क्या दो दामाद भी आपस में जलन रखते हैं – गीतू महाजन : Moral Stories in Hindi

मेहरा परिवार में आज सुबह से चहल-पहल थी।सुधाकर जी और उनकी पत्नी सुधा जी कल से ही तैयारियों में लगे थे।बेटा वैभव और बहू शालिनी भी उनके साथ कामों में मदद करवा रहे थे।दरअसल बात यह थी कि सुधाकर बाबू की छोटी बेटी प्रीति और दामाद देवेश जी अहमदाबाद आ रहे थे।देवेश जी को दफ्तर की वजह से अहमदाबाद में दो दिन के लिए कुछ काम था तो प्रीति को भी वह साथ लेते हुए आ रहे थे।

उनकी शादी को लगभग तीन साल हो चुके थे लेकिन प्रीति और देवेश बहुत कम ही दिल्ली से अहमदाबाद आ पाते थे..कुछ तो देवेश जी की नौकरी थी और कुछ देवेश के बूढ़े माता-पिता को अकेले छोड़ कर आना प्रीति के लिए थोड़ा मुश्किल हो जाता था लेकिन फिर भी वह अपने स्नेहिल

सास-ससुर और देवेश जैसे प्यार करने वाले पति को पाकर बहुत खुश थी।उन दोनों की अभी कोई संतान भी नहीं थी।इस बार भी लगभग एक साल बाद ही वह मायके आ रही थी इसीलिए सभी घर वाले बहुत खुश थे।

प्रीति ने अपने मायके वालों को अभी एक दिन पहले ही अपने आने की सूचना दी थी क्योंकि देवेश जी का अचानक से ही दफ्तर से प्रोग्राम बना था और उसे भी अभी पता चला था इसीलिए आनन-फानन में उसने तैयारी की और मायके के लिए चल पड़े..पीछे सास-ससुर के लिए उसने कामवाली को बोल रखा था और देवेश जी की मौसी जी भी एक हफ्ते के लिए उनके पास रहने के लिए आ गई थी इसलिए पीछे की कोई चिंता नहीं थी।

खैर एन वक्त पर देवेश जी और प्रीति घर पहुंच गए थे। सभी लोग उनके आवभगत में लगे हुए थे।सुधा जी तो अपनी बेटी को देख कर खुश हुए जा रही थी।सुधा जी के बेटे वैभव की शादी को भी अभी एक साल ही हुआ था। प्रीति तभी मायके आई थी और उसके बाद उसका अब आना हो पाया था शादी में वह अपनी भाभी शालिनी से अच्छी तरह मिल नहीं पाई थी। 

शालिनी एक बहुत ही अच्छी और सुशील बहू साबित हुई थी और प्रीति यह सब देख रही थी कि वह कैसे उसके और देवेश के आगे पीछे डोल रही हैं और उसकी आवभगत देखकर प्रीति बहुत खुश लग रही थी।मायके आने का चाव जो बेटी के चेहरे पर होता है वह प्रीति के चेहरे पर भी साफ चमक ला रहा था।

आज इतवार था तो सुधाकर जी की दुकान भी बंद थी और वैभव को भी नौकरी से छुट्टी थी इसलिए सभी मिल बैठ कर खा पी रहे थे और हंस बोल रहे थे।नाश्ता करते करते ही कितनी ही बातें शुरू हो गई और समय का पता ही नहीं चला।दोपहर को सुधाकर जी के फोन पर घंटी बजी तो देखा उनकी बड़ी बेटी रीती का फोन था।रीती के फोन उठाने पर सुधाकर जी को पता चला कि वह भी आज शाम को ही अपने पति और बेटे के साथ मायके आ रही है। 

यह सुनकर सुधाकर जी वैसे तो खुश हुए लेकिन उनके माथे पर चिंता की थोड़ी सी लकीरें दिखाई देने लग पड़ी जो कि उन्होंने बड़ी आसानी से सबसे छुपा ली लेकिन अपनी पत्नी से नहीं छुपा पाए। सुधा जी ने उन्हें अंदर आकर पूछा तो वह बोले कि,” रीति और उसके पति निमिष जी आ रहे हैं…वैसे तो ही

खुशी की बात थी लेकिन सुधाकर जी जानते थे कि उनके दोनों दामाद आपस में एक अच्छा संबंध नहीं रख पाए थे क्योंकि उनके बड़े दमाद निमिष जी को हमेशा लगता कि ससुराल में उनकी वो आवभगत नहीं की जाती जितनी कि छोटे दामाद की की जाती है। जबकि देवेश जी तो बहुत कम ससुराल में

