खूबसूरत साज़िश – विभा गुप्ता

   ” नहीं रश्मि…मैं उस मराठन के साथ बिल्कुल भी नहीं जाने वाली है..।अरे तू नहीं जानती…वो मुझे…।” गायत्री जी अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही उनकी बेटी ने उन्हें बीच में ही टोक दिया,” बस माँ..अब फिर से शुरु मत हो जाओ..।भाभी तो तुम्हारी ही इच्छा पूरी..।खैर, मैं उन्हें बता देती हूँ कि तुमलोग नहीं जाओगे..।” कहकर रश्मि अपनी भाभी के पास चली गई।

        बेटी रश्मि के विवाह के बाद गायत्री जी बेटे मनीष जो मुंबई के एक आईटी कंपनी में नौकरी कर रहा था, के लिए लड़की तलाश कर रहीं थीं।वो चाहती थी कि लड़की सुशिक्षित हो और दान-दहेज़ भी लाए ताकि वो भी चार लोगों के बीच अपनी नाक ऊँची कर सकें।

       एक दिन मनीष जब घर आया तब वो अपने पिता मदनलाल जो एक सहकारी बैंक में कार्यरत थें, को मानसी के बारे में बताते हुए कहा कि वो महाराष्ट्र में ही पली-पढ़ी है और मेरे साथ ही काम करती है।हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं।लड़की विजातीय है, ये सुनकर गायत्री जी को धक्का लगा लेकिन बेटे की पसंद है, यह सोचकर उन्होंने हाँ कह दी और मानसी से मिलने सपरिवार उसके घर चलीं गईं जो मुंबई से करीब एक सौ बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक कस्बे में था।मानसी के पिता राधेमोहन जो कुछ महीनों पहले ही अध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे, ने अपनी हैसियत से बढ़कर उनलोगों का स्वागत किया था।

      घर के हालात देखकर गायत्री जी समझ गईं कि बाप ने अपनी पूँजी बेटी को पढ़ाने में लगा दी है..अब कुछ देने से रहा।ये उनके लिए दूसरा सदमा था। घर आकर उन्होंने इस विवाह का विरोध किया।पति और बेटी के बहुत समझाने पर वो राज़ी तो हो गई लेकिन मन में एक कसक रह गई कि बहू उनकी पसंद की नहीं है।हालांकि मानसी जब भी अपने ससुराल आती तो पूरे मन से सास-ससुर की सेवा करती और जब वो दोनों मुंबई जाते तो वो कभी छुट्टी ले लेती तो कभी वर्क फ्राॅम होम करके उन्हें अकेलेपन का एहसास नहीं होने देती थी।

        मदनलाल जी अपनी बहू से बहुत खुश थे, रश्मि की भी अपनी भाभी के साथ खूब अच्छी निभती थी लेकिन गायत्री जी…।जब भी मानसी उनके सामने होती तो यह कहने से कभी नहीं चूकती थीं कि मराठन ने #साज़िश करके मेरे बेटे को फँसा लिया।

        समय अपनी गति से चल रहा था।मदनलाल जी रिटायर हो गए.. रश्मि एक बेटा और एक बेटी की माँ बन गई…मानसी ने भी एक बेटे को जन्म देकर मदनलाल जी और गायत्री जी को दादा-दादी बनने का सुख दे दिया था।

       मनु की स्कूल की छुट्टियाँ हुई तो मनीष कुछ दिनों के लिए घर आया हुआ था।उसने गायत्री जी से कहा कि हम सभी शिमला-मनाली घूमने चलते हैं, वहीं से हरिद्वार-ऋषिकेश भी हो आएँगे। सुनकर वो बहुत खुश हुईं।पति से बोलीं,” बहू चाहे जैसी भी हो..लेकिन बेटा तो मेरा ख्याल रखता है।हरिद्वार जाने की मेरी इच्छा आप तो पूरी कर न सके..मनीष कर रहा है।”

    ” सिर्फ़ मनीष ही क्यों..मानसी भी यही चाहती है।मुझसे पूछती रहती है कि मम्मी की क्या-क्या इच्छाएँ हैं…।”

