रिटायर प्रोफेसर देवाशीष मुखर्जी आज अपने अकेलेपन से जूझ रहे थे। इतना बड़ा घर और वह बिल्कुल अकेले। मानो अकेलापन उन्हें निगल रहा था। रोज सुबह सवेरे सैर करने जाते थे, तब थोड़ी देर उन्हें बहुत ही अच्छा लगता था। पक्षियों की चहचहाट, ताजी हवा, खुला नीला आसमान, हल्की-हल्की धूप, सुंदर पेड़ पौधे और अपनी उम्र के लोगों से बातें करना।
पार्क में बैठे चार पांच लोगों ने मिलकर एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया था। उन लोगों का यह कहना था कि सोते समय शुभ रात्रि और सुबह सुप्रभात कहकर एक दूसरे को यह बताएंगे कि हम ठीक हैं और सुरक्षित हैं।
लेकिन घर आने के बाद अकेलापन। सारे काम समाप्त करने के बाद भी बहुत समय खाली होता था। टीवी भी देखते,तो आखिर कितना। कोई पास बैठने वाला हाल-चाल पूछने वाला भी तो होना चाहिए।
बैठे-बैठे उन्हें पुराने दिनों की यादें सताने लगती थी। उनका बेटा अभिजीत तब छोटा था और उनकी पत्नी रत्ना भी उनके साथ थी। अभिजीत सारा दिन बाबा बाबा कहकर उनके इर्द-गिर्द घूमता रहता था, जब वह कॉलेज से आते तो उनसे लिपट जाता और ढेर सारी बातें करता,अपने स्कूल की बातें बताता, रत्ना दोनों का ध्यान रखती थी।
अभिजीत पढ़ाई में हमेशा प्रथम स्थान पर रहता था और बचपन से ही वह डॉक्टर बनना चाहता था और उसने बनकर भी दिखाया।
प्रोफेसर देवाशीष को झटका तब लगा,जब अभिजीत ने अमेरिका जाकर बसने की इच्छा जताई। देवाशीष ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना।
अभिजीत ने कहा -” बाबा, समझो ना मेरी बात को, मैं आगे बढ़ना चाहता हूं तरक्की करना चाहता हूं और खूब पैसा भी कमाऊंगा वहां जाकर, यहां उतना पैसा नहीं है। ”
देवाशीष-” पर बेटा हमें किस चीज की कमी है यहां, क्या करेंगे इतना पैसा, सब कुछ तो है हमारे पास, मिलकर रहेंगे हंसी खुशी सुख से। ”
अभिजीत -” बाबा मुझे ज्यादा पैसा कमाना है और फिर थोड़े दिनों बाद में आप दोनों को भी बुला लूंगा वहां। ”
देवाशीष-” रत्ना तुम ही समझाओ इसको, इसके बिना कैसे रहेंगे,हम( इकलौता बेटा है हमारा), आमादेर एकमात्र छेले आछे। ”
रत्ना ने कभी अमेरिका जाने के सपने देखे थे तो मन ही मन अमेरिका के नाम से खुश हो रही थी। उसने ऊपरी दिखावा करते हुए कहा-” अभिजीत तुम्हारे बाबा सही कह रहे हैं। ”
रत्ना ने भी कभी अमेरिका जाने के सपने देखे थे, जो कभी पूरे नहीं हुए। अमेरिका की बात सुनकर वह बहुत ही उत्साहित हो गई थी। उसने कहा-” तुम मत जाओ, ( तुमि जाओ ना, आमि ओकेला होबो।) हम अकेले हो जाएंगे। ”
अभिजीत -” मां आप मेरी बात को समझो( मां, अमि कता बुझते पारेन।)
देवाशीष को अभिजीत की बात माननी पड़ी और उन्होंने उसे अमेरिका जाने दिया। वहां उसने जल्द ही अपनी पहचान बना ली क्योंकि वह सचमुच काबिल था। उसकी तरक्की से मां बाबा खुश थे। लगभग 2 साल बाद वह आया और मां बाबा को साथ ले गया। कुछ महीने वहां रहने के बाद देवाशीष का मन वहां नहीं लगा उन्होंने रत्ना से कहा अब वापस चलते हैं। वह देवाशीष के साथ वापस तो आ गई लेकिन उसका दिल अमेरिका में ही अटका हुआ था। वह कुछ दिनों बाद फिर से अमेरिका चली गई।
