खुशियों का दीप – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

भगवान का दिया मेरे पास सब कुछ था | गाड़ी ,घर, बंगला ,एक बहुत प्यार करने वाला पति | सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था | धीरे धीरे महसूस हुआ की हमारी शादी को पांच साल हो गए | हमारे अब तक बच्चे नही थे | जहा कही भी बच्चो को देखती ना चाहते हुए भी मन भर आता | हे भगवान मेरे साथ ही ऐसे क्यों??

अचानक मेरे गांव से मेरे चाचा की बेटी सीता मेरे घर आ गई | उसको शहर में कुछ काम था  | मैं  बहुत खुश थी ,उसको देख कर | उसके दो बच्चे थे , दोनो बहुत ही प्यारे थे |पूरा दिन मासी मासी लगाए रहते थे | मैं उनको   पार्क ले के जाती,शॉपिंग कराती उनकी मन पसंद हर चीज  दिलाती |

सीता ने बोला दीदी बच्चो को इतना समान नही दिलाओ , बच्चे बिगड़ जायेगे | और तो और आप रोज रोज इनको घूमने भी नही ले जाओ , नही तो गांव जाने के बाद घूमने के लिय तंग करेगे हमको | कुछ नही होगा, सीता तुम परेशान नही हो | पूरे दिन मैं बच्चो के साथ खेलती 

मेरे पति ऑफिस से घर आए और बहुत जोर से  आवाज लगाया ,आज काम वाली नही आई क्या ?पूरा घर बिखरा पड़ा है | बच्चो को ले जाओ यहां से, इनको रूम में ही रखो | सीता ने अपने बच्चो को लिया और रूम में चली गई |मैने अपने पति  से बोला ये बताओ ,कल को हमारे बच्चे होगे  वो भी घर गंदा करेंगे, तो क्या तुम उनको भी ऐसे ही रूम में  रखोगे ?उनपे भी ऐसे ही गुस्सा करोगे?

 सीता और बच्चो के आखों में आसू थे | मुझे बहुत बुरा लगा |  सीता जिस काम से शहर आई थी उसका काम हफ्ते भर में ही हो गया | अब उसने मुझसे बोला दीदी मेरा टिकट करा दो अब गांव जाना होगा | दिवाली से पहले का ही टिकट बनाना | मैं समझ गई, सीता को मेरे पति की बाते बहुत बुरी लगी इस लिए वो जाना चाह रही थी | मैने बोला दिवाली तक रुक जाओ फिर जाना | लेकिन तुरंत बच्चो ने बोला,

नही मासी हम लोगो को गांव भेज दो | हमको यहां नही रहना है | मेरे गांव में सब बहुत प्यार करते है |कोई भी गुस्सा नही करता | हम दोनो को कोई भी

खिलौना नही चाहिए | 

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मैने टिकट बुक कर दिया | वो तीनो गांव चले गए | उनके साथ बिताया एक एक पल बार बार याद आ रहा था | दिवाली पास आ गई | मेरे पति ने पूछा क्यों मैडम दिवाली पे इस बार क्या लेगी आप ?

हम को रोना आ गया | बोला कुछ नही | मेरे पति समझ गए | की उनकी बातो के कारण ही मैं ऐसे बोल रही हू | उन्होंने बोला चलो रेडी हो जाओ कुछ जरूरी काम है | मैं भी बिना मन के रेडी हो गई , और कार में जाकर बैठ गई |इनकी कार रेलवे स्टेशन की  ओर जा रही थी , कुछ बोला नही मैने | कार एक किनारे रुक गई मेने बोला क्या हुआ यहा क्यों रोक दिया? मैडम आप बाहर तो आइए | 

मैं तो आवक रह गई, मेरे सामने सीता और उसके बच्चे खड़े थे | बच्चो ने मुझे गले लगा लिया | सीता ने बोला दीदी हम लोग इस बार आप के साथ ही दिवाली मनाएंगे | बच्चो ने बोला मासी हमको तो खूब सारे पटाखे दिलाना आप  | पति जी ने बोला मैडम अब शॉपिंग चले ??

मैं हंसने लगी ,   बच्चो की खुशी देख लगा , खुशियों का दीप जल गया हो , मानो आज ही मेरी दिवाली हो |

रंजीता पाण्डेय

#खुशियों का दीप

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