मासी हाथ में चाय का कप हाथ में लिए।ओ आसमान की तरफ देख रही थी और सोच रही क्या यही मेरी जिंदगी है सच या सपना तभी मोहित आया। और बोले माही तुम सारा दिन क्या करते हो, सारा घर बिखरा पड़ा है, संभाल नहीं सकती तुम क्या घर पर रहती हो फिर भी ठीक से काम नहीं करती हों।माही ने कहा आपको पता है। आज मां की तबीयत खराब हो गई थी ।उन्हें हॉस्पिटल लेकर गई ।आज सारा दिन वहां लग गया, आकर घर का सारा काम किया ।खाना बनाया सब को खाना देकर आई हूं ।मुझे बहुत ज्यादा थकान हो रही थी ।इसलिए चाय लेकर आई हूं,। मोहित बोला इसमें कौन सा बड़ा काम है, यह सब तो तुम्हारी जिम्मेदारी है। माही बिना कुछ बोले वहां से चली गई, और अपने काम लग गई ,तभी सासु मां ने कहा माही मेरे पैरों में दर्द हो रहा दबा दे, कुछ आराम मिल जाएगा। तभी मोहित कमरे में से बोला माही मेरा दूध कहा मुझे जल्दी लाकर दो पीकर सोना है माही एक एक सब को दूध देने लगी तभी ससुर जी बोले बेटा मेरी दवाई देना। माही बोली जी पापा जी, जब तक माही मोहित के पास दूथ लेकर पहुंची, वह सो चुका था। माही ने कहा दूध पी लो वह बोला तुम्हें एक बार में समझ नहीं आता इसै ले जाओ यहां से मुझे नहीं पीना तुम पी लेना फिर माही चुपचाप रसोई घर में आ गई फिर सासु मां के पैरों की मलीश करने लगी रात के ग्यारह बज गए अब माही खाना खाने बैठी तो उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे और मन में सोच रही आज शादी को पन्द्रह साल हो गये मुझे पता नहीं कभी सुकून से उठी हूं
सुबह चार बजे उठती हूं और रात के ग्यारह बजे के बाद बिस्तर मिलता है ससुर जी की दवाई बार बार चाय पानी सासु मां पैरो की मलिश पति और बच्चों के लिए लंच तैयार करके आफिस भेजना फिर घर के काम करना एक भी दिन आराम नहीं मिलता फिर भी परिवार में कोई खुश नहीं।सब का ध्यान रखती हूं फिर भी सब को मुझ से शिकायत रहती है। फिर खाना खाकर बर्तन साफ कर सोने गई, तभी देखा रात के बारह बज गए।अगले दिन फिर वही दिनचर्या हो रही थी आज शाम को माही का शरीर थका हुआ था चुपचाप बैठी थी तब मोहित बोला क्या जब भी मैं घर आता तुम हमेशा मुंह बना कर रखती हो वह माही बोली मैं थक गई हूं ।
मोहित बोला आफिस में कितनी महिलाएं काम करती है और तुम घर बैठे बैठे थक जाती हो।तब माही के सब्र का बांध टूट गया और बोली बहूं होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है लेकिन क्या सारी जिम्मेदारी केवल बहू की हैं और किसी की नहीं मेरा भी मन करता की मुझे भी एक दिन काम से छुट्टी मिल जाए मुझे भी कभी कोई कहे तुम आरम से बैंठो में तुम्हारे लिए अदरक वाली चाय बना कर पिलाए और फिर चुपचाप वहां से उठ कर चली गयी फिर माही सब काम करके सोने चली गई अगले दिन बिस्तर पर लेटी हुई थी तब वहां मोहित चाय लेकर आया और बोला माही तुम चाय पीलो ।माही ने देखा और बोली यह सब कैसे
मोहित ने कहा माही तुम इस परिवार की नींव हो नींव का मजबूत होना अति आवश्यक है और बोला तुम मेरी अर्धांगिनी हों इसलिए तुम्हारे साथ में तुम्हारी जिम्मेदारी भी मैं बराबर है आज माही के चेहरे पर सुकुन के साथ मुस्कान थी
यह घर घर की कहानी है जहां बहूं परिवार की नींव होती है सदा उनके साथ रहती है जो लोग हमेशा यही ताना देते हैं यह तुम्हारा घर नहीं है असलियत में बहू परिवार की रीढ़ की हड्डी होती है सब को सुख दे खुद लाखों दुख सहन कर खुश रहती है #क्या सारी जिम्मेदारी बहू की होती है #
