शादी के बाद बेटी स्वाति की विदाई का एक-एक पल प्राची पर भारी पड़ रहा था । घर -आंगन सूना हो गया था और, परिवार के सभी सदस्यों में गहरी चुप्पी थी। दूसरी सुबह सामान को सही जगह पर रखते हुए प्राची को याद आया कि अलमारी के लॉकर की चाबी तो उसने स्वाति को संभाल कर रखने के लिए दी थी । कहां संभाली है, फोन से पूछ लेती हूं । फोन लगाया। पूरी घंटी बजी और फोन कट गया । शायद सो रही होगी । स्वाति को याद कर प्राची की आंखें भर आई ।
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करीब 10 मिनट बाद स्वाति का फोन आया। उसने कहा , हैलो मम्मी। अरे कहां थी बच्चे? मम्मी मैं बर्तन मांझ रही थी। क्या ? प्राची को अपने कानों पर विश्वास न हुआ । एक रात की ब्याही तू बर्तन मांझ रही है , क्यों ? बाक़ी लोग क्या कर रहे हैं ? मम्मी मुझे नहीं पता । प्राची को लगा जैसे कि वह जीते जी मर चुकी है। मम्मी आपने फोन क्यों किया था? अरे वह लॉकर की चाबी पूछनी थी। वह तो टी .वी के पीछे रखी है। इतना कहकर उसने फोन काट दिया । सारस्वत जी ने भी यह बात सुन ली थी। दोनों पति-पत्नी अजीब स्थिति में थे।
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फोन की घंटी बजी । दूसरी तरफ स्वाति थी । प्राची ने पूछा क्या हाल-चाल सोणे, वह बोली मम्मी आपको पता है कि आग बहुत गर्म होती है । क्या बोल रही है तू ? आग की गर्माहट प्राची को जला रही थी। मम्मी जब मैंने चाय बनाने के लिए लाइटर जलाया तो बहुत सारी आग मेरी तरफ उड़ कर आई थी ।गरम-गरम बहुत गरम । यह तन्मय कहां है ? मुझे बात करवाना । मम्मी वह बाजार गया है। और फोन कट गया। प्राची और सारस्वत हाथ मलते हुए रह गए । लड़की बात पूरी नहीं कर रही है, कहीं दबाव में तो नहीं है ? मन संदेहास्पद स्थिति में था।
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उनकी असलियत पता करने के लिए प्राची और सारस्वत जी स्वाति के ससुराल पहुंच गए। शादी वाला घर था । जलपान करते एक मेहमान सीधे ड्राइंग रूम में आ गए। स्वाति ने उनसे परिचित करवाते हुए कहा , पापा यह हमारे चाचा जी हैं। वह किचन में जाकर पानी और कोल्ड ड्रिंक दोनों साथ-साथ ले आई। चाचा जी बोले , सारस्वत जी आपने इतनी प्यारी बेटी हमें दी है
कि क्या बताएं । मेहमाननवाजी की तो बात ही क्या? आपकी बेटी ने तो हमें खुश कर दिया । सारस्वत जी सिर्फ मुस्कुरा कर रह गए और प्राची रस में भीगी चुपड़ी बातों में से कड़ुवाहट खोज रही थी ।
अचानक उन्होंने सुना बेटी के ससुर पूछ रहे थे बेटा ज़रा देखना कि इस पैंट के साथ कौन सी शर्ट चलेगी । तुम्हारे पापाजी को अपने दोस्तों से मिलवाने ले जा रहा हूं। सच और झूठ समझ नहीं आ रहा था।दोनों सोच रहे थे कि लड़की हमसे कुछ छिपा रही है ।
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बसंतोत्सव पर बधाई देने के उद्देश्य से प्राची ने फोन किया तो स्वाति ने भारी आवाज में बताया कि मम्मीजी बहुत सीरियस है, घर के सब लोग उन्हें अस्पताल लेकर गए हैं । डैडी ने रिश्तेदारों को सूचित कर दिया है। मुझे बहुत डर लग रहा है, मुझे पता है हालत गंभीर है । कहते ही वह रोने लगी । दूसरे दिन उनकी मृत्यु की खबर मिली।
दुख का समय था संस्कार से पहले हम दोनों बेटी के ससुराल पहुंच गए । उसकी आंखें रो-रो कर लाल हो चुकी थीं और आंखों के आसपास गहरी सूजन दिखाई दे रही थी। किचन, पंडित, मेहमान सबकी व्यवस्था उसने की थी। लोग उसके गले लगकर रो रहे थे । कैसे इतने कम समय में इतनी समझदार हो गई हमारी बेटी?
प्राची को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था । अचानक स्वाति की मौसी सास प्राची के पास आईं और बोलीं आपकी बेटी से तो हमने भी ससुराल में जीना सीखा है। इससे पहले तो हम सिर्फ अपने बारे में सोचते थे । आपने अपने बच्चों को बहुत अच्छी शिक्षा दी है। प्राची सोच रही थी कौन सी शिक्षा? कैसी शिक्षा?
मैंने तो उसे कुछ भी नहीं सिखाया । हां मुझ निर्गुणी मां की बेटी ने अपने गुणवती होने के सारे प्रमाण दे दिए । उसे लगा कि जैसे उसकी जमापूंजी का वजन बढ़ रहा है। उसने मन ही मन में कहा स्वाति तूने तो ससुराल को गेंदा फूल बना लिया । हम दोनों में किस्मत वाली कौन है ? तुम या मैं।
द्वारा – मौलिक रचना।
डॉ विभा कुमरिया शर्मा
लुधियाना, पंजाब।