क्या तुम्हारा बच्चा अनोखा है? – रेखा सक्सेना : Moral Stories in Hindi

रीमा एक पढ़ी-लिखी, समझदार और संस्कारी लड़की थी जिसकी शादी एक बिजनेसमैन अर्जुन से हुई। अर्जुन का अधिकतर समय शहर से बाहर मीटिंग्स में बीतता। ससुराल में रीमा के साथ सास, ससुर, दो कॉलेज जाती ननदें और एक देवर रहते थे। रीमा ने कभी किसी बात की शिकायत नहीं की, ससुराल को अपना घर समझ लिया।

पर धीरे-धीरे उसे समझ आया कि इस घर में बहू का मतलब सिर्फ काम करने वाली है।

सासू माँ के घुटनों में तकलीफ़ रहती थी, ननदें पढ़ाई में व्यस्त थीं, और देवर बेफिक्र। ऐसे में सारा काम रीमा पर ही आ गया।

एक दिन थकी हुई रीमा ने धीमे से कहा,

“मम्मी जी, थोड़ी देर बैठ लूं?”

सास ने झट जवाब दिया,

“हमने भी बहुएं देखी हैं, सब कर लेती थीं। क्या तुम्हें ही सब मुश्किल लगता है?”

रीमा मुस्कुरा कर फिर काम में लग गई। सास की बातों में ताना छुपा होता, लेकिन रीमा चुपचाप सहती रही।

कुछ समय बाद रीमा माँ बनी। एक प्यारी सी बच्ची ने जैसे उसकी दुनिया में रंग भर दिए। पर जिम्मेदारियाँ और बढ़ गईं। अर्जुन को एक विदेशी प्रोजेक्ट पर दो साल के लिए बाहर जाना पड़ा। अब रीमा अकेली पड़ गई — एक नवजात, पूरे घर का काम और सास के ताने।

रात-रात भर जागना, दिन में झुक-झुक कर काम करना… जब कभी वह थककर कहती,

“रति रात भर रोती रही मम्मी जी…”

तो उत्तर मिलता,

“क्या तुम्हारा बच्चा अनोखा है? हमने भी बच्चे पाले हैं।”

रीमा का मन हर रोज़ टूटता, पर चेहरा मुस्कुराता रहता।

दिसंबर की एक सुबह थी। घर में ननद की सगाई थी। उसी सुबह रति को उल्टी-दस्त होने लगे। रीमा घबरा गई।

“मम्मी जी, रति की तबीयत बहुत खराब है, डॉक्टर को दिखा दूं?”

सास बोलीं,

“आज? सगाई है, एक दिन रुक जा। कुछ नहीं होगा।”

रीमा ने सारा दिन बर्तन धोए, पानी भरा, तैयारियाँ कीं, बच्ची को दूध पिलाया — और ठंड लगने से खुद भी कांपने लगी।

रात में बच्ची की हालत बिगड़ती गई। सुबह तक रीमा ने निर्णय ले लिया।

“मैं डॉक्टर के पास जा रही हूँ,” उसने कांपती आवाज़ में कहा।

सास ने घूरते हुए कहा,

“इतनी बड़ी सगाई छोड़कर? ये भी कोई समझदारी है?”

लेकिन रीमा अब नहीं रुकी। पहली बार अकेले घर से बाहर निकली और बच्ची को लेकर पास के शहर के अस्पताल पहुंची।

डॉक्टर ने देखा और तुरंत कहा,

“अगर एक घंटे और देर हो जाती, तो बच्ची को बचा नहीं पाते।”

रीमा की आंखों से आंसू बह निकले। तीन दिन अस्पताल में रहीं, बच्ची ठीक हुई। तभी ससुर जी अस्पताल आए। उन्होंने रीमा को सहारा दिया और घर लौटकर सास को सब बताया।

रात को सास रीमा के पास आईं। देखा, वो बच्ची को गोद में लिए बैठी थी, खुद बुखार में तप रही थी। सास का दिल पसीज गया।

धीरे से रीमा का हाथ पकड़ा और कहा:

“बहू नहीं, तू मेरी बेटी है। मैंने तेरी तकलीफ़ें नहीं देखीं, पर आज समझ आ गया… तू अकेली नहीं थी, मैं ही अंधी थी। माफ कर दे मुझे।”

रीमा की आंखों से फिर आंसू निकले, पर इस बार उनमें राहत थी।

उस दिन के बाद से सास-बहू का रिश्ता बदल गया। अब ताने नहीं, बातें होती थीं। अब आदेश नहीं, सहयोग होता था। पहली बार रीमा को लगा… अब यह घर सच में उसका अपना है।

Rekha saxena 

#”सास को बहु की तकलीफ़ नहीं दिखती”

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