क्या सारी जिम्मेदारी बहुओं की ही है! – कुमुद मोहन

“बहू!तुमने सिया को फोन कर के उसकी सास  का हाल चाल नहीं लिया” रमाजी झुंझलाती हुई अपनी बहू अवनी से बोली जो ऑफिस से आकर घर में घुसी ही थी!

“मम्मी!आप दिन में कई बार दीदी को फोन करती हैं आप ही पूछ लेतीं? मेरे ऑफिस में आज मीटिंग थी मुझे जरा सा भी टाइम नहीं मिला!”और फिर कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी दीदी की सास का थोड़ा बीपी बढ़ गया होगा जो अक्सर ही हो जाता है तभी तो दीदी का फोन कल माॅल में धूमते हुए आया था अगर उनकी सास बहुत बीमार होती तो क्या वे माॅल घूमतीं?”अवनी जो ऑफिस से थकी हारी आई थी अपने गुस्से को अंदर ही अंदर दबाकर बोली!

सुनते ही रमाजी गुस्से से बिलबिला उठीं और अवनी के दादा-परदादा को उसकी ऐसी परवरिश पर स्वर्ग से घसीट लाईं!” तमक कर बोली बस जबान चलवा लो इनसे अरे!मेरे पूछने की बात और है तुम बहू हो घर की तुम्हारा भी तो फर्ज बनता है कि ना?आजकल की बहुऐं भी ना!बस सुबह-सुबह उठीं उल्टा सीधा कच्चा पक्का खाना बना, पर्स लटका  चल दीं!घरवालों की तो कोई फिकर ही ना है!खाओ मत खाओ उनकी बला से!

दिनभर फोन से चिपकी रहेंगी पर मजाल है जो ननद की सास का हाल ही पूछ लेती!

“रमाजी ने ताना दिया!

अवनी को समझ नहीं आया कि ननद के ससुराल फोन करना क्या उसकी ही जिम्मेदारी क्यूं?घर में पापाजी हैं जो सिवाय अखबार पढ़ने और टीवी देखने के और कुछ नहीं करते!

मम्मीजी या तो पडोसिन से गेट पर खड़ी होकर घंटों बातें करती हैं  या अपनी बेटियों से फोन पर बतियाती रहती हैं!

छुट्टी के दिन अक्सर मम्मी जी अपनी बेटी दामाद को डिनर पर बुला लेती और अवनी को सबकी मनपसंद की अलग अलग डिशेज बनाने का आर्डर देतीं!उनके हिसाब से बेटी अगर इसी शहर में रहती है तो मायके वालों को उसे छुट्टी के दिन तो बुला ही लेना चाहिए बाकी दिन तो किसी को फुर्सत ही कहां रहती है!हर छुट्टी के दिन अरूण की बहन अपने परिवार सहित आती और अवनी बेचारी किचन में पकवान बनाती सब मजे से बैठ खाते!

अगर अवनी की ननद उसका हाथ बंटाने किचन में जाना चाहती तो मां उसे हाथ पकड़कर बैठा लेती कि ससुराल में रोज तो खटती है कम से कम हफ़्ते में एक दिन तो चैन की गरम गरम रोटी खा ले!

कभी यह नहीं सोचती कि बहू का भी कभी-कभार चैन से बैठ कर गरम रोटी खाने का मन करता होगा! अवनी का मायका भी तो इसी शहर में है!उसके लिए तो कोई नहीं सोचता!

उस दिअवनी के भतीजे का मुंडन था अवनी के मम्मी पापा ने सबको बुलाया था !सुबह मुंडन का कार्यक्रम और शाम को दावत थी!तय हुआ कि मुंडन के वक्त अवनी और अवनी का पति अरूण जाऐंगे फिर शाम को बाकी सब!

अवनी ने ऑफिस से छुट्टी भी ले ली थी मुंडन क्योंकि बुआ की गोद में बच्चे को बैठाकर होना था इसलिए अवनी ने जल्दी-जल्दी लंच बना काम निपटा लिया!वह लोग निकलने वाले ही थे तभी अरूण की बुआ आ गई !बस मम्मी जी ने फरमान जारी किया कि बुआ जी को चाय नाश्ता करा दो तब चली जाना! ऐसा करो ज्यादा कुछ नहीं बस गरम पकौड़े और सूजी का हलवा बना लो!वैसे भी मुंडन तुम्हारी गोद में ही होगा वो लोग तुम्हारा तो इंतज़ार करेंगे ही!

अरूण ने कहा भी कि मुंडन का मुहूर्त है हमें देर हो जाऐगी!बस इतना कहना था कि बुआ तमक कर बोली”दैया रे!अभी से जोरू का गुलाम हो गया!अरे!आजकल तो लडकियाँ सोचकर ही आती हैं कि सबसे पहले पति को मुट्ठी में करो ,फिर घर पे कब्जा करो और मां-बाप को घर से बाहर करो!

थोड़ी-बहुत देर हो भी जाऐगी तो कौन सा आस्मान टूट पड़ेगा,भतीजे का मुंडन ही तो है ब्याह तो ना हो रहा जो मुहूर्त टल जाऐगा!

हमारे जमाने में तो पहले ससुराल हुआ करे था पीछे मायका”बुआ जी बड़बड़ाती रहीं!

