खतरा टल गया – गीता वाधवानी

 शांतनु अपनी माताजी का अस्थि विसर्जन करने हरिद्वार गए थे। जैसे ही वह कार्य पूरा करके वापस मुड़े सीढियों पर किसी ने उनकी टांगों से लिपट कर कहा -” पापा पापा, आप मुझे छोड़कर कहां चले गए थे, सुबह से आपको ढूंढ रही हूं, अब तो मुझे डर लग रहा है। देखो ना कितनी देर हो गई है,। ” 

     और फिर जैसे ही उसने इतना कहकर अपना मुंह ऊपर किया, तो अपने पापा की जगह किसी और को देखकर घबरा गई और सॉरी अंकल कहकर दूर हट गई, उसकी आंखों में आंसू थे। 

     शांतनु ने देखा कि वह एक चार -पांच साल की छोटी सी बच्ची है। उन्होंने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास सीढ़ी पर बिठाया और पूछा-” क्या हुआ बच्चे, क्यों रो रही हो, तुम्हारे पापा कहां गए? ” 

     वह फूट-फूट कर रोने लगी। ” अंकल मैं अपने पापा के साथ यहां आई थी, उसके बाद पापा मुझे यहां बिठाकर ना जाने कहां चले गए, कब से उनको ढूंढ रही हूं, पर वह मिले नहीं, मुझे आपको देखकर ऐसा लगा कि आप पापा हो। ” 

 तभी एक आदमी पास आया और बोला” भाई साहब दोपहर से यही घूम रही है, पहले बहुत देर तक सीढ़ी पर बैठी थी, पता नहीं इसका बाप कहां चला गया इसे छोड़कर, छोड़ो आप अपना काम करो, इसके चक्कर में मत पडो। लड़की है ना, इसीलिए घाट पर छोड़कर चला गया होगा। ” 

 शांतनु ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और बच्ची से पूछा-” बेटी तुम्हारा नाम क्या है, तुम्हारे पापा का नाम, कहां रहती हो? ” 

 बच्ची ने कहा -” मेरा नाम जाह्नवी है, मेरे पापा का नाम शैलेश, हम ट्रेन में बैठकर बहुत दूर से आए हैं। ” 

 शांतनु -” तुम्हें अपना घर का पता मालूम है” लेकिन बच्ची को कुछ पता नहीं था। शांतनु को लगा कि शायद इसके पास जो बैग है उसमें कुछ मिल जाए। उन्होंने बैग चेक किया। उसमें कुछ कपड़े और 1000 रुपए और एक चिट्ठी थी। 

 उसमें लिखा था-” जिस किसी को भी मेरी यह बच्ची मिले कृपा करके उसे किसी अच्छे आश्रम में पहुंचा दीजिए क्योंकि मुझे ऐसी किसी जगह के बारे में पता नहीं है और ना ही मेरे पास समय है। डॉक्टर ने कहा है कि मेरे पास मुश्किल से एक महीना हो सकता है या फिर एक हफ्ता भी। कैंसर अपने अंतिम चरण पर है। अब इलाज संभव नहीं है। मेरी पत्नी इसे पैदा करते ही चल बसी थी और कोई भी नजदीकी रिश्तेदार नहीं है। बच्ची को यहां पर छोड़कर मैं जल समाधि लेने जा रहा हूं। मेरी यह चिट्ठी मेरी बच्ची को कभी मत देना नहीं तो वह टूट जाएगी। मेरी बच्ची मुझ पर बोझ नहीं है बल्कि मैं इस पर बोझ हूं। शैलेश।। 

    शांतनु की आंखों में आंसू आ गए। जाह्नवी  की ओर देखकर उन्हें अपनी दो वर्षीय बेटी ईशानी की याद आ गई। उन्होंने सोचा इसे मैं गंगा मैया का आशीर्वाद समझ कर अपने साथ ले जाऊंगा और इसे बेटी बनकर इसका पालन पोषण करूंगा। भगवान का लाख-लाख धन्यवाद कि यह अभी तक किसी गलत हाथों में नहीं पड़ी। दुनिया का क्या भरोसा ऐसे मैं कैसे इसे किसी आश्रम में छोड़ आऊं। 

 उन्होंने अपने साथ आए अपने साले साहब से बात की। उसने सलाह दी -” जीजा जी आप ठीक सोच रहे हो लेकिन आजकल का जमाना खराब है, किसी लफड़े में फंसने से अच्छा है कि हम पहले चलकर पुलिस स्टेशन में खबर दे देते हैं और बता देते हैं कि हम बच्ची को साथ ले जा रहे हैं। ”  

     यह सब बातें चादर ओढ़े हुए एक व्यक्ति भी सुन रहा था। दरअसल यही शैलेश था। अपनी लाडली की चिंता में वह मर भी नहीं पाया था। वह इंतजार कर रहा था कि अगर बच्ची को कोई सही इंसान मिला तो ठीक है वरना मैं झपटकर अपनी बच्ची छीन लूंगा। शांतनु की बातों से उसे बहुत तसल्ली हुई। 

