किरदार – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

             बेटे के व्यवहार ने आज सरोज जी को अंदर तक तोड़ कर रख दिया।कितने जतन से कितनी तपस्या से जतिन को पाला पोसा था,पर आज—–?

         रमेन्द्र जी जब सरोज को ब्याह कर लाये थे तो सरोज की उम्र महज 19 बरस की थी।बाबुल के यहां कुलांचे भरते भरते कब वो घर पराया हो गया पता ही नही चला। अम्बेसडर कार में विदाई से पहले माँ ने कहा था, बिटिया अब तो तेरा जीवन भर का साथ रमेन्द्र का ही रहेगा, बेटा अब वही तुम्हारा सब कुछ है, उसका घर ही तेरा घर भी होगा,बेटा उन्हें कभी शिकायत का मौका मत देना।

      सरोज माँ की बातों की गहराई तो नही समझ पायी पर माँ की बातों की गांठ बांध ली।किसी को भी शिकायत का मौका नही देना है रमेन्द्र एक अच्छे पति साबित हुए,वे सरोज का पूरा ध्यान रखते और सरोज तो सुबह 5 बजे से ही उठकर रमेन्द्र जी के आफिस जाने तक चकरघिन्नी बनी रहती।सास ससुर सहित पूरे परिवार का नाश्ता, ननद के कालेज जाने के लिये लंच बॉक्स,रमेन्द्र जी का लंच बॉक्स तैयार करना यह सब साढ़े आठ बजे तक अकेली सरोज कर लेती,बिना माथे पर कोई शिकन लाये।उससे किसी को कोई शिकायत नही है यही संतुष्टि का भाव शायद उसकी ऊर्जा का श्रोत था।आखिर माँ ने भी तो यही समझा कर भेजा था कि किसी को शिकायत का मौका मत देना।

     रमेन्द्र के जाने के बाद भी सरोज अपने सास ससुर के हर काम और सेवा को सदैव ही तत्पर रहती।कालेज से वापस आने के बाद तो ननद आशी शायद इतना थक जाती होगी कि पीने के लिये एक गिलास पानी तक भी सरोज को ही देना पड़ता।सब कपड़े आशी जो इधर उधर फेक देती, उन्हें भी सरोज को ही समेटना पड़ता।रमेन्द्र के ऑफिस से वापस आ जाने पर सरोज की थकान रफूचक्कर हो जाती,फिर नयी ऊर्जा के साथ रात्रि भोजन की तैयारी में जुट जाती।

      ऐसा भी नही था कि रमेन्द्र कोई मेड रखने की सामर्थ्य न रखता हो,पर नौकरानी से काम कराना सरोज की सास को पसंद नही था।अब पसंद नही था या उनकी ग्रंथि थी ये तो वो जाने पर बात बात में वे कह ही देती कि हमने भी तो पूरे परिवार का काम खुद ही किया है।पर सरोज इन सब बातों पर ध्यान न देकर पूरे घर  के कामकाज को संभालने में लगी रहती।पड़ोसन भी कहतीं कि पता नही सरोज किस मिट्टी की बनी है।

             जीवन चक्र चलता रहा, ननद आशी  की शादी हो गयी।सास अपने दामाद से कह रही थी देखो बेटा अपनी आशी को हमने बड़े दुलार से पाला है, उसने कभी घर का काम नही किया है, तुम कोई नौकरानी वोकरानी रख लेना मेरी लाडो से कुछ न कराना।भौचक्की हो सरोज अपनी सास का मुँह ताकती रह गयी।उसके लिये तो घर मे मेड नही रहनी चाहिये और बेटी के लिये उसकी ससुराल पहुचने से पहले ही नौकरानी रखने  की दामाद को चेतावनी।सरोज कुछ समझ ही नही पायी।बस इतना ध्यान में आया उसे जो माँ ने समझाया था,उसे तो वही करना है।

       आशी की शादी हुई,काम का बोझ कुछ कम हुआ तो जतिन आ गया।गोलमटोल,सुंदर सलौना जतिन बिल्कुल अपने पापा पर गया था।उसको देख सरोज सब थकान भूल जाती।जतिन की देखभाल में कब दिन होता कब रात होती कुछ पता ही नही चलता।

      सासू माँ अस्थमा से पीड़ित हो गयी थी,अबकि सर्दियों में उन्हें अस्थमा का ऐसा अटैक पड़ा कि डॉक्टर्स ने उन्हें पूर्ण विश्राम की सलाह दे दी कि सर्दियों के समाप्त होने तक वे बाहर न निकले।रमेन्द्र ने अपनी मां से कहा भी,माँ अब काम बढ़ गया है जतिन का भी ध्यान रखना पड़ता है तो क्यो न कोई मेड रख ले,पर माँ ने साफ मना कर दिया कि उसे नौकरानी का किया रास नही आता।मन मार चुप चाप रमेन्द्र जी अपने ऑफिस चले गये।सरोज को जतिन के कारण एक मिनट की भी फुरसत नही मिलती।पर सरोज के चेहरे पर कोई शिकन तक नही आती।

     और एक दिन सर्दियां पूरी होने से पहले ही सासू माँ भगवान के यहां प्रस्थान कर गयी।उनकी बहुत पहले की इच्छानुसार उनके अंतिम संस्कार के लिये उन्हें गंगा घाट ले जाया गया।रमेन्द्र ने बेटा होने के कारण उनकी चिता को मुखाग्नि दी।कपालक्रिया के बाद गंगा स्नान करने गंगा में प्रवेश किया तो माँ गंगा ने रमेन्द्र को अपनी गोद मे ही समा लिया।