“अरे भाभी!मैने तो पहले ही तुम्हे समझाया था नौकरी करने वाली बहू मत लाओ पर तुम्हें और अरून को हर महीने मोटी पगार लाने वाली का लालच था ना!अब भुगतो!इनका जब घर से बाहर पैर निकल जावे तो कोई आवे कोई जावे और घर गृहस्थी से कोई मतलब ना रहता”

बुआ जी का प्रवचन जो एक्सप्रेस मेल की तरह शुरू हुआ तो थमने का नाम नहीं!

खैर! बुआ जी की खातिर कर अवनी और अरूण निकल लिये!

अवनी की बुआ कई साल बाद लंदन से आई थी!उनकी और अवनी की बहुत पटती थी!दोनों बुआ भतीजी एक दूसरे के बहुत नजदीक थी!अवनी बहुत खुश थी कि आज वह डिनर के बाद मायके में रूकेगी और बुआ से ढेर सारी बातें करेगी!

उसे बहुत बुरा लगा जब खाने के बाद उसकी सास  ने कहा”मिल तो ली तुम अपने सारे रिश्तेदारों से!अब रूक कर क्या कर लोगी रात में सोना ही तो है!जैसे यहां वैसे ही वहाँ!बुआ जी भी होंगी मैं अकेले कैसे संभालूंगी?

अवनी के मन में आया कि जवाब दे दे कि क्या घर की जिम्मेवारी सिर्फ उसी की है उसकी शादी से पहले भी तो बुआ जी या और रिश्तेदार आते होंगे तब भी तो मम्मीजी सब करती होंगी!अब ऐसा क्या हो गया कि वे एक कप चाय भी बनाना नहीं चाहती!सारी उम्मीदें बहू से ही क्यों?बुआ जी एक हफ्ते रहीं उनकी सी बी आइ सी पैनी नज़र हर वक्त अवनी पर लगी रहती वे अवनी की हर बात में नुक्स निकाल कर रमाजी के कान भरतीं!क्योंकि उन्हें नौकरी करने वाली बहू बिल्कुल पसंद नहीं थी!

हद तो तब हुई जब बुआ जी को विदा करते हुए अवनी की सास ने अवनी को कहा अब बाज़ार जाने का तो टाइम नहीं!अवनी को जो साड़ी उसकी मम्मी ने मुंडन के नेग में दी है वही बुआ जी को दे देंगे! अवनी की बुआ ने भी बहुत सा सामान उसे दिया है इतने सामान का वो करेगी भी क्या?”क्यूं बेटा !तुम्हें तो कोई ऐतराज नहीं है ना”!

मन से दुखी ऊपर से फीकी मुस्कान के साथ अवनी ने हामी भर दी।मां ने विदाई के वक्त सब्र और जिम्मेदारी के पाठ की घुट्टी जो पिलाई थी!

यह कोई नई बात भी नहीं थी अक्सर मम्मी जी अवनी का कोई न कोई सामान अपनी बेटियों को दिलवाती रहती यह कहकर कि उसके पास तो बहुत है क्या करेगी इतने सामान का?

तभी अरूण आ गया उसने सब सुन लिया उसने मां को समझाया कि वह साड़ी अवनी की मम्मी ने अवनी को पसंद करके खरीदवाई थी!बुआ जी के सामने बात होगी तो वे बतंगड बनाऐंगी !मैं पैसे दे देता हूं आप बुआ जी को विदाई दे दें!पैसे पाकर वे ज्यादा खुश रहेंगी !

“एक बात और मम्मी!इस घर में ऐडजस्टमेंट सिर्फ अवनी ही क्यूं करे,हर चीज की जिम्मेदारी सिर्फ उसी की ही तो नहीं !मैं कुछ कहूं तो आपलोग मुझे जोरू के गुलाम का ताना देते हो!कभी तो उसकी भावनाओं की भी कद्र करें!

जो व्यवहार आप मेरी बहनों से उनके ससुराल वालों का चाहती हैं उसी तरह का व्यवहार अवनी से भी करें तो घर में कोई टेंशन न रहे।उससे उतनी ही उम्मीद रखें जितनी जरूरी हो!”

अरूण ने काफी संजीदगी से मां को समझाया “अवनी घर बाहर सब जगह इतने अच्छे से संभाल रही है!घर की सुख-शान्ति के लिए अच्छा है सब एक दूसरे को समझें,एक दूसरे का ख्याल करें।मैं अवनी को लेकर आपको कटघरे में खड़ा नहीं कर रहा पर ठंडे दिमाग से इस मसले पर सोचें!

जब हम सबको मिलकर एक साथ रहना है तो थोड़ा सामंजस्य बिठाकर रखें!आपको किसी को कुछ देना है मुझे बताया करें मैं खुशी खुशी कर दूंगा!पर प्लीज़ अवनी के सामान में से देने को मत कहा करें!मुझे उम्मीद है आप मेरी बात समझ रही हैं”

रमाजी को लगा अरूण ठीक कह रहा है!अवनी के भी कुछ सेंटीमेंट्स हैं हमे उसका ध्यान करना चाहिए!अच्छा हुआ अरूण ने समय रहते उनकी आँखें खोल दीं!

अक्सर कुछ घरों में यही देखा जाता है बहू आते ही सारी जिम्मेदारी उसी पर डाल दी जाती है!अगर सब मां-बाप बहू की जगह अपनी बेटी को रखकर देखें तो यह समस्या रहे ही न।

कुमुद मोहन

स्वरचित-मौलिक 

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