सुवर्णा के पांव आज धरती पर नहीं थे, होते भी कैसे, क्योंकि वो खुश ही इतनी थी। उसकी बेटी लतिका की मंगनी हो गई थी और वो भी अमेरिका में बसे अर्जुन के साथ, जिनका अपना वहां पर रेस्तंरा था।
अर्जुन उसकी खास सहेली मालिनी का रिश्ते में भतीजा था। सुवर्णा की जितनी भी किटी मैंबर्ज थी या जानकार थी, सबका कोई न कोई रिश्तेदार विदेश में सैटल था। सुवर्णा जैसे हीन भावना से ग्रस्त थी कि उसका कोई भाई बंधु बाहर नहीं है।
दरअसल उसके परिवार में अभी तक कोई बाहर गया ही नहीं। कोई गया भी तो घूमने फिरने या फिर कोई दूर का कजन वगैरह जिनसे वैसे भी कोई नाता नहीं। आजकल तो अपने देश में भी रिशतों में पुरानी बातें नहीं, बाहर की तो बात ही छोड़ो।
लतिका ने तो शादी की बात मां बाप पर ही छोड़ रखी थी। उसका ध्यान शादी से ज्यादा कैरियर पर था। कम्पयूटर साईंस में बी.टेक के बाद उसका इरादा इसी फील्ड में आगे बढ़ने का था। आजकल वो किसी कंपनी के लिए घर से ही काम कर रही थी और आगे पढ़ाई भी जारी रख रही थी।
वो तो अभी शादी नहीं करना चाहती थी लेकिन मां बाप की इच्छा का ध्यान रखना भी जरूरी था। अर्जुन के बारे में ये बताया गया कि मास्टर डिग्री के बाद उसने पिता के साथ रेस्तरां का काम ही संभाल लिया।
सुवर्णा ने तो ज्यादा पूछताछ करने की कोशिश ही नहीं की, उसके पति हिमाशुं चाहते थे कि अच्छे से पूरे खानदान का और काम धंधे का पता किया जाए, मगर कैसे। लतिका का भाई छोटा था, वो तो अभी कालिज में पढ़ रहा था।
सब कुछ सुवर्णा की सहेली मालिनी के कहने पर ही हुआ।उसने बताया कि अर्जुन का पिता यानि उसका चचेरा भाई बीस साल पहले अमेरिका गया था, तब अर्जुन नौ दस साल का रहा होगा, और उसका एक छोटा भाई अंगद भी था, उसके बाद वो कई साल वापिस नहीं आए।
जब वहां अच्छे से सैटल हो गए तो यहां आना जाना शुरू किया। रिशतों की तो कमी वहां भी नहीं थी लेकिन अर्जुन की मां भारतीय सस्कांरो वाली लड़की चाहती है, इसलिए उसने यहां रहने वालों रिश्तेदारों को अर्जुन के लिए लड़की ढ़ूढ़ने के लिए कहा।
पद्रहं दिन में मंगनी, शादी सब हो गई और अर्जुन अपने मां बाप के साथ वापिस चला गया। अंगद तो आया नहीं था, क्योंकि वहां उसे रेस्तरां का काम देखना था। लतिका की वीजा वगैरह की औपचारिकता पूरी होते ही वो भी रवाना हो गई। सुवर्णा की गर्दन तो हाथ भर उँची हो गई।
लतिका को भारत रहने या अमेरिका रहने से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला था, हां , उसके मन में ये जरूर था कि वो वहां जाकर वो और बेहतर पढ़ाई कर लेगी।उसने ये बात अर्जुन को भी कह दी थी। उन दोनों को आपस में ज्यादा बातचीत करने का न तो समय मिला और न ही दोनों ने कोई ज्यादा दिलचस्पी दिखाई।
लतिका के वहां जाने के कुछ दिन तक तो सब ठीक रहा। क्योंकि विदेश जाना था तो लतिका को कुछ कपड़े, गहने दिए और उसके नाम बैंक में एफ.डी. करवा दी गई थी। शादी में भी दोनों पक्षों ने बहुत कम मेहमान बुलाए, लड़के वालों का कहना था कि फालतू खर्च क्यों करना, वैसे तो कोई जरूरत नहीं लेकिन वो अपनी बेटी के लिए जो चाहे बैंक में जमा करवा दे। सबको ये बात बहुत सही लगी।
सच्चाई कब तक छुप सकती है, उनका अपना कोई रेस्तरां नहीं था, दोनों भाई किसी रेस्तरां में काम करते थे और उन्के पिता भी शायद कहीं गार्ड वगैरह की नौकरी करते थे, यहां तक की लतिका की सास भी किसी होटल में सब्जियां वगैरह काटने का काम करती थी।