मासी हाथ में चाय का कप हाथ में लिए।ओ आसमान की तरफ देख रही थी और सोच रही क्या यही मेरी जिंदगी है सच या सपना तभी मोहित आया। और बोले माही तुम सारा दिन क्या करते हो, सारा घर बिखरा पड़ा है, संभाल नहीं सकती तुम क्या घर पर रहती हो फिर ठीक से काम नहीं कर सकती माही ने कहा आपको पता है आज मां की तबीयत खराब हो गई थी उन्हें हॉस्पिटल लेकर गई आज सारा दिन वहां लग गया आकर घर का सारा काम किया खाना बनाया सब को खाना देकर आई हूं मुझे बहुत ज्यादा थकान हो रही थी ।इसलिए चाय लेकर आई हूं, मोहित बोला इसमें कौन सा बड़ा काम है, यह सब तो तुम्हारी जिम्मेदारी है। माही बिना कुछ बोले वहां से चली गई, और अपने काम लग गई ,तभी सासु मां ने कहा माही मेरे पैरों में दर्द हो रहा दबा दे, कुछ आराम मिल जाएगा। तभी मोहित कमरे में से बोला माही मेरा दूध कहा मुझे जल्दी लाकर दो पीकर सोना है माही एक एक सब को दूध देने लगी तभी ससुर जी बोले बेटा मेरी दवाई देना। माही बोली जी पापा जी, जब तक माही मोहित के पास दूथ लेकर पहुंची, वह सो चुका था। माही ने कहा दूध पी लो वह बोला तुम्हें एक बार में समझ नहीं आता इसै ले जाओ यहां से मुझे नहीं पीना तुम पी लेना फिर माही चुपचाप रसोई घर में आ गई फिर सासु मां के पैरों की मलीश करने लगी रात के ग्यारह बज गए अब माही खाना खाने बैठी तो उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे और मन में सोच रही आज शादी को पन्द्रह साल हो गये मुझे पता नहीं कभी सुकून से उठी हूं
सुबह चार बजे उठती हूं और रात के ग्यारह बजे के बाद बिस्तर मिलता है ससुर जी की दवाई बार बार चाय पानी सासु मां पैरो की मलिश पति और बच्चों के लिए लंच तैयार करके आफिस भेजना फिर घर के काम करना एक भी दिन आराम नहीं मिलता फिर भी परिवार में कोई खुश नहीं।सब का ध्यान रखती हूं फिर भी सब को मुझ से शिकायत रहती है। फिर खाना खाकर बर्तन साफ कर सोने गई, तभी देखा रात के बारह बज गए।अगले दिन फिर वही दिनचर्या हो रही थी आज शाम को माही का शरीर थका हुआ था चुपचाप बैठी थी तब मोहित बोला क्या जब भी मैं घर आता तुम हमेशा मुंह बना कर रखती हो वह माही बोली मैं थक गई हूं ।
मोहित बोला आफिस में कितनी महिलाएं काम करती है और तुम घर बैठे बैठे थक जाती हो।तब माही के सब्र का बांध टूट गया और बोली बहूं होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है लेकिन क्या सारी जिम्मेदारी केवल बहू की हैं और किसी की नहीं मेरा भी मन करता की मुझे भी एक दिन काम से छुट्टी मिल जाए मुझे भी कभी कोई कहे तुम आरम से बैंठो में तुम्हारे लिए अदरक वाली चाय बना कर पिलाए और फिर चुपचाप वहां से उठ कर चली गयी फिर माही सब काम करके सोने चली गई अगले दिन बिस्तर पर लेटी हुई थी तब वहां मोहित चाय लेकर आया और बोला माही तुम चाय पीलो ।माही ने देखा और बोली यह सब कैसे
मोहित ने कहा माही तुम इस परिवार की नींव हो नींव का मजबूत होना अति आवश्यक है और बोला तुम मेरी अर्धांगिनी हों इसलिए तुम्हारे साथ में तुम्हारी जिम्मेदारी भी मैं बराबर है आज माही के चेहरे पर सुकुन के साथ मुस्कान थी
यह घर घर की कहानी है जहां बहूं परिवार की नींव होती है सदा उनके साथ रहती है जो लोग हमेशा यही ताना देते हैं यह तुम्हारा घर नहीं है बल्कि बहू परिवार की रीढ़ की हड्डी के सामान होती है
विनीता सिंह बीकानेर