    ” बस-बस..आपको तो बस बहू का बखान करने का मौका चाहिए।” उन्होंने पति को बीच में ही टोक दिया और पड़ोसी को खुशखबरी सुनाने चलीं गईं।वहाँ से लौटीं तो उनका मुँह उतरा हुआ था।मदनलाल जी ने पूछा भी लेकिन उन्होंने कोई ज़वाब नहीं दिया।अगले दिन सुबह चाय पीते-पीते मनीष मदनलाल जी को बताने लगा कि पहले शिमला चलते हैं…।तभी किचन से गायत्री जी दनदनाती हुई आईं और बोलीं,” हम कहीं नहीं जाएँगे।” सुनकर सभी चौंक गये।बाप- बेटे एक साथ बोले,” ये अचानक तुम्हें क्या…।” बेटे की तरफ़ देखकर गायत्री जी तीव्र स्वर में बोलीं,” मैं सब समझती हूँ..तेरी मराठन पत्नी हमें घुमाने के बहाने ले जाकर वहाँ पर छोड़ देगी।” फिर पति से बोलीं,” कल रमा की माँ बता रहीं थीं कि उनकी ननद को उसकी बहू ने ऐसे ही घुमाने की # साज़िश करके गंगाघाट पर छोड़ आई और उनके घर पर कब्ज़ा कर लिया।आपकी मराठन बहू भी…ना जी ना..हम तो कहीं नहीं जाने वाले..।” कहते हुए उन्होंने अपने दोनों हाथ उठा दिये।

      रश्मि का ससुराल पास ही में था।भाई-भाभी से मिलने वो आई हुई थी।उसने सुना कि माँ जाने से इंकार कर रही है तो उसने समझाया कि आप भाग्यशाली हैं जो बेटे-बहू आपके गंगा-स्नान करने की इच्छा पूरी..।तब बेटी को टोकते हुए गायत्री जी वही बात दोहराने लगी तब रश्मि ने कहा,” जैसी आपकी मर्ज़ी..।” कहकर वो भाभी को बताने चली गई।गायत्री जी भी अपने कमरे में आ गईं और लेटते हुए बड़बड़ाने लगी कि मराठन आपको मूर्ख बना सकती है…मुझे नहीं..।

         थोड़ी देर बाद गायत्री जी को प्यास लगी तो पानी पीने के लिए कमरे से बाहर निकली।पास वाले कमरे से बहू की आवाज़ सुनकर ठिठक गईं।मानसी चहकते हुए कह रही थी,”मनीष…ये तो बहुत अच्छा हुआ।हम मनु को मम्मी के पास छोड़ कर शिमला-मनाली चलते हैं..खूब एंजॉय करेंगे।” 

     बहू से तो पहले ही गायत्री जी चिढ़ी हुईं थीं, ये सुनकर तो वो और भी तिलमिला उठी,” अब मैं तेरे एंजॉय की ऐसी-तैसी करती हूँ।” पानी पीकर वो कमरे में आईं और पति को उठाते हुए बोलीं,” सुनिए जी..हम लोग घूमने जाएँगे।” पत्नी के चेहरे पर क्रोध की रेखा देखकर भी मदनलाल जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी।

       अगली सुबह गायत्री जी मनीष को बोलीं,” हम घूमने जाएँगे लेकिन शिमला नहीं, प्रयागराज और बनारस..।”कहते हुए वो ऐंठकर मानसी की तरफ़ देखी।

    ” सच माँ..मैं अभी टैक्सी और होटल बुक करता हूँ।” मनीष के शरीर में फ़ुर्ती आ गई।रश्मि और मानसी भी बहुत खुश थीं।रश्मि अपने ससुराल चली गई और एक दिन बाद पाँचों जन टैक्सी में सवार होकर प्रयागराज के लिए रवाना हो गए।

         त्रिवेणी में डुबकी लगाकर गायत्री जी का मन प्रभुल्लित हो उठा था।फिर सभी लोग बनारस गये।पोते की ऊँगली पकड़-पकड़कर उन्होंने सभी मंदिरों के दर्शन किये।मनु पूछता कि दादी..ये कौन-से भगवान जी हैं, तब वो खुश होकर बतातीं कि ये प्रभु राम-सेवक महाबली हनुमान जी हैं।उन्होंने मनु को खिलौने दिलाए और अपने नाती-नातिन के लिए खिलौने-कपड़े खरीदे।

       पाँच दिनों की दर्शन-यात्रा समाप्त करके सभी वापस आएँ तब रश्मि भी आई।गायत्री जी से प्रसाद और  खिलौने लेकर वो भाभी के कमरे में चली गई।तभी गायत्री जी को याद आया कि रश्मि को चढ़ाया हुआ सिंदूर तो दिया ही नहीं, वही लेकर रश्मि के पास जाने लगी तो मनीष के कमरे से रश्मि की आवाज़ सुनकर वो रुक गईं,” वाह भाभी! आपने भी क्या खूब प्लानिंग की थी।मम्मी को पता ही नहीं चला कि हम..।”