लतिका को यह सब जानकर सदमा तो बहुत लगा, लेकिन वो चुप रही और सोच में पड़ गई। ममी पापा को बताया तो उनका क्या हाल होगा, यह सोचकर ही वो घबरा गई।
अर्जुन , अंगद दोनों भाई मुशकिल से दसवीं बारहवीं पास थे। लेकिन अब क्या हो सकता था। लतिका की पुरानी आन लाईन जाब तो थी, लेकिन उसे आगे पढ़ाई भी करनी थी। घर वाले उसे आगे पढ़ने नहीं देना चाहते थे। लतिका की सास ने उसका पासपोर्ट व गहने लेकर अपने पास रख लिए और यह कहा कि वो संभाल कर रख देगी।
सारा परिवार सिगरेट, शराब वगैरह का आदी, लतिका देखकर भी अनदेखा करती कि यहां का कल्चर ही ऐसा है। लतिका पर यह कह कर एफ.डी तुड़वाने का दवाब डाला जाने लगा कि बाकी लोन लेकर अपना होटल खोलते हैं।
लतिका बुरी तरह फंसा महसूस करने लगी। उसे आगे पढ़ाई जारी रखने की बजाए दिन रात काम करने को लिए मजबूर किया जाने लगा। घर का भी काफी काम उसके हवाले कर दिया गया क्योंकि उसका आनलाईन काम था और बाकी सब तो बाहर काम पर जाते।
जाते वक्त दरवाजा बाहर से बंद कर जाते ताकि वो कहीं आ जा न सके। उस दिन छुट्टी थी, सब घर पर देर तक सो रहे थे,लतिका उठ चुकी थी, अर्जुन का फोन साईलैंट पर बज रहा था, वो बाथरूम में था, लतिका ने जैसे ही फोन आन किया तो किसी लड़की की अग्रेजीं में भद्दी गालिंया निकालने का आवाज आई।
लतिका सांस रोककर सब सुनती रही, लेकिन वो इतना समझ गई कि वो अर्जुन के साथ रिलेशन में है और वो उसके कर्जाई भी हैं। लतिका ने कोई जवाब न देकर जल्दी से वो नं नोट करके सब डिलीट कर दिया।
अर्जुन के सामने सोने का बहाना करके लेटी रही। लतिका की सहने की सीमा अब समाप्त होने लगी। छः महीने हो चुके थे, अब तक तो वो आंसू पीती रही लेकिन आखिर कब तक। अपने परिवार से झूठी हंसी से बाते करना और यहां पिंजरे में कैद पक्षी।
जब घर में कोई नहीं था तो उसने वो नं मिलाया, सब भेद खुल गया, वो न सिर्फ अर्जुन की पत्नी थी बल्कि उसकी दो साल की बेटी भी थी। लतिका सिर पकड़ कर बैठ गई। अच्छा हुआ उसने एफ. डी. नहीं तुड़वाई। सैलरी के पैसे उसके खाते में ही आते थे।
उस अग्रेजं लड़की डाईना जो अर्जुन की पत्नी थी की मदद उसे मिली, लेकिन भारत जाने से पहले वो इन सबको इनके किए की सजा देना चाहती थी।डाईना किसी दूसरे शहर में अपनी बेटी के साथ रहती थी। पता नहीं क्या क्या बहाने बनाए अर्जुन के परिवार ने। पासपोर्ट और गहने भी उन्हीं के पास थे।डाईना ने उसे चुपके से घर से बाहर भी निकाला और भारतीय एैबेंसी में जाने के लिए उसकी मदद की।
लतिका ने ठान लिया था कि वो न तो कमजोर पड़ेगी और न ही आंसू पीकर रहेगी। अभी उम्र ही क्या थी उसकी। दूसरी तरफ डाईना की मदद भी मिल गई। डाईना ने बाद में क्या किया ये तो लतिका नहीं जान पाई लेकिन वो सही सलामत भारत वापिस आ गई।
बेटी को इस तरह अचानक आया देखकर और सब सुनकर सुवर्णा और उसके परिवार के तो जैसे होश गुम हो गए। बेटी ने कैसे वो समय बिताया , सोचकर ही वो सदमे में आ गए, लेकिन दूसरी तरफ बेटी की हिम्मत पर गर्व भी था। हाथ जोड़कर भगवान के साथ साथ डाईना का भी धन्यवाद कर रहे थे।
पाठकों, विदेश जाना बुरी बात नहीं लेकिन सब जाचंना परखना जरूरी है।
और पूरे नियम कानून भी पता होने चाहिए।कोई भी डगर आसान नहीं, हिम्मत और हौंसला बनाए रखना होगा।
विमलागुगलानी
चंडीगढ़
मुहावरा- आंसू पीकर रह जाना