क्या सारी जिम्मेदारी बहुओं की ही है – मंजू ओमर

वेदिका बहू तुमने सारी तैयारी सही से कर ली है न, कोई चीज रह तो नहीं गई है। हां मम्मी  जी , हां बेटा ध्यान रखना देखो ननद की गोद भराई की रस्म है सबकुछ ठीक से होना चाहिए।ये जिम्मेदारी तो घर की बहू की ही होती है ये ध्यान रखना। क्या वेदिका तुम अभी तक तैयार नहीं हुई, आखिर घर की बहू हो ढंग से तैयार होना तो बनता है न रजत बोला। हां हां पता है कि मैं घर की बहू हूं और सबकुछ जिम्मेदारी मेरी ही है। इतनी सारी जिम्मेदारी डाल दी गई है मुझपर कि मैं तो सोच रही हूं कि बेकार में बहू बनी , बेटी ही रहती तो अच्छा था ।

            ‌ वेदिका की ऐसी बात सुनकर रजत बोला अरे ऐसा क्यों बोल रही हो अगर शादी ना होती तो इतनी प्यारी पत्नी कहां से मिलती ।अब हर जिम्मेदारी मुझ पर ही डाल दी जाती है रजत यह कहकर कि तुम इस घर की बहू हो। और बहू की जिम्मेदारी है। इस घर में दो दो बहुएं और भी तो है कोई उनकी जिम्मेदारी नहीं है क्या, आप वह इस घर की बहू नहीं है क्या वह तो बस मेहमानों की तरह आती है और खाया पिया बस खिसक लिया ।सारी जिम्मेदारी मुझ पर ही क्यों।

                देखो वेदिका दोनों भाभियों ने  घर से भाग कर अलग घर मे रहने चली गई।उनको परेशानी थी घर की जिम्मेदारी उठाने में ।तुमने आकर घर को घर बनाया और प्यार से सबको अपनाया ,बहन नेहा, नेहा को भी अपनी छोटी बहन की तरह प्यार करती हो ।मम्मी पापा का भी इतना ख्याल रखती हो सब लोग खुश और निश्चित है कि दोनों बहूएं चली गई तो क्या-वेदिका तो है सब कुछ संभाल लेगी ।तुम्हें सब कितना प्यार करते हैं ।हर तरफ वेदिका  , वेदिका  की ही आवाज आती है ।कितनी खुशकिस्मत हो तुम ।रजत की ऐसी बातें सुन वेदिका दोनों जेठानियों से अपनी बराबरी करने लगी और बोली हां रजत तुम सही कह रहे हो ,मैं अपनी जिम्मेदारी सही से निभाती हूं तभी तो घर में सब मुझसे प्यार करते हैं, मान सम्मान देते  हैं ।और नेहा, नेहा तो मुझे  वो बातजो अपनी मां से नहीं कह पाती मुझसे कर लेती है  मुझे बड़ा अच्छा लगता है। पता नहीं क्यों मैं अपनी बराबरी तुम्हारी भाभियों से कर रही हूं। उन्होंने तो जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया है। लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी ।ये हुई न बात रजत बोला , कितनी समझदार है हमारी प्यारी सी पत्नी।

             सब काम निपट जाने के बाद वेदिका एक कप चाय लेकर बैठी  ही थी कि मां का फोन आ गया।हेलो मां , हां वेदिका बेटा सब काम निपट गया अच्छे से हो गई फुर्सत , हां  मां हो गई फुर्सत । हां मां एक बात बताओ घर में तीन तीन बहुएं है , मेरी दो जेठानी और है । लेकिन उन लोगों को तो कोई मतलब ही नहीं है ।घर में ननद की शादी है और सारी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है । क्या सिर्फ मैं ही इस घर की बहू हू क्या।इस घर का रूपया पैसा मकान क्या सबकुछ मुझे ही मिलेगा क्या। नहीं बैटा ये तो पैतृक संपत्ति है उस पर हर बेटा बहू का हक है ।चाहे वो कोई जिम्मेदारी उठाये या नहीं सब में बराबर से बांटी जाएगी। लेकिन जो सबसे जरूरी चीज है वो है जिम्मेदारी और उसके संग संग घर के हर छोटे का प्यार और बड़ों का आशीर्वाद भी तो मिलता है । प्रेम और प्यार भी तो मिलता है। बेटा जहां घर के बड़े खुश हो वहां तो सबकुछ अपने आप ही मिल जाता है। कुछ मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। फिर बड़ों के आशीर्वाद से बढ़कर और क्या चाहिए होता है बेटा। बड़ों के आशीर्वाद में इतनी ताकत होती है कि सबकुछ अपने आप ही मिल जाता है। तुम्हें अपना समझ कर , तुम्हारे व्यवहार से खुश होकर सास ने तुझपर सारी जिम्मेदारी सौंपी है और तुमने उसे करके दिखाया है। इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है बेटा।अपनी जिम्मेदारी यों से पीछे नहीं हटी तू अपने ससुराल में तो अपना मान तो बढ़ाया है न बेटा।और मेरा भी सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है कि मेरी बेटी है तू।