      ” अच्छा..तो मेरे खिलाफ़ षढ़यंत्र रचा गया था..।” भड़ाक-से दरवाज़ा खोलती हुई गायत्री जी गुस्से-से बोलीं तो तीनों सकपका गये।

   ” माँ..वो..।” मनीष और रश्मि हकलाने लगे।गायत्री जी आँखें लाल करती हुईं बोलीं,” तुम दोनों से तो बाद में निपटूँगी…मराठन, तू बता..।” कहते हुए मानसी को घूरने लगी।मानसी बोली,” वो मम्मी..।”

   ” क्या वो…।”

    ” मनीष जी ने मुझे बताया था कि आप हरिद्वार, प्रयागराज और बनारस का दर्शन करना चाहती हैं।पहले बच्चे छोटे थे तो आप जा नहीं सकी और अब अकेले कैसे..।मैं आपको पसंद नहीं..।”कहते हुए मानसी ने आँखें नीची कर ली।

        ” फिर मैंने..।”

    ” भाभी ने नहीं..।” रश्मि बोल पड़ी तो गायत्री जी ने उसे डपट दिया और मानसी को बोली,” तू बोल..।” मानसी बोली,” हमने हरिद्वार का प्लान बनाया।फिर प्रयागराज का भी बनाया।आपने हरिद्वार जाने से मना कर दिया, इसीलिए उस रात जब आप कमरे से बाहर आईं तो पापाजी ने मनीष जी को मैसैज कर दिया, मैंने जान-बूझकर आपको सुनाकर कहा कि मनु को..ताकि आप प्रयागराज जाने के लिए..।आपकी इच्छा पूरी करने के लिए ही मैंने…।”

    ” ये खूबसूरत साज़िश रची थी..है ना बहू।” मुस्कुराते हुए गायत्री जी ने मानसी के सिर पर हाथ फेरा तो उसकी आँख से झर-झर आँसू बहने लगे।पहली बार गायत्री जी ने उसे मराठन न कहकर बहू पुकारा था।

    ” तो आप हमसे नाराज़ नहीं हैं..नाटक कर रहीं थीं.. रश्मि और मनीष एक साथ बोल पड़े।

    ” तुम दोनों से नाराज़ हूँ लेकिन अपनी बहू से नहीं..इसने हमेशा मेरा ख्याल रखा।बस मैंने ही दूसरों की बातों में आकर गलत राय बना ली और इसे भला-बुरा कहती रही।मुझे माफ़ कर देना मानसी..।” कहते हुए गायत्री जी बहू को अपने गले से लगा लिया।हृदय से हृदय मिले तो सारे गिले-शिकवे दूर हो गये।

     ” इतना नोइज़..फिर से आपने दादी को गुस्सा कर दिया मम्मा..।” मनु आँखें मलता हुआ आया।   

   ” नहीं बेटे..तुम्हारी मम्मा ने तो मेरा गुस्सा हमेशा के लिए ठंडा कर दिया..।” कहते हुए गायत्री जी उसे अपनी गोद में उठा लिया।मदनलाल जी भी बेटे के कमरे में आ गये।सारी रात बातों और हँसी-ठहाकों में बीत गई।

      अगली सुबह मनीष जाने लगा तब गायत्री जी ने मानसी को अपने कमरे में बुलाया और उसके गले में हार पहनाते हुए बोली,” बहू, मेरी सास ने मुझे दिया था और मैं तुम्हें..।”

    ” अरे वाह माँ..फिर तो मुझे भी अपनी सास के साथ..।” 

    ” चुप कर शैतान!” फिर तीनों ही हा-हा करके हँसने लगें।दूर खड़े मदनलाल जी की आँखें खुशी-से भर आईं।मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देते हुए बोले,” हे प्रभु!इनकी खुशियों को बुरी नज़र से बचाना”

                                  विभा गुप्ता

 # साज़िश                स्वरचित, बैंगलुरु 

                यह ज़रूरी नहीं है कि साज़िश हमेशा गलत उद्देश्यों के लिए ही रची जाये।कभी-कभी सार्थक कार्यों के लिये भी छोटी-सी साज़िश की जाती है जैसा कि मानसी ने अपनी सास के लिए किया था।

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