      तभी जाह्नवी ने भोलेपन से पूछा, ” अंकल इस कागज में क्या लिखा है? ” 

 शांतनु -” बेटा इसमें लिखा है कि तुम्हारे पापा थोड़े दिनों में हमारे घर आकर मिलेंगे, और क्या आप हमारे घर चलोगे? ” 

 भोली बच्ची खुश हो गई और मान गई। शांतनु ने पहले उसे खाना खिलाया और फिर पुलिस स्टेशन जाकर खबर की। पुलिस को लेटर दिखाने के बाद उसने उसे फाड़ कर फेंक दिया। पुलिस स्टेशन तक शैलेश पीछे-पीछे गया और जब वे लोग अपनी कार में बैठे, उसके मुंह से हल्की सी आवाज निकली जाह्नवी, और वह धडाम से वहीं सड़क पर गिर गया और उसके प्राण पखेरू उड गए और इधर ना जाने जाह्नवी  को क्या हुआ, अचानक पापा पापा करके रोने लगी और रोते-रोते सो गई। 

      घर जाकर शांतनु ने जब पूरी बात बताई तो उसकी पत्नी नेहा बहुत खुश हुई और दुखी भी। उसे शैलेश के लिए दुख हो रहा था और जाह्नवी को पाकर खुशी। वह जाह्नवी की प्यारी मम्मी बन गई थी। 

      धीरे-धीरे वह शांतनु को पापा कहने लगी थी पर अभी शैलेश को पूरी तरह भूली नहीं थी। थोड़ी बड़ी होने तक उसे धुंधला धुंधला सा याद था। कभी-कभी वह शांतनु से पूछती थी-” पापा, क्या आप मुझे कभी नदी किनारे ले गए हैं? क्या मैं पापा पापा कह कर रो रही थी? ” 

 उसे समय तो शांतनु ने बात इधर-उधर कर दी, लेकिन उन्होंने सोच लिया था की बड़ी होने पर वह उसे सच बता देंगे। 

 ईशानी, जाह्नवी को दीदी दीदी कहते थकती नहीं थी। दोनों बहनों में बहुत प्यार था। नेहा और शांतनु ने दोनों को अपनत्व की छांव में पाला था। जाह्नवी पढ़ लिख कर जॉब करने लगी थी और इशानी कॉलेज के लास्ट ईयर में थी। 

 अब जाह्नवी  के लिए एक अच्छा रिश्ता ढूंढा जा रहा था। शांतनु ने उसका रिश्ता तय करने से पहले उसे यह सच बता दिया था कि तुम्हारे पापा मेरे दोस्त थे। कैंसर के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी और वह तुम्हें, मुझे सौंप गए थे और मैं तुम्हें एक बार गंगा जी ले गया था। तुम इतना पानी देखकर डर गई थी और पापा पापा कहकर रोने लगी थी। उन्होंने चिट्ठी में लिखी जल समाधि वाली बात उसे नहीं बताई थी। शांतनु के ऑफिस में एक लड़का अजय काम करता था। वह शांतनु को बहुत पसंद था क्योंकि वह बहुत ही नेक और स्त्रियों का सम्मान करने वाला था लेकिन परेशानी यह थी कि वह इस दुनिया में अकेला था। उन्होंने जाह्नवी  को पूरी बात बताई। अजय और जाह्नवी एक दूसरे से मिले और एक दूसरे को पसंद कर लिया। दोनों का विवाह सुखपूर्वक संपन्न हुआ। 

       थोड़े समय बाद ईशानी का कॉलेज खत्म होते ही उसके लिए एक अच्छा रिश्ता आया। शांतनु और नेहा उसे विवाह करके इतनी दूर भेजना नहीं चाहते थे, लेकिन जोड़ियां तो ईश्वर बनाता है उसे कौन नकार सकता है। ईशानी शादी करके दुबई चली गई। 

      उसे अपने मम्मी पापा की बहुत चिंता होती थी कि वह अब अकेले कैसे रहेंगे, वैसे तो जाह्नवी उनसे ज्यादा दूर नहीं थी लेकिन उसकी नौकरी  भी थी और घर की जिम्मेदारियां भी। सच जानने के बाद भी दोनों बहनों के प्यार में कोई फर्क नहीं आया था। 

      अजय जाह्नवी का बहुत ध्यान रखता था। कभी-कभी खाना भी बना लेता था। एक दिन अजय सुबह जब जिम से वापस आया तो वह बहुत ही थका हुआ था। उसे कुछ घबराहट सी महसूस हो रही थी। जाह्नवी ने कहा, चलो डॉक्टर के पास चलते हैं। अजय ने कहा नहीं, थोड़ा रेस्ट करूंगा, तुम मेरे लिए जूस बना दो। थोड़ी देर बाद उठा देना मैं ऑफिस के लिए तैयार हो जाऊंगा। 

