माही का आज ससुराल में पहला दिन था । उसे अपनी मां की सीख रह रह कर याद आ रही थी। माही सब के साथ अच्छे से रहना। ज्यादा बोलना नहीं और हां यहां की तरह उठते ही सब
से पहले अपनी चाय की प्याली लेकर बैठ नहीं जाना । कमरे में कपड़े इधर उधर फैलाकर नहीं रखना।
सब सहेज कर रखना। रसोई में कुछ बनाओ तो फिर से सब समेटना । यहां की तरह सब बिखरा कर नहीं छोड़ देना और हां सबसे जरूरी बात । जल्दी उठना कहीं ऐसा ना हो । सारे घरवाले उठ जाए और तु सोती रह जाए।
मां की यह सारी बातें सुनकर बाबूजी हंस पड़ते और फिर प्यार से बोल उठते। अरे माही की मां आपने अभी अपनी माही को जो भी समझाया। वो सब तो ठीक है मगर ये भी समझाएं। ससुराल में स्वाभिमान के साथ जीना ।
वहां सब की पसंद और ना पसंद का सम्मान करना हां मगर खुद की पसंद और ना पसंद भी अपने घर वालों को बताना । ससुराल कोई गेस्ट हाउस नही होता। जहां थोड़े दिन गुजारने होते हैं बल्कि अपने जीवन साथी सास ससुर पूरे परिवार वालों के साथ पूरी जिंदगी गुजारनी होती है।
बाबूजी की बातें सुनकर मां मुस्कुराती रहती। बाबूजी यहीं नहीं रुकते । वह फिर मेरी और देखकर भी बोल पड़ते थे । देखो बिटिया जो नाता जीवन भर का हो ।
उसकी डोर कोई थोड़ी बहुत कभी-कभी खींच दे तो चलता है मगर उस डोर को रोज रोज अगर एक तरफ ही खींचते जाए तो उस डोर को टूटते देर नहीं लगती इसीलिए रिश्ता निभाने के लिए हमेशा दोनों तरफ से ही बराबर की कोशिश होनी चाहिए बल्कि मैं तो यही कहूंगा तुम अपने ससुराल माता-पिता के सम्मान के साथ साथ अपने सम्मान की चुनरी भी ओढ़ कर ही इस घर से विदा होना।
वहां सब की खुशियों का ख्याल रखना मगर खुद के होठों की हंसी भी कभी गुम ना होने देना । सौ बात की एक बात बिटिया। इंसान की तरह जिंदगी जीना। किसी के हाथों की कठपुतली बनकर नहीं।
मैं दोनों की बातें सुनकर मुस्कुरा बोल उठती। मां बाबूजी आप दोनों की ये सीख मैं अपने जीवन में हमेशा याद रखूंगी। आप दोनों ही फिकर ना करे । मैं अब बड़ी हो चुकी हूं। मैं अपना अच्छा बुरा सब समझ सकती हूं। आप दोनों बिल्कुल निश्चित हो जाइए ।
अचानक साकेत की आवाज सुनकर मैं अतीत से लौट आई और देखा। साकेत मुझे आवाज दिए जा रहे थे । वो कह रहे थे। माही मां ने तुम्हारे लिए चाय भिजवाई है। मैं साकेत की बात सुनकर खुश हो गई।
मैंने साकेत से कहा। अरे वाह मम्मी जी को कैसे पता चला कि मुझे सुबह-सुबह चाय पसंद है?? साकेत मेरी बात सुनकर मुझे कहने लगे। जब इस घर में मैं तुम्हें ब्याह कर लाया हूं तो मेरा फर्ज बनता है कि तुम्हारी सुबह से लेकर शाम तक की आदतों से मेरा परिचय हो जाए और मेरी हर आदतों से तुम्हारा परिचय हो जाए।
अच्छा चलो बातों बातों में चाय ठंडी हुए जा रही है पहले चाय तो पी लो कह कर साकेत ने मेरी और चाय की प्याली बढ़ा दी । मैंने चाय की प्याली जैसे ही होठों से लगाई। मेरे तन और मन में एक मीठी सी मिठास घुल गई।
मैंने फटाफट चाय खत्म की और अलमारी से लाल जरी की बॉर्डर वाली साड़ी निकाली और तैयार होकर कमरे से बाहर निकल गई । मुझे बताया गया था कि आज मेरी मुंह दिखाई की रस्म होने के बाद आज मेरी पहली रसोई भी है। मैंने देखा पूरा घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था।