इधर देवाशीष को खाने में कुछ बनाना नहीं आता था और बाहर का खाना उसे हजम नहीं होता था। डॉक्टर ने हाई बीपी और डायबिटीज की वजह से कहा था कि आप घर का ही खाना खाएं। थोड़े दिन उन्होंने एक कुक से खाना बनवाया लेकिन उनको पसंद नहीं आया। उनकी तबीयत खराब रहने लगी थी। उन्होंने रत्ना को बुलाया लेकिन वह वापस नहीं आना चाहती थी बल्कि वह तो ग्रीन कार्ड बनाकर वहीं बसना चाहती थी। वहां जाकर उसका व्यवहार भी बिल्कुल बदल चुका था। देवाशीष ने फोन करके रत्ना से कहा-” उम्र के इस पड़ाव पर हमें एक दूसरे के साथ की जरूरत है, अभिजीत विवाह करके अपनी गृहस्थी बसा लेगा, तुम इधर आ जाओ। तुम्हें तो मेरी बीमारियों के बारे में पता ही है। “
उसने देवाशीष को साफ कह दिया था-” मैं बाकी जिंदगी आजादी से अपने लिए जीना चाहती हूं, सब कुछ तो है तुम्हारे पास दो-तीन सर्वेंट रख लो, दवाई समय पर लेते रहो, दवाइयां से ही तो ठीक रहोगे, मैं वहां आकर कोई तुम्हारी बीमारियां दूर थोड़ी ना कर सकती हूं और ना ही तुम्हें ठीक कर सकती हूं। ”
फिर भी थोड़े-थोड़े दिनों में देवाशीष अमेरिका फोन करके दोनों का हाल-चाल पूछते रहते थे और पुराने दिनों को याद करते रहते थे। उन्हें याद आ रहा था कि अभिजीत या रत्ना के बीमार होने परके बीमार होने पर कैसे वह तुरंत अपने कॉलेज से छुट्टी लेकर उनके लिए उपस्थित रहते थे। उन दोनों की हर इच्छा को पूरा करने की कोशिश करते थे। अब रिश्ते कैसे दिखावटी हो गए हैं। मैं उनके लिए कुछ भी नहीं। औलाद के बारे में तो सुना था लेकिन रत्ना वह तो मेरी पत्नी है। उसे अपने पति की लेशमात्र भी चिंता नहीं। आजकल के यह खोखले रिश्ते।
ऐसे ही एक दिन अकेलेपन से परेशान देवाशीष रसोई घर में पानी लेने गए और वहीं पर गिर पड़े। जबकि वह रात को अपने व्हाट्सएप ग्रुप के दोस्तों को शुभ रात्रि का चुके थे। सुबह उनके दोस्तों ने सुप्रभात का मैसेज भेजो लेकिन देवाशीष की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला। उन लोगों ने थोड़ा इंतजार किया, लेकिन कोई उत्तर नहीं आया, फिर वह सब मिलकर देवाशीष के घर पहुंचे। उन्होंने फोन किया, मोबाइल के बजाने की आवाज आ रही थी,लेकिन दरवाजा कोई नहीं खोल रहा था। उन्होंने दरवाजा तोड़ दिया और अंदर जाकर देखा कि देवाशीष रसोई घर में गिरे पड़े हैं। उनके माथे पर चोट का निशान था और खून लगा हुआ था शायद गिरते समय वह रसोई की स्लैब से टकरा गए थे। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
उन लोगों ने अभिजीत का नंबर मिलकर उसे खबर दी। अभिजीत और रत्ना ने कहा -” हम ऐसे तुरंत नहीं आ सकते,आप छोटा बाजार के पास रहने वाले हमारे मामा जी के लड़के को बुला लीजिए,वही अंतिम संस्कार करेंगे। ”
फिर उस व्यक्ति को बुलाया गया, उसने अंतिम संस्कार किया और अभिजीत व रत्ना वीडियो कॉल के द्वारा अंतिम संस्कार में शामिल हुए। रत्ना ने आंसू बहाते हुए कहा-” मैं तो आना चाहती थी पर संभव नहीं हो सका, अभिजीत भी रोकर बाबा बाबा का रहा था।
यह है आजकल के दिखावटी रिश्तों की कहानी। स्वार्थ भरे, दिखावटी खोखले रिश्ते, ऐसे रिश्ते जो सिक्कों की खनक में खो गए।
काल्पनिक, स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
#दिखावटी रिश्ता