आज अविनाश के माता-पिता, अविनाश के साथ अंकिता को देखने उसके घर गए थे। उन्हें अपने बेटे अविनाश के लिए अंकिता बहुत ज्यादा पसंद आई। अंकिता एक पढ़ी-लिखी,मधुर व्यवहार वाली और सुंदर लड़की थी।
अपना एम बी ए पूरा करने के बाद, वह नौकरी देख रही थी, कि तभी उसके लिए अविनाश का रिश्ता आ गया।
अविनाश के माता-पिता ने अंकिता के माता-पिता से दहेज की कोई मांग नहीं की थी लेकिन उन्होंने इतना जरूर कहा था कि हम अंकिता से कोई नौकरी करवाना नहीं चाहते। उसे हाउसवाइफ बनकर रहना होगा। वह अच्छे से घर संभालेगी,,वही अच्छा रहेगा।
अंकिता जॉब करना चाहती थी। लेकिन उसके माता-पिता ने समझाया कि अविनाश का घर परिवार अच्छा है तो फिर तुम अपनी नौकरी के चक्कर में यह रिश्ता हाथ से क्यों गवां रही हो। वे लोग नौकरी करवाना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं,तुम भी आराम से घर संभालना। तुम नौकरी करोगी तो तुम्हें दोहरा कर्तव्य भी निभाना पड़ेगा।
अंकिता को लगा कि वे लोग सही कह रहे हैं। उसने शादी के लिए हां कर दी और अंकिता और अविनाश की धूमधाम से शादी हो गई लेकिन मन ही मन कभी-कभी अंकिता को लगता था कि उसने एक समझौता किया है कि मैं नौकरी नहीं करूंगी। फिर भी परिवार की खुशी के लिए वह राजी थी।
थोड़ा समय बीतने पर, उसने अविनाश से नौकरी के लिए पूछा तो उसने साफ मना कर दिया। उसने कहा कि मेरी मां की तबीयत ठीक नहीं रहती है इसीलिए तुम सिर्फ उनका ध्यान रखो,वही काफी है।
कुछ समय और बीता। अविनाश के फुटवियर के कारखाने में आग लग जाने के कारण उसका बहुत नुकसान हो गया। उसका व्यापार बुरी तरह डगमगा गया। वह बहुत ज्यादा निराश हो गया था।
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तब उसने अपने मन से, अंकिता को जॉब करने के लिए फोर्स किया। अंकिता जॉब ढूंढने में लग गई। जॉब ढूंढते ढूंढते लगभग 6 महीने बीत गए और 6 महीने बाद उसे एक जॉब मिली। अंकिता ने तुरंत जाना शुरू कर दिया। अब अविनाश खुश था। अंकिता ने एक बार यह भी सोचा कि अब तो अविनाश को अपनी मां की तबीयत के बारे में चिंता नहीं है। पहले जब मैं जॉब करने के लिए कहती थी तो वह मां के बारे में कहता था। इस बार भी मुझे ही समझौता करना पड़ा।
खैर कोई बात नहीं अंकिता खुश थी। अंकिता पूरी मेहनत और ईमानदारी से अपना काम करती थी और घर आकर घर का काम भी संभालती थी। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई, और ऑफिस में उसकी तरक्की हो गई। तरक्की होने से अंकिता का हौसला बहुत बढ़ गया था और वह ऑफिस में पहले से भी ज्यादा मेहनत से काम करने लगी थी।
और इधर अविनाश का कारखाना भी नुकसान पूरा करने के बाद तरक्की करने लगा था। उसने भी जूते और चप्पलों के नए-नए डिजाइन बनाकर खूब कमाई की थी।
अब अपनी तरक्की देखकर, उसने अंकिता पर दबाव बनाना शुरू कर दिया, कि वह नौकरी छोड़ दे। अंकिता ने कई बार उसकी बात को अनसुना कर दिया। आखिरकार एक दिन अविनाश उसे पर चिल्लाने लगा और उससे लड़ने लगा। अविनाश ने कहा-” तुमसे कितनी बार कह चुका हूं तुम नौकरी क्यों नहीं छोड़ रही हो, तुम्हें मेरी मां का ध्यान रखना है और फिर कल को बच्चा होगा तो उसका ध्यान भी रखना है। ”
अंकिता-” अविनाश,बस बहुत हो चुका। अब मुझसे समझौता नहीं होगा। जब से शादी की है समझौता करती आ रही हूं। अपना मतलब होता है तो नौकरी कर ले, और अपना मतलब पूरा हो गया तो नौकरी छोड़ दे। मैंने बहुत मेहनत करके, अपनी पोस्ट हासिल की है। अब मैं अपनी मेहनत को बर्बाद नहीं होने दूंगी। मैं नौकरी नहीं छोडूंगी। मां की देखभाल तो, एक मेड भी कर सकती है और वैसे भी माँ जी अपने सारे काम खुद कर लेती हैं। उन्हें इतनी भी देखभाल की जरूरत नहीं है और रही बच्चों की बात, तो मैं अभी प्रेग्नेंट नहीं हूं और जब होऊंगी, तब देखा जाएगा। मैं नौकरी किसी भी कीमत पर नहीं छोडूंगी। ”
तब अविनाश की मां ने पहली बार उनके बीच में आकर बोला। मां ने कहा -” अविनाश, अंकिता सही कह रही है। उसे करने दे नौकरी। मैं कोई बिस्तर पर थोड़ी ना पड़ी हूं कि सारा दिन मेरी सेवा करती रहेगी। अच्छी खासी चलती फिरती हूं बल्कि मैं तो तुम्हारे बच्चे की भी देखभाल कर सकती हूं। पढ़ी लिखी है, करने दे उसे अपने मन की इच्छा पूरी, मेरी बहू समझदार है तू चिंता मत कर। ”
तब अविनाश को अपनी मां के सामने चुप होना पड़ा और अंकिता अपनी सास की पहले से भी ज्यादा इज्जत करने लगी और उसने अपनी नौकरी जारी रखी।
अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली
#समझौता अब नहीं