ससुराल में बहु से बेटी बनने का सफर जिन्दगी के उन खुशनुमा और यादगार पलों की एक किताब है जिसके पन्ने जब भी शुचि पलटती चेहरे पर अनायास ही मुस्कुराहट आ जाती । एक लड़की को शादी के बाद ससुराल में दो महत्त्वपूर्ण लोग (पतिदेव और सासू मां)यदि अच्छे मिल जाए यानी कि उसके मन मुताबिक मिल जाए तो फिर कहने ही क्या। (क्युकी यही वो दो लोग होते हैं जो एक लड़की को अनजान परिवार का हिस्सा बनने और उसे अपनाने और वहां के तौर तरीकों में ढलने में उसका साथ देते हैं।) फिर तो एक खुशनुमा पल क्या हजारों ऐसे पल आयेंगे
कि जिंदगी खुशनुमा बन जायेगी। लड़की की शादी के बाद जिंदगी उसके ससुराल के माहोल पर ज्यादा निर्भर करती है , यदि वहां का माहोल उसके हिसाब का हुआ तो जीवन के खुशनुमा पल कभी खत्म नहीं होते। और मीठी यादों के साथ हमेशा हमारे साथ रहते है। शुचि के साथ भी ऐसा ही था जहां वो शादी से पहले ससुराल के नाम से ही डरती थी वहीं शादी के बाद ससुराल ऐसा मिला कि मायके को ही भूल गई।
तो चलिए फिर मिलवाती हूं आपको शुचि और उसके ससुराल में बिताए यादगार पलों से……
शादी से पहले अक्सर ससुराल और सास के बारे में ज्यादातर जानकारी डराने वाली ही मिलती है कि सास कभी मां नही बन सकती ,बहु कभी बेटी नही बन सकती और ससुराल में कोई ध्यान नहीं रखता बस पहले काम बाद में आराम और अपने तरीके से रहना और सजना संवरना तो भूल ही जाओ बस । जब भी शुचि ऐसी बातें सुनती उसका दिल धक धक करता ” और सोचती… हे भगवान मेरा क्या होगा ससुराल में , कहीं मुझे भी ऐसा ही ससुराल मिला तो मैं तो मर जाऊंगी… कितने नाज़ से पाला है मम्मी पापा ने मुझे , कैसे रहूंगी मैं उनके बिना, अंजान लोगों के बीच? क्या शादी के बाद कोई खुशनुमा पल आयेंगे मेरी जिंदगी में ?, कौन ध्यान रखेगा मेरा वहां?”क्या मै भी कभी किस्मतवाली बहु बन पाऊंगी जिसे कोई अच्छा ससुराल मिलेगा?
पर वो किस्मत वाली थी की उसका ये ससुराल और सास को लेकर डर सिर्फ एक डर ही था हकीकत नही बना। क्योंकि
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इस बार उसकी किस्मत ने उसका बहुत साथ दिया कि उसके ससुराल में सभी लोग सास ससुर, जेठ जेठानी, ननद और उसके प्यारे पतिदेव बहुत ही अच्छे मिले हैं जिन्होंने उसकी जिंदगी को खुशियों से भर दिया है। विशेष रूप से सासू मां जो उसकी सास कम ,मां की तरह उसे भरपूर प्यार देती । (क्योंकि किसी भी बहु का ज्यादातर समय उसके ससुराल में उसकी सास के साथ ही बीतता है जहां तक मैं सोचती और जानती हूं इसलिए एक अच्छी सासू मां पाने की हर लड़की की ख्वाहिश होती है शादी से पहले और सास जब मां और बहु जब बेटी बन जाए तो सोने पे सुहागा और उसकी वो ख्वाहिश गर पूरी हो जाए तो जीवन में खुशनुमा पल अपनी रंगत बिखेरते रहेंगे।)
अक्सर लड़कियों की अपने ससुराल खासकर सासू मां को लेकर कई सारी शिकायतें रहती है कि मेरी सास तो बिलकुल काम नही करती, हमेशा ऑर्डर देती रहती है। इधर का पत्ता उधर तक नही करती पर उसके मामले में बिलकुल उल्टा था उसकी सासू मां ना खुद बैठती ना उसे बैठने देती जब तक कि घर का सारा काम खत्म न हो जाए ।
वो कहती है कि पहले काम फिर चाहे पूरा दिन आराम । एक बहु के लिए इससे ज्यादा खुशनुमा पल और क्या होंगे कि उसकी सास उसके काम में हाथ बंटाती है और और उसको भी आराम करने की सलाह देती है, उसका ध्यान रखती है जैसे एक मां अपनी बेटी का रखती है।ये खुशनुमा पल ही तो मीठी यादों के रूप में ताउम्र साथ निभाते है और यादगार पल बन जाते हैं जब कोई अपना हमसे दूर चला जाता है।
कई बार सास के बारे में अक्सर सुना जाता है कि मेरी सास तो मेरे पति के कान भरती है मेरे खिलाफ और मेरा , मेरे पति के साथ हंसना बोलना उन्हें बिलकुल नही सुहाता जबकि उसकी सासू मां अक्सर ही उसके पति से उसकी तारीफ या तरफदारी करती दिखाई देती । कोई कमी भी होगी तो पति से उसकी शिकायत नहीं करके उसे ही समझा देती की क्या गलत है और क्या सही और बोलती “कि तू भी तो मेरी बेटी है
गलती करके ही तो सीखेगी और पीहर में कौन लड़की इतना काम करती है तू चिंता मत कर समय के साथ सब सीख जायेगी।” और दोनो पति पत्नी को साथ वक्त बिताने के लिए बहाने ढूंढती ताकि वो ज्यादा से ज्यादा समय साथ रह सके या फिर सबके साथ बातों में उसे भी शामिल कर लेती ताकि उसे अकेलापन न लगे। तब शुचि को सासू मां में उसकी अपनी मम्मी दिखाई देती जो हरपल उसका ध्यान रखती थी।
शुचि अब भी जब याद करती है उसके ससुराल के वो दिन जब वो नई नई दुल्हन बनकर आई थी और जब उसके पति की नौकरी उसके ससुराल से दूर दूसरे शहर में थी तो कैसे उसकी सासू मां उसके रविवार को यादगार बनाने में उसकी मदद करती, वो खुद को बहुत खुशनसीब मानती
दरअसल हफ्ते में संडे को ही उसके पति का आना होता था और शुचि मन में बहुत खुश हो जाती उसके बारे में सोचकर ही और कोई काम में मन नहीं लगता फिर उसका पर किसी से कह नहीं पाती अपने मन की बात। पर उसकी सासू मां समझ जाती कि आज बहु का ज्यादा काम करने का मन नहीं है तो वो आगे से ही बोल देती कि बहु आज जल्दी काम निपटा ले और फालतू काम मत फैलाना आज क्योंकि आज मनु( शुचि के पति का निक नेम)आएगा । और जब काम से फ्री होती तो बोलती _”जाओ दोनो आराम कर लो
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एक पत्नि के लिए इससे ज्यादा खुशी के और यादगार पल और क्या होंगे कि पति के लिए उसकी चाहत और भावनाओं को उसकी सास बिन कहे समझ लेती और उसे अपने पति का पूरा समय लेने में उसकी मदद करती।
उसकी सास ने तो शादी से पहले भी 2 बार उन दोनो को ये कह कर मिलवाया कि बच्चों का मन तो करता है ना मिलने का ….और खुद भी उनके साथ जाती थी जिससे कोई बातें न बनाए हां वो बात अलग थी कि वो सिर्फ मंदिर वाली जगह का ही चुनाव करती ताकि वो दोनो साथ हों तो सासू मां अपना समय मंदिर में व्यतीत कर सकें और जब सब कहते वाह तेरी सास तो बड़ी मॉडर्न है तो शुचि मन ही मन बहुत खुश होती और अपने किस्मत वाली होने पर गर्व करती
उसकी सहेलियां जब भी बात करती उनके पास अपनी सास और ननद की बुराई करने के कई टॉपिक होते जैसे सास को मेरा शॉपिंग करना बिलकुल पसंद नही , रोक टोक करती रहती है जब भी मैं सजती संवरती हूं
जबकि उसके मामले में बिलकुल उल्टा था … उसे शॉपिंग करना ज्यादा पसंद नही था पर सासू मां अक्सर कहती _ बाजार जाया, कुछ लाना है तो ले आ। चल मेरे साथ तेरी पसंद की साड़ी ले आ,पर वो शॉपिंग से बहुत कतराती थी।लेकिन उसकी सास , उसकी ननद के साथ मिलकर आगे से सूट और साड़ी पसंद करके रख देती पहले से ही उसके लिए और साड़ी का कलर थोड़ा भी हल्का हो जाता तो वो साड़ी सासू मां दुबारा पहनने नहीं
देती बोलती मैं पहन लूंगी इसे…. तू और नई निकाल ले अभी पिछले महीने ही खरीदी है मैने तेरे लिए साड़ी ,तुझ पर अच्छी लगेगी। और शुचि फिर नई साड़ी पहन कर खूब इतराती। कभी तीज त्योहार होते तो एक दिन पहले ही बोल देती कल मेंहदी लगा लेना। शाम का खाना और बाकी काम मैं कर लूंगी, बहु बेटी तो सजी हुई अच्छी लगती है जबकि उसकी सहेली और जान पहचान के कई और हैं जिनको घर के पूरे काम से फ्री होने के बाद मेंहदी लगाने मिलती ।
आज भी जब कभी मेंहदी लगाने का समय हो या कोई बात चलती है तो शुचि अपनी सासू मां का ज़िक्र करना नही भूलती कि कैसे उसकी सास उसके सारे त्योहार यादगार बना देती थी।और ये सिलसिला आज तक जारी है। आज भी शुचि की शादी को भले ही पंद्रह साल हो गए पर उसकी सासू मां अभी भी वैसे ही हैं।
सुहागन औरत के हाथ मेंहदी से सजे हों और साज श्रृंगार करने से बढ़कर खुशी के पल और क्या होंगे जो शुचि को हर तीज त्योहार पर अब तक मिलते हैं।
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कई बार घर पर मेहमान या छुट्टियों में ननद और उनके बच्चे आ जाए तो सबसे पहले अक्सर घर की बहु को टेंशन हो जाती है काम की पर शुचि के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ क्युकी सासू मां बराबर से उसका हाथ बंटाती जो काम वो कर सकती थी उसमे ।बाकी उसकी ननदों को उसकी हेल्प करने के लिए बोलती कि जैसे तुम मेरी बेटी हो तो वो भी तो मेरी बेटी है बल्कि तुम से ज्यादा ध्यान वो रखती है हमारा ,
हमारी हर सुख दुख की साथी वो ही तो है ।और उसकी ननद चिढ़ जाती ये सुनकर । सासू मां का मानना है की जितने लोग उतना काम तो फिर सबको मिलकर काम करना चाहिए न की बहु करे काम और बेटी करे आराम। ऐसा माहोल मिलता है तो काम करने में थकान नही होती बल्कि मजा आता है ।सबके साथ हंसते बोलते कब दिन निकल जाता है पता भी नही लगता।
और जब अचानक शुचि के पापा की हार्ट अटैक से डेथ हो गई तो वो तो बिलकुल टूट सी गई थी। तब उसकी सासू मां ही थी जिन्होंने उसके पति के साथ मिलकर उसे संभाला। अपने पीहर ,मम्मी से मिलने जब भी जाना चाहती थी कभी मना नही किया बल्कि आगे होकर बोलती कि थोड़े दिन मम्मी के पास रह आ उनका मन भी हल्का हो जायेगा अपनी बेटी से सुख दुख की बात करके ।
उनके उस कठिन समय में उसका साथ देने ने उसके मन में उनकी इज्जत और बढ़ा दी।और ससुर जी ने अपने प्यार और आशीर्वाद से उसे पापा की कमी कभी महसूस नहीं होने दी । तब से आज तक वो दोनो उसकी खुशियों का पूरा ध्यान रखते है उसके पतिदेव से भी ज्यादा क्युकी वो अब उनकी बहु से बेटी जो बन गई है
सच कहूं तो लड़की को मां बाप के घर में अनगिनत पल जीवन के खुशनुमा और यादगार पल लगते हैं पर जब शादी के बाद भी उसके जीवन में ससुराल के यादगार पलों से खुशियों की रंगत बिखरती रहे( शुचि के जीवन की तरह) तो ही वास्तविकता में जिंदगी जीने का मजा है। ये पल ऐसे पल होते हैं जो एक साथ कई चेहरों पर अनायास ही मुस्कुराहट ला देते हैं।और रिश्तों को मजबूत बनाते है।
मैं तो चाहती हूं सभी लड़कियों की किस्मत शुचि जैसी हो जाए
दोस्तों शुचि को तो मायके के साथ साथ ससुराल में भी यादगार पल मिले हैं। क्या आपको भी मिले है ?
आपकी इस पर क्या राय है? अपने विचारों से अवगत कराना ना भूलें
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निशा जैन