आते थे  लेकिन फिर भी निमिष जी की शिकायतों का पुलिंदा जो एक बार खुलता तो वो खत्म नहीं होता था और वह छोटी-छोटी बात पर खीझ भी जाते जैसे दामाद ना हो बल्कि घर की दोनों बहुएं हों जो एक दूसरे को देखकर जलती हों। हालांकि देवेश जी समझदार थे पर फिर भी जब एक तरफ से

थोड़ी सी भी नाराज़गी दिखाई जाए तो रिश्ते में खिंचाव तो आ ही जाता है।पिछली बार भी जब देवेश जी प्रीति को छोड़ 1 दिन के लिए अहमदाबाद आए थे तब निमिष जी के साथ उनका सामना हुआ था और ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो गई थी।

जब वैभव की शादी थी तब भी बड़ी मुश्किल से सुधाकर जी और सुधा जी ने स्थिति को संभाला था क्योंकि वह किसी बात पर गुस्सा हो गए थे और अपनी शिकायतें लेकर बैठ गए थे।उन्हें लग रहा था कि अच्छी आवभगत छोटे जंवाई सा की हो रही है और उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा।जबकि इस बात में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं थी ।

अब सुधाकर जी के सामने समस्या पैदा हो गई थी। चाहे वह दो दिन के लिए ही आ रहे थे और जानबूझ कर सुधाकर जी ने रीति से यह बात छुपा ली थी कि प्रीति और देवेश जी भी पहले से ही अमदाबाद आए हुए हैं। सुधा जी भी इस बात को लेकर चिंता में पड़ गई लेकिन अब क्या किया जा

सकता था ना तो दोनों बेटियों में से किसी भी बेटी को मायके आने से कोई रोका थोड़ी जा सकता था। अब उलझन बढ़ती जा रही थी इतने में उनकी बहू शालिनी अंदर आई और सुधा जी ने उसे भी सारी बात से अवगत कराया।

शालिनी ने सुधा जी को संयम बरतने के लिए कहा और बोली,” मांजी, आप चिंता मत कीजिए मैं कुछ देखती हूं इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा…आप दोनों को इस बार बिल्कुल भी शिकायत आने का मौका नहीं दूंगी ना ही निमिष जी को शिकायत कर पाएंगे और ना ही देवेश जी को लगेगा कि उनकी वजह

से कोई शिकायत का मौका खड़ा हो गया है।इस बार मेरी ज़िम्मेदारी है यह सारी बातें संभालने की”, उसकी बातें सुनकर सुधा जी थोड़ी आश्वस्त तो हो गई लेकिन फिर भी उन्हें शंका ही रही कि बेचारी अकेली नई बहू कैसे दोनों दामादों के बीच में प्रेम संबंध बना पाएगी।

शाम को निमिष जी और रीति अपने 4 साल के बेटे के साथ आ गए। उनकी शादी को 6 वर्ष बीत चुके थे और  उनका बेटा पार्थ बहुत ही प्यारा और मासूम था उसकी बाल-सुलभ हरकतें देखकर सभी खुश हो उठते थे।निमिष जी का सभी घरवालों ने आगे बढ़कर स्वागत किया। निमिष जी ने जैसे ही देवेश और प्रीति को वहां देखा तो  उनके चेहरे के भाव बदल गए जिन्हें उन्होंने छुपाने की पूरी तरह से कोशिश की लेकिन फिर भी चेहरे पर एक तल्खी सी नज़र आनी शुरू हो गई थी।

शालिनी ने आगे बढ़कर रीति को गले लगाया और निमिष जी को प्रणाम किया और बोली,” जीजा जी मैं तो आपसे नाराज़ हूं…आप कितने दिनों के बाद अहमदाबाद आए हो मुंबई से अहमदाबाद का रास्ता है कितना है लेकिन आप तो जैसे हमें भूल ही गए।आपके आने से घर में कितनी रौनक बढ़

जाती है”, शालिनी की यह बातें सुनकर निमिष जी का चेहरा थोड़ा नरम पड़ गया और वह मुस्कुराते हुए बोले,”अरे शालिनी, अगर ऐसा है तो फिर क्या.. हम लोग जल्द से जल्द चक्कर लगाते रहेंगे “और इन सब बातों से घर में खुशी का माहौल सा बन गया।

रात के समय भी शालिनी ने आगे बढ़कर दोनों दामादों को बराबर से परोसा और उसने यही कोशिश की कि निमिष जी के साथ बड़े दामाद की तरह ही व्यवहार किया जाए इसलिए उसने उनसे ही उनकी पसंद को पूछ पूछ कर खाना बनाया और कुछ बाहर से भी मंगवाया..लेकिन इन सब बातों में वह देवेश जी को भी बिल्कुल नहीं भूली और उन्हें भी पूरा सत्कार देती रही।

