कठपुतली – परमा दत्त झा : Moral Stories in Hindi

‘बाबूजी आज भोपाल मेला चलिए न-राधा और मालती भी कह रही थी।-बहू चाय देते बोली।

अच्छा,कहते महेश्वर दयाल जी चाय पीने लगे।वे टी वी भी देखने लगे। सुबह के सात बजे थे और ये अपनी चाय दुकान चलाकर आये थे।इनकी आंखों से सावन भादो झरने लगे।

“ना बाबूजी,अब सब ठीक हो गया।-यह बहू यशोदा थी।

कुछ भी नहीं बहू, हमें भगवान ने कठपुतली बना दिया है।जब मर्जी नचाता है,जब मर्जी —वे रोते हुए कह रहे थे।

बस हिम्मत न हारें और लगे रहे -अब क्या है राधा और मालती का मेडिकल फाइनल इयर है।बस एक,दो साल और , फिर तो परेशानी खत्म।-,वह सिर पर हाथ फेरने लगी थी।वह स्वयं पचास साल में इतना थक जाती है तो अस्सी पार बाबूजी –!

इसे याद आ गई वह दुर्घटना –आज से पच्चीस अठाईस साल पुरानी बात है,-इसका पति रमेश,देवर सुरेश, देवरानी कुंती,गोद की बेटी पिंकी,सास सहित पूरा परिवार उज्जैन महाकाल जा रहा था।सोलह साल बाद कुंभ लगा था वह भी क्षिप्रा तट पर।इनको प्राइवेट जाब में छुट्टी नहीं मिली थी जबकि दोनों भाई डाक्टर थे।सो एक धमाका –अचानक गाड़ी आवाज के साथ उड़ गया और सब खत्म।

अब ये पागल सा हो गये थे। कहां सोच रहे थे कि अब वी आर एस ले लेते हैं। बहुत काम किया, कहां यह प्रलय।पूरा परिवार स्वाहा–.बस बड़ी बहू यशोदा और उसकी दोनों बेटियां -तीन साल की राधा और एक साल की मालती बची थी।

ये तो पत्थर सा हो गये थे।बस सारा काम कराया,तेरही करी।समधि दोनों और सारे रिश्तेदार आये।

“सबसे बड़ा पाप यही है जब बूढ़े बाप के कंधे पर जवान बेटे की चिता हो।”-वे रोते बोले। पूरे एक महीने रोते रहे।सारा कुछ करके थके थे।

“बाबूजी काम करना होगा,घर कैसे चलेगा? मैं हूं,आप , दोनों पोतियां कैसे काम चलेगा -वह खुद से चिपकाए रोती बोली थी। जिन्हें जाना था वे तो चले गये मगर हम सब।

“बहू हम सब #कठपुतली हैं। भगवान की कठपुतली -जैसा चाहते नचाते हैं।-ये छोटे बच्चे सा चिपके बोले।

फिर तो काम में जुट गए।आज पच्चीस साल से सुबह तीन बजे से सात आठ बजे तक चाय दुकान,-दिनभर चायपत्ती का कारोबार।अपनी दुकान की निगरानी, गिरी हालत में पचास साठ हजार महीने के कमा रहे हैं।

आज सारा कुछ सुधरा है।डेढ़ लाख का वन बी एच के फ्लैट है तो पांच पांच लाख दोनों पोतियों के नाम फिक्स्ड कर दिया है। मुआवजा और मेहनत ने मिलकर घर सुधार दिया है।

सो आज-सभी थके आये थे।अपनी मां के लिए साड़ी, कुर्ती खरीद लायी थी वहीं बाबा के लिए सुन्दर दो जोड़ी कपड़े।

आखिर डा का बाबा दिखना चाहिए।-वे खुशी से भर उठे।

वे कैसे बताते कि चोर बजार से सौ का दो शर्ट और दो सौ के दो पैंट खरीद पच्चीस साल निकाले थे।वे खुशी से बोल रहे थे-बाह रे ऊपर वाले-पक्का कठपुतली सा नचाता है,कभी हंसाता तो कभी रूलाता है।तेरी महिमा अपरंपार है।

#रचनाकार-परमा दत्त झा , भोपाल।

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