 उसने जूस बनाकर अजय को दिया,अजय को राहत मिली। वह थोड़ी देर के लिए सो गया। तब तक जाह्नवी  ने दोनों का लंच पैक कर लिया और नाश्ता भी रेडी कर लिया। उसने अजय को जगाया। ” अजय उठो, नाश्ता बना दिया है, नाश्ता खा लो और मुझे भी रास्ते में ऑफिस छोड़ते हुए चले जाना, मैं नाश्ता परोसने जा रही हूं। ” 

 जाह्नवी  ने नाश्ता परोस दिया, अजय अभी तक उठकर आया नहीं था। उसने फिर से उसे उठाया, लेकिन मैं उठा नहीं। जाह्नवी ने तुरंत डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने चेकअप करके बताया कि इनका हार्ट फेल हुए लगभग एक घंटा हो चुका है। जाह्नवी  की तो दुनिया ही उजड़ गई। अभी शादी को समय ही कितना हुआ था और इतनी बड़ी अनहोनी। 

    और इधर शांतनु और नेहा को तो गम ने घेर लिया। नेहा फूट-फूट कर रो रही थी और शांतनु अपने दुख को दिल में पालकर एकदम गुमसुम हो गए थे। ना किसी से बोल रहे थे और ना रो रहे थे। ऐसे निर्विकार  हो गए थे मानो सब कुछ भूल गए हो। अब तक मुंह से ना तो एक शब्द निकला था और ना आंख से एक आंसू टपका था। 

 सभी कह रहे थे कि इनका रोना बहुत जरूरी है, वरना यह दुख इनको चिता तक ले जा सकता है। जाह्नवी अपना दुख भूल कर पापा की सेवा में लग गई थी उनके साथ बातें करती थी अपना दुख भूल कर पापा की सेवा में लग गई थी। उनके साथ बातें करती थी, उन्हें रुलाने की कोशिश करती थी। बहन का दुख देखकर ईशानी भी दौड़ी चली आई थी। वह भी अपने पापा को रुलाने की कोशिश कर रही थी। मगर कुछ असर ना होता देखकर दोनों बहने गले लगा कर रो रही थीं।

 डॉक्टर ने कहा-” अगर ऐसे ही कुछ समय और बीता तो खतरा बढ़ जाएगा। इनके साथ कुछ पुरानी बातें, पुरानी यादें ताजा कीजिए और कैसे भी करके इन्हें रुलाइए। ” 

 जाह्नवी आंखें बंद करके बैठी कुछ सोच रही थी, तभी उसे याद आया कि वह बचपन में शांतनु की टांगे पड़कर रो रही थी और कह रही थी कि पापा आप कहां चले गए थे। 

 उसने देखा कि शांतनु गुमसुम खिड़की के पास खड़े हैं और बाहर देख रहे हैं। वह जाकर उनकी टांगों से लिपट गई और रोते रोते कहने लगी-” पापा पापा आप मुझे छोड़कर कहां चले गए थे, मैं आपको ढूंढ रही थी, मुझे डर लग रहा है। ” 

 शांतनु ने नीचे की तरफ देखा तो उन्हें वही छोटी सी चार-पांच साल की जानवी शांतनु ने नीचे की तरफ देखा तो उन्हें वही छोटी सी चार-पांच साल की जाह्नवी  रोती नजर आई। उन्होंने तुरंत उसे कंधे से पकड़ कर उठाया और रोते हुए बोले, ” मेरी बच्ची तू क्यों रो रही है, रो मत मैं तो यही हूं तेरे पास। ” 

 तब उसने कहा-” पापा आपकी बच्ची, विधवा हो गई। ” दोनों बाप बेटी खूब फूट-फूट कर रोए, शांतनु,।नेहा ईशानी सब जोर-जोर से रो रहे थे। शांतनु के मन का दुख आंसुओं में बह गया था। खतरा टल गया था। 

      कुछ दिन बाद ईशानी वापस जा रही थी तब वह बहुत  चिंतित थी। जाह्नवी ने उससे कहा -” ईशानी तुम बिल्कुल निश्चिंत होकर जाओ, मैं हूं मम्मी पापा के पास, मैं उनको कभी अकेला नहीं छोडूंगी, उनसे मुझे जो प्यार और अपनात्व की छांव मिली है, उसे तो मैं कभी नहीं चुका सकती, पर मैं उनके साथ रहकर उनकी सेवा तो कर ही सकती हूं।” 

 ईशानी-” हां दीदी आपके होते हुए मुझे उनकी कोई चिंता नहीं है, लेकिन आप भी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की सोचिएगा जरूर। ” 

 अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली 

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