अगले दिन शालिनी ने वैभव को उसके ऑफिस से छुट्टी लेने के लिए कह दिया और निमिष जी से बोली,” आज हम सभी घूमने चलेंगे इसीलिए वैभव ने भी छुट्टी ले ली है लेकिन आप दोनों जंवाई सा ही हमें बताएंगे कि हमें कहां घूमना चाहिए”।

सुधा जी को तो लगा कि अब तो बात यहीं से बिगड़नी शुरू हो जाएगी क्योंकि निमिष जी तो कि देवेश जी की की बातों को ज़रूर काटेंगे और अगर देवेश जी की बात मान ली गई तो फिर से उनकी शिकायतों का पुलिंदा शुरू हो जाएगा। लेकिन शालिनी ने भी बड़ी चतुराई रखी उसने कहा,” मुझे पता है कि हमारे दोनों जमाई सा की पसंद बहुत अच्छी है इसीलिए मुझे तो लगता है कि दोनों की पसंद भी

एक जैसी होगी ना आगे ना पीछे …क्योंकि दोनों ही एक से बढ़कर एक है और मुझे नहीं लगता कि दोनों की पसंद में कोई फर्क ही होगा।क्यों बड़े जीजा जी, आप बताइए कि हमें क्या घूमना चाहिए”।

निमिष जी अपनी तारीफें सुनकर पहले ही फूले नहीं समा रहे थे इसीलिए बोले,” जहां देवेश जी कहेंगे वही चलेंगे… मैं तो आगे भी अहमदाबाद बहुत बार आ चुका हूं लेकिन इनका आना कम हो पाता है इसलिए इन्होंने अहमदाबाद ज़्यादा अच्छी तरह से नहीं देखा है “।

 सुधा जी यह सब सुनकर बहुत हैरान रह गई थी कि कहां शिकायतें करने वाले निमिष जी देवेश जी को खुद से ही बढ़ावा दे रहे थे और उनकी शिकायतें भी ना जाने कहां खत्म हो गई थी। शालिनी ने बड़ी चतुराई से पासा ही पलट कर रख दिया था तो तय हुआ कि आधा दिन देवेश जी की पसंद की जगह घूम जाएगी और आधा दिन निमिष जी की और सबसे पहले निमिष जी की क्योंकि वह बड़े जमाई सा है शालिनी के यह कहते ही निमिष जी खुश हो गए।

लेकिन सुधा जी यह नहीं जानती थी कि इन सब बातों में शालिनी ने देवेश जी को भी अपने साथ शामिल कर लिया है क्योंकि देवेश जी एक समझदार और सुलझे हुए व्यक्ति थे और उन्हें इन सब

बातों से बिल्कुल भी कोई शिकायत नहीं थी और वह चाहते थे कि घर में सौहार्द और प्रेम बना रहे चाहे किसी को भी पहले कोई भी चीज़ पसंद करने का मौका दिया जाए।शालिनी की प्यारी सी साजिश में शामिल हो देवेश जी ने उसका पूरा साथ दिया था।

 सारा दिन बहुत अच्छे से बीता। शालिनी की चतुराई से दोनों दामादों ने दो दिन बहुत अच्छी तरह से गुज़ारे और दोनों में जलन का कोई भी नामोनिशान नहीं दिखा और निमिष जी इस बार बहुत ही हंसते हंसते ससुराल से विदा हुए बिना किसी शिकायत के…बिना किसी गिले-शिकवे के।उनके जाने पर सुधाकर जी और सुधा जी ने चैन की सांस ली और अपनी बहू शालिनी को ढेरों धन्यवाद दिया। 

“मांजी, इसमें धन्यवाद की क्या आवश्यकता है.. क्या यह मेरा घर नहीं है और क्या इस घर की शांति को और प्रेम को बनाए रखना मेरा फ़र्ज़ नहीं बनता”।

“नहीं बहू, मैं तो बस ऐसे ही तुम्हें धन्यवाद कह रही थी.. यह घर तुम्हारा है..बिल्कुल तुम्हारा और आज तुमने साबित कर दिया कि साजिश सिर्फ नफरत और लड़ाई झगड़ा ही नहीं लाती बल्कि अगर अच्छे काम के लिए साजिश की जाए तो उसमें कोई बुराई नहीं है”,और आगे बढ़कर सुधा जी ने अपनी बहु रानी को गले लगा लिया।

प्रिय पाठकों, अक्सर ऐसा हम देखते हैं कि कई सारे रिश्तो में ऐसी शिकायतें नज़र आती हैं और गिले-शिकवे भी होते हैं लेकिन अगर प्यार से इन रिश्तों को सहेज कर रखा जाए तो ना ही शिकायतें रहेंगी और ना ही कोई गिले-शिकवे।

#स्वरचितएवंमौलिक 

#अप्रकाशित

गीतू महाजन, 

नई दिल्ली।

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