मुझे देखते ही सब की निगाहें मुझ पर टिक गई। मैंने सब को प्रणाम किया खैर मुंह दिखाई की रस्म तो अच्छी तरह निपट गई। अब बारी आई मेरी पहली रसोई की तो सासु मां ने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा । माही खीर बनाना जानती हो? अगर नहीं भी जानती हो तो घबराने वाली कोई बात नहीं है ।धीरे-धीरे सब सीख जाओगी। फिलहाल मैं तुम्हें सारा सामान बराबर निकाल कर दे देती हूं ।
मम्मी जी की बात सुनकर मैं उन्हें प्रणाम करते हुए बोल उठी। मम्मी जी मां ने सिखाई है मुझे खीर बनानी। ठीक है फिर कहकर मुझे रसोई में रखा सारा सामान बता कर वो चली गई। मैं तन मन से खीर बनाने में लग गई।
जब खीर बनकर तैयार हो गई तो सबकी थालियां में बाकि और पकवानों के साथ खीर भी परोस दी गई। जैसे ही गांव से आई हुई साकेत की ताई जी ने वो खीर चखी। वह जोर से बोल उठी। अरे इतनी मीठी खीर मैं तो नहीं खा पाऊंगी। सभी जानते हैं मैं शुगर की मरीज हूं ।
ताई जी तुरंत मेरी सासू मां से बोल उठी ।अरे मोहिनी अपनी बहू से कह, मेरे लिए दूसरी खीर बना दे। मैं कुछ कहती उस से पहले ही मेरी सासू मां ताई जी से बोल उठी।
दीदी आप एक चम्मच खीर खाकर शगुन पूरा कर ले और माफ कीजिए अभी तो यह नहीं बना पाएगी क्योंकि आज इस घर में बहू का पहला दिन है । मैं भली भाती जानती हूं वह इस वक्त बहुत थकी हुई है और इस घर के लिए नई भी।
मुझे आज भी याद है। जब मेरी पहली रसोई में मुझे खीर बनाने को दी गई थी । मुझ से भी इसी तरह थोड़ी ज्यादा मीठी हो गई थी क्योंकि मेरे मायके में सब मीठा खाते थे तो आपने मुझ से दोबारा खीर बनवाई थी ।
जबकि आप तो खुद एक औरत थी । आपको यह समझना चाहिए था । हर औरत शादी से पहले किसी के घर की बेटी होती है । जहां के तौर तरीके बिल्कुल अलग होते हैं और शादी के बाद तुरंत एक नए घर में प्रवेश करना और वहां के हर सदस्य को समझना कितना मुश्किल होता है ।
उस नए घर की आदतों को अपनाने में और उस में रच बस जाने में परिवार के हर सदस्यों को तो उस नई बहू की मदद करनी चाहिए ना कि उस में कोई कमी देखनी चाहिए ।
मैं उस वक्त आप के हाथों की कठपुतली बन गई थी मगर आज स्थिति बदल चुकी है। मेरी बहू अब आपके हाथों की कठपुतली नहीं बनेगी। मेरी सासू मां की बात सुनकर साकेत की ताई जी फिर बोल उठी।
अरे मोहिनी नई बहू को अपने सर पर इतना बिठाओगी तो एक दिन तुम्हें पछताना पड़ेगा। बहू की लगाम अपने हाथ से छोड़ दोगी तो वह थोड़े दिन में ही तुम्हारी कैद से निकल जाएगी।
ताई जी के बात सुनकर मेरी सासू मां फिर बोल उठी। तो क्या दीदी बहु कोई गाय बैल है, जिसकी लगाम मैं अपने हाथ में रखूं और हां अगर मुझे बांध के रखना ही होगा तो मैं उसे प्यार के बंधन में बांधकर रखना चाहूंगी मगर इस तरह हुकूमत वाली जिंदगी से उसका परिचय कभी नहीं होने दूंगी और दीदी अब आप भी छोड़िए इन बातों को और अपनी नई बहू को आशीर्वाद दीजिए।
मैं रसोई से खड़ी खड़ी मेरी सासू मां और ताई जी की यह बातें सुनकर खुशी से बावरी हुई जा रही थी । मुझे बहुत अच्छा लग रहा था । मैंने मां और पिताजी का मन ही मन धन्यवाद किया कि इतने अच्छे परिवार से मेरा रिश्ता जोड़ा।
ये सच है अगर एक औरत दूसरी औरत के दर्द को समझ ले । भले वह रिश्ता सास बहू का हो, देवरानी जेठानी का हो, ननद भाभी का हो तो,हमें किसी के हाथों की कठपुतली बनना ही नहीं पड़ेगा।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम