आज मानवी अपना सारा गृहकार्य समाप्त कर पढ़ने के लिए बैठी, सासु माँ ने आवाज लगा दी। अरे मानवी चाची जी आयी है। जरा दो कप चाय तो बना दो। मानवी ने झुंझलाकर अपनी किताब बन्द की और पहले आकर चाची सास के चरण स्पर्श कर उनका आशीष लिया और हालचाल लिए। फिर चाय – नाश्ते की व्यवस्था करने चल दी। उसे मन ही मन बहुत गुस्सा आ रहा है। दो माह बाद ही उसकी शिक्षक भर्ती की परीक्षा है और वो
एकाग्रचित्त होकर पढ़ भी नहीं पा रही है। इस बार फिर वो असफल हुई तो पतिदेव का ताना सुनने को मिलेगा, साथ सास- ससुर जी के प्रवचन। दिन- रात किताबों में घुसी रहती हो, कौन सा कलेक्टर बनी जा रही हो? क्या करना है इतना परेशान होकर जब किस्मत में नहीं है सरकारी नौकरी।
बस एक ही स्वप्न था जो उसने बचपन से देखा था सरकारी नौकरी पाने का। पर भाग्य देखो, स्नातक के प्रथम वर्ष में ही जयेश का रिश्ता स्वयं चलकर आ गया। जब उसके पापा ने उससे सहमति चाही तो उसने मात्र इतना ही कहा- पापा मैं अपनी शिक्षा पूरी करना चाहती हूँ। बाकी जो आप लोगों का निर्णय लेंगे, मुझे स्वीकार होगा। मानवी के पापा ने उसके ससुर जी को मानवी की इच्छा से अवगत कराया,तो उन्होंने सहर्ष सहमति प्रदान करते हुए इतना ही कहा- अरे ये तो बहुत अच्छी बात है। हमारी ओर से पढ़ाई की मनाही नहीं है। मानवी जितना पढ़ना चाहे पढ़ सकती है।स्नातक के द्वितीय वर्ष में मानवी का विवाह हो गया।
मानवी ने भी पारिवारिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए परास्नातक के साथ बीएड कर लिया। बच्चों के जन्म के बाद कुछ समय के लिए उसने अपने जीवन का केंद्र बिंदु स्वयं के स्थान पर बच्चों को अवश्य बना लिया। परन्तु अपना जीवन लक्ष्य बिसराया नहीं। बच्चों के कुछ बड़ी कक्षाओं में जाते ही उसने पुनः स्वयं को लक्ष्य पर केंद्रित किया। शिक्षकों की भर्ती निकलने पर फार्म भरने लगी।
हालाँकि अभी तक तो उसे सफलता हाथ नहीं लगी है। पर वो अभी भी विश्वास बनाये हुए है कि सफलता मिलेगी। इन सबके बीच वो असफलता को लेकर पतिदेव से अवश्य व्यंगबाण सुन लेती है किसी न किसी रूप में।फिर स्वयं को संकल्पित करती है लक्ष्य पाने हेतु। अभी हाल में ही उसने पुनः फार्म भरा है
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और समय निकाल कर पढ़ती है। ताकि इस बार नौकरी पा ही सके। वैसे भी धीरे- धीरे समय बन्द मुठ्ठी सा फिसलता जा रहा है। यानि कि कुछ समय में वो नौकरी के लिए निर्धारित आयु सीमा को पार करने वाली है। यदि अभी नहीं तो कभी नही वाली स्थिति है। बस इसलिए ही वो अब हर समय सिर्फ और सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित कर रही है। उसने बहुत से अनावश्यक कार्यों को छोड़ दिया है।साथ ही आवश्यक कार्यों को सूचीबद्ध किया ताकि समय बचा सके।
मानवी ने जीवन की नित नवीन चुनौतियों से निपटते हुए, डगमगाती जीवन नैया को कभी डूबने नही दिया। भले ही नाव कितनी भी डगमग हुई हो। अंततः उसने परीक्षा दी। परीक्षा देकर अब बस उसे परिणाम की प्रतीक्षा थी। लगभग तीन माह बाद परिणाम आया।परीक्षा तो उसने उत्तीर्ण कर ली। अब सारा दारोमदार बनने वाली मेरिट पर था कि कहाँ तक जाती है मेरिट सूची।मानवी का चयन मेरिट लिस्ट पर आकर रुक गया। चयन प्रक्रिया चलती रही, चयन सूची निकलती रही। मानवी आशा का आँचल पकड़े प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करती।
अंततः अंतिम सूची में उसका नाम आ ही गया। पूरे घर में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। उसके ससुराल वालों ने भव्य उत्सव का आयोजन किया।आज वे सभी लोग मानवी को बधाई दे रहे हैं जिन्होंने कभी न कभी अपने व्यंग्यबाणों से उसे घायल किया था। मानवी की सासु माँ प्रसन्न होकर सभी को बता रही है,
बड़ी खुशकिस्मत है मानवी, जो अंतिम अवसर पर नौकरी पा गयी। तभी उसकी मम्मी भी उनकी हाँ में हाँ मिलते हुए बोली- सही कह रही हैं आप। आप लोगों के सहयोग से ही ये संभव हो पाया है। दोनों की बात सुनकर मानवी सोचने लगी, मतलब जो रात रात भर जाग कर मैंने परिश्रम किया, सबकी चार बातें सुनकर भी अनदेखा किया, उनका कोई मोल नहीं है। सब भाग्य के सहारे ही मिल गया मुझे। इसमें मेरे कर्मों का कोई योगदान नहीं है क्या?
मानवी को ये सोच कर थोड़ा हंसी आ गयी कि सबको सामने जो भी अच्छा,सकारात्मक नजर आता है। उसे अक्सर किस्मत का नाम दे दिया जाता है। कभी कोई ये नहीं सोच पाता कि जो मिल रहा है वो पाने वाले के कर्मों का सुपरिणाम भी हो सकता है।
आशा झा सखी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)