            वेदिका, वेदिका की आवाज कानों में पड़ी तो वेदिका मां से बोली अच्छा मां मैं फोन रखती हूं कोई बुला रहा है। वेदिका बाहर गई तो रजत आवाज दे रहा था ।उसको बाजार से सब्जी  लाना था तो वहीं पूछ रहा था।

             उधर सासू मां फोन पर बात कर रही थी, अरे मेरी वेदिका तो हर काम में इतनी कुशल है कि मुझे तो कोई चिंता ही नहीं रहती ।बहू की जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाती है वो।मैं तो वेदिका को बहू के रूप में पाकर धन्य हो गई हूं।और भी तो है घर में दो दो बहुएं पर उनसे तो कोई उम्मीद नहीं रख सकती।बस मेहमानों की तरह आई और चली गई।उनको क्या मतलब है कि घर में नन्द की शादी है ।सब काम वेदिका ही दौड़ दौड़ कर करती है। वेदिका को काम करते देख दोनों बहुएं कुटिल सी हंसी हंसती है। आखिर घर की जिम्मेदारी और शादी की जिम्मेदारी किसी को तो उठानी ही पड़ेगी न ।

    वेदिका सासू मां के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर मन ही मन खुश हो रही थी। शादी के दो साल बाद वेदिका के बेटा हुआ। जितना वेदिका ने किया ससुराल के लिए उससे बढ़कर ननद और सास ससुर उसका ख्याल रख रहे थे वेदिका का ।सारे दिन वेदिका को हिदायत दी जाती थी कि आराम करें ।उधर जेठानी को भी कुछ दिन पहले बेटा हुआ था ,सास को बुलाया था देखभाल करने को लेकिन उन्होंने मना कर दिया जाने से कि मुझे यहां वेदिका का ख्याल रखना है।में नहीं आ सकती ।नौकर चाकर लगाकर जेठानी ने किसी तरह काम चलाया।

              जेठानी के बच्चे को संभालने केलिए एक नौकरानी रखी थी क्योंकि आपरेशन से बच्चा हुआ था।एक दिन जेठानी ने देखा बच्चा रो रहा है और नौकरानी फोन पर बात कर रही है।वो ढंग से बच्चे का ध्यान नहीं रखती है ‌उस नौकरानी को निकाल कर दूसरी को रखा लेकिन सब वैसी ही निकली घर के मेम्बर की तरह थोडे ही कोई ध्यान रखेगा। मायके में मां भी नहीं थी कि आ जाती।

            और यहां वेदिका का बच्चा हाथों हाथ पर रहा था । वेदिका के पास तो तभी आता जब वो भूखा होता ।सारा दिन सास ही उसकी देखभाल करती।और एक नौकरानी रखी थी थी जिससे अपने सामने सबका खाना पीना बनवाती और वेदिका के लिए अलग से पौष्टिक आहार बनता।बीस पच्चीस दिन में वेदिका अच्छी स्वस्थ हो गई।और जेठानी को ढंग से पोषक आहार भी नहीं मिल पा रहा था। जिससे वो दो महीने हो गए तब भी ठीक नहीं हो पा रही है।

        बस यही फर्क हो जाता है जिम्मेदारी उठाने में और जिम्मेदारी यां उठवाने में । ऐसा परिवार पाकर और मां की बात याद करके कि जिम्मेदारी घर की बहुओं की ही होती है और किसी की नहीं। जितनी जिम्मेदारी उठाओगी उतनी ही घर की तवज्जो भी मिलती है । यही तो रीत चली आ रही है हमेशा से । इसलिए जिम्मेदारी से कभी न भागों ।

      वेदिका ने मां को फोन किया धन्यवाद मां ,किस बात का बेटा , मुझे मेरी जिम्मेदारी का अहसास दिलाने के लिए और दोनों मां बेटी हंसने लगी ।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

27 अक्टूबर

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