र में कोई दो चार साल का ही अंतर था उन्हें देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। 

लेकिन वो शायद भूल रही थी कि ये उसका मायका नहीं ससुराल है। राधा को सुबह जल्दी नाश्ता करने की आदत थी लेकिन ससुराल में घर के सब मर्दों के काम पर निकलने के बाद ही घर की औरतें नाश्ता करती थीं। रात को भी सबके खाने के बाद ही खाना नसीब होता था। 

कभी बच्चों के हाथ में खाने की चीजें देखकर उसका भी मन मचल जाता लेकिन “ये तो बच्चों के खाने की चीजें हैं।,, बोलकर मना कर दिया जाता। लेकिन राधा की ननद जो लगभग उसी की उम्र की थी। कभी कभी अपने हिस्से की चीजें माँ से छिपा कर राधा को दे दिया करती थी। राधा भी अपने देवर और ननदों के साथ सहेलियों की तरह व्यवहार करती थी। लेकिन समय- समय पर उसे याद दिला दिया जाता था कि वो इस घर की बहु है बेटी नहीं। हर बात पर सुनाया जाता की माँ बाप तो थे नहीं और भाई भाभी ने कुछ सिखाया नहीं। धीरे- धीरे घर के सब कामों की जिम्मेदारी भी उसपर डाल दी गई। बरतन और कपड़ो के ढेर लगा दिए जाते। मायके में भाई- भाभी ने कभी बर्तन नहीं मंजवाए लेकिन यहाँ राख से बर्तन मांजने के बाद अपने काले हाथों को देखकर उसका रोना छूट जाता।उसे सजने संवरने का बहुत शौक था लेकिन ससुराल आने के बाद आईने के आगे बैठती तो सास ताना मारते हुए कहती, “क्या फायदा है इस श्रृंगार का रहेगी तो सांवली ही।,, बेचारी राधा मन मारकर रह जाती। 

खाना बनाते वक्त भी उसके हाथ कांपते थे क्योंकि जरा सी ऊंच- नीच हो जाने पर ससुर जी और सासु माँ थाली सरका देते थे। कई बार वो घर के पिछवाडे में छुप कर रो लेती थी। मन ही मन कहती “भैया मुझे क्यों ब्याह दिया।,, दिपावली का त्योहार आने वाला था। रामानंद और सभी भाई अपनी बहन का हालचाल जानने को व्याकुल थे। भाभी ने बहुत सी मिठाईयाँ और साड़ी- कपड़े बांध दिए। सारा सामान लेकर रामानंद अपनी बहन के ससुराल जाने को तैयार हो गया। उधर राधा को याद भी नहीं था कि दिवाली आने वाली है। उसके लिए तो कब सुबह होती और कब शाम पता ही नहीं चलता। राधा झाड़ू निकाल रही थी तभी राधा की सासु माँ ने राधा को चाय बनाने के लिए कहा। बेचारी राधा हड़बड़ाहट में चीनी डालना भूल गई। सासु माँ ने गुस्से में चाय का गिलास ही फेंक दिया। चाय के कुछ छींटे राधा के ऊपर भी पड़ गए। वो दर्द से चीख पड़ी। 

उसी समय रामानंद ने घर में प्रवेश किया। अपनी छोटी बहन की ये हालत देखकर उनका हृदय छलनी हो गया। राधा उनसे लिपट कर रो पड़ी। 

रामानंद ने पूछा, “लाडो क्या बात है।,, राधा ने कहा, ” कुछ नहीं भैया। मेरे हाथों से ही गिलास फिसल गया था। मैं बिलकुल ठीक हूँ।,, राधा के मुंह से ऐसा सुनकर सासु माँ झेंप गई। लेकिन रामानंद समझ गए कि उनकी बहन ससुराल आते ही सचमुच बड़ी हो गई है जो बातें छिपाना भी सीख गई है। रामानंद के आते ही सभी ससुराल वालों के बर्ताव में काफी बदलाव आ गया। लेकिन अपनी बहन के चेहरे पर झूठी मुस्कान देखकर उनका मन दुखी हो रहा था। 

वापस घर आते वक्त रामानंद के पैर इतने भारी हो गए थे जैसे किसी ने उनमें पत्थर बांध दिए हों। घर आकर वो बहुत उदास थे। खुद को ही बहन की दशा के लिए दोषी ठहरा रहे थे कि अपनी छोटी सी बहन को क्यों ऐसे घर में ब्याह दिया। लेकिन कहते हैं न समय एक जैसा नहीं रहता। अपने पिता स्वरूप भाई को दुखी देखकर राधा ने भी ठान ली थी कि वो उनकी परवरिश पर ऊँगली नहीं उठने देगी। जिम्मेदारी निभाते-निभाते छोटी सी उम्र में ही राधा परिपक्व हो गई। धीरे-धीरे राधा ने अपने व्यवहार से सब के दिलों में और घर में अपनी जगह बना ली। अगली बार जब राधा के भैया उसके ससुराल आए तो उन्हें राधा का अलग ही रूप देखने को मिला। इस बार उन्हें संतुष्टि हो गई कि उनकी लाडो अब सच में बड़ी हो गई है। 

प्रिय पाठकों, ये कहानी लगभग 40-45 साल पहले की है जब छोटी उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी दी जाती थी। ये कहानी एक वास्तविकता है जिसे मैंने शब्दों में उकेरने का प्रयास किया है। आपको मेरी ये कहानी कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देना।

 #अपनत्व की छांव 

सविता गोयल

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