        घर मे हाहाकार मच गया,सरोज की तो दुनिया ही उजड़ गयी थी।तीन दिन बाद तो रमेन्द्र का शव प्राप्त हुआ।सरोज के सामने भविष्य मुँह फाड़ कर खड़ा था।निपट अकेली सरोज,सोच रही थी कि कैसे जीवन चलेगा?रमेन्द्र के मित्रों के सहयोग से सरोज को एक प्राइमरी स्कूल में  नौकरी मिल गयी।सरोज की अब नयी पारी प्रारंभ हो चुकी थी।जतिन को पालना और अध्यापन कार्य करना।जीवन सरोज को अपनी उंगलियों पर नचा रहा था और वह नाच रही थी, बिल्कुल कठपुतली की तरह।

        अब वैसे सरोज की दैनिक चर्या नियमित हो गयी थी।उसका पूरा ध्यान जतिन की परवरिश पर तथा अपनी नौकरी पर था। अध्यापन कार्य उसने पहले कभी किया तो था नही,उसने तो अब तक बस घर का ही कामकाज किया था,सो उसे पहले घर पर खुद पढ़ना पड़ता और फिर स्कूल में पढ़ाना पड़ता।ये अच्छा हुआ जतिन पढ़ाई लिखाई में होशियार निकला।पढ़ाई पूरी करते हुए उसका चयन आई.टी. इंजीनियरिंग में हो गया।उसके खर्चे पूरे करने के लिये सरोज ने प्राइवेट ट्यूशन पकड़ लिये।रात दिन का परिश्रम और बढ़ती उम्र शरीर पर असर दिखाने लगे थे। जिंदगी में कभी न रुकने वाली सरोज अब जल्द थक जाती।कभी कभी एकांत में रमेन्द्र के फोटो के पास आ रो पड़ती,जतिन के पापा मुझ अभागिन को क्यो अकेले छोड़ गये, फिर खुद ही बड़बड़ाने लगती ना ना अकेली कहाँ हूँ मेरा जतिन तो है मेरे पास।

     जतिन ने अपना आईटी का कोर्स पूरा कर लिया और उसे जॉब  भी मिल गया।वह उसे अपने साथ शहर ले आया।सरोज खुश थी,जिंदगी भर की मेहनत अब जाकर फलीभूत हुई।बस अब तो वह चांद जैसी बहू की आकांक्षा पाले थी।ईश्वर की अनुकंपा से वह भी हो गया,उसकी ही सहपाठिनी रही नीलिमा से जतिन की शादी भी हो गयी,वह भी आईटी इंजिनीअर थी।दो दो प्राणी खूब अच्छे वेतन के साथ कमा रहे थे,सो घर मे खूब संपन्नता दिखाई देने लगी थी।घर के कामकाज के लिये सर्वेंट रख ली गयी थी।

        और तो सब ठीक था बस नीलिमा को अपनी सास सरोज का पुराना कलेवर पसंद नही था,वह अपनी सास को बिल्कुल मॉडर्न देखना चाहती थी।सरोज समझ तो सब रही थी,पर आधुनिक रीत रिवाज,परिधान उसे रास नही आते।अपने को बदलने की कोशिश तो करती पर कितना, कहाँ तक?कभी कभी फिर उसे लगने लगता कि आज सब कुछ होते हुए भी वह खाली ही है, उसे बस नाचना ही है।पहले वह पुराने कलेवर में नाच रही थी तो अब उसे नये कलेवर में नाचने को मजबूर किया जा रहा है।

       अरे मम्मी आप अब तक तैयार नही हुई,कितनी देर लगा दी,कैसे समय पहुंचेंगे?नीलिमा लगभग झल्ला कर बोल रही थी,बड़बड़ाते हुए वह जतिन के पास चली गयी।आज पूरे परिवार के साथ कोई पार्टी थी,जिसमे सरोज को विशेष आमंत्रित किया गया था।सरोज असमंजस में थी कि बहू नीलिमा ने उसके पहनने के लिये जिस ड्रेस का चुनाव किया  था,उस प्रकार की ड्रेस तो उसने कभी रमेन्द्र के सामने भी नही पहनी थी।तभी जतिन भी आ गया वह भी झल्ला कर ही बोल रहा था क्यो अब तक तैयार नही हुई?झिझकते हुए सरोज बोली बेटा ये ड्रेस—?ओह तो ये बात है, वही पुरानी दकियानूसी सोच से नही निकल पायी हो।अब ये चोंचले छोडो और चुपचाप रेडी हो जाओ,हमारी इज्जत का भी तो ख्याल रखो।

        बेटे का यह रूप तो आज पहली बार उसने देखा था,सरोज तो एक दम अवाक रह गयी।किसी प्रकार मशीन की तरह उठकर वह किसी प्रकार उनकी तरह से तैयार हो वह बेटे बहू के साथ चली गयी।मशीन की तरह ही वापस आ गई।उसके सामने से जतिन का चेहरा हट ही नही रहा था जब वह झल्लाकर कह रहा था,अब ये चोंचले छोड़ो।घर आ कर सरोज दौड़ती हुई रमेन्द्र के फोटो के पास जाकर दहाड़ मार कर रोने लगी।क्यों मुझे छोड़ गये?सुनते हो,आज तो मैं बिल्कुल ही अकेली हो गयी।अपने जतिन ने भी मुझे छोड़ दिया। ओह, अच्छा मेरा किरदार खत्म भी तो हो गया है।

        सुबह सुबह जतिन नीलिमा को सोते से उठाते हुए कह रहा था,माँ तो पापा के पास चली गयी।तुम सिंपल से कपड़े पहन कर ही बाहर आना।

      बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

कठपुतली

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