कठपुतली – खुशी : Moral Stories in Hindi

सुषमा एक सभ्य संस्कारी लड़की थी उसका रिश्ता राजीव के साथ हुआ जो पेशे से डॉक्टर था।सास ससुर को संस्कारी घर संभालने वाली बहु चाहिए थी जबकि राजीव चाहता था कि लड़की भी डॉक्टर हो ताकि उसे और उसके प्रोफ़ेशन को समझ सके।

पर रामनाथ के आगे उसकी एक न।चली और सुषमा बहू बनकर आ गई।सुषमा बी ए कर चुकी थी। फिर जब सामने से चलकर राजीव जैसा रिश्ता आया तो माता-पिता ने 

 सहर्ष हामी भर दी और सुषमा शादी करके राजीव के घर आ गई राजीव हमेशा सुषमा को काम ही आंकता क्योंकि उसके हिसाब से सारा दिन वह घर में रहकर सोती थी और कोई काम नहीं करती थी।जबकि  सुषमा के आने के बाद से घर इतना व्यवस्थित था। सास ससुर का और समय से खाना पीना । राजीव शादी के बाद से कभी भूखा पेट नहीं गया था

चाहे वह कितने बजे भी जाए खाना नाश्ता हमेशा हाजिर होता हर चीज टाइम पर पर फिर भी राजीव की नजर में इसका कोई मोल नहीं था। शादी के  बाद राजीव  सुषमा को बात-बात पर जलील करता शुरुबात के  दिनों में तो वो सुषमा को लेकर किसी पार्टी मे गया हो वरना वह अकेला ही जाता। जबकि उनके घर में पार्टी होती तो सब सुषमा के बनाए खाने की तारीफ करते पर तब भी राजीव कहता

यह काम तो खानसामा भी कर लेता है। इसी तरह साल गुजर गए सुषमा तीन बच्चों की मां बन गई और राजीव का अपना हॉस्पिटल हो गया। सास ससुर स्वर्ग से सिधार गए पर सुषमा की हालत में कोई फर्क नहीं आया पहले सास ससुर के लिहाज में राजीव सिर्फ कमरे में ही बोलता था अब अब नौकरों के सामने भी जलील करने से बाज ना आता। बच्चे बड़े हो गए

गौरव ने पिता  का हॉस्पिटल ज्वाइन कर लिया वह बिल्कुल अपने पिता जैसा था। मुझे सारी कमी अपनी मां  में ही नजर आती।  उससे छोटी प्रिया जो किसी को कुछ ना समझती  और सबसे छोटा यश जो मां का लाडला था और मां को अपना आदर्श मानता था वो हमेशा कहता मै आप जैसा खाना बनाऊंगा मै शेफ बनूंगा

इसलिए वो होटल मैनेजमेंट कर रहा था। इसलिए राजीव की नजर में वो बेकार था। आज गौरव के लिए लड़की देखने जाना था पहले तो दोनों बाप बेटा ही जाने वाले थे पर जब  लड़की के घर में सब लोग है सुना तो मजबूरी में सुषमा को ले जाना पड़ा।लड़की का नाम था दिव्या जो डेंटिस्ट थी ।घर में मां बाप थे और दादी थी ।

दिव्या के पापा ने पूछा भाभी जी क्या करती है राजीव बोला कुछ नहीं सिर्फ घर में होती है घर में रहने वाली औरते क्या हो करती हैं पति की कमाई पर ऐश  और क्या दिव्या के घर सब बाते राजीव और गौरव ने ही तय की सुषमा को पूछा तक नहीं रोज़ गौरव और राजीव या फिर गौरव और दिव्या शॉपिंग पर जाते। क्योंकि राजीव के हिसाब से सुषमा को अकल  नहीं थी

इतने सालों में सुषमा के लिए कपड़े वह स्वयंम लाता था। कभी सुषमा कुछ खरीद लाए है तो इतने नाम रखना तुम गवार हो तुम्हें अकल  ही नहीं है मुफ्त का पैसा है बर्बाद करो। शादी का देवर भी राजीव ने अपनी पसंद से ही खरीद लिया सुषमा को पूछा तक नहीं सुषमा ने एक दो बार बोला भी कि मैं चलू तो राजीव ,गौरव और प्रिया ने साफ मना कर दिया।

आज दिव्या के मां-बाप आने वाले थे इसीलिए उनके लिए अच्छा खाना नाश्ता बनाना था सुबह गौरव बोला मां आज शाम को अच्छे से तैयार हो जाएगा और खाना नाश्ता भी 

 अच्छा बनाना क्योंकि दिव्या के माता-पिता हमारे घर आ रहे हैं। राजीव बोला कुछ कॉन्टिनेंटल बनाना गवारों जैसा नहीं और कपड़े प्रिया से या मुझसे पूछ कर पहनना कुछ भी मत लपेट लेना आज सुषमा का सब्र जवाब दे गया वो बोली मै कब तक आप लोगों के हाथ की कठपुतली बनी रहूंगी मेरी भी कुछ इच्छाएं हैं मै इतनी भी गवार नहीं हूँ।

मुझेंभी पहना ओढ़ना आता है आपने मुझे हमेशा कमतर आका वही आपके बच्चे कर रहे है बहु को भी आने से पहले आपने ये सीखा और समझा दिया है तुम्हारी सास फूहड़ है फिर इस घर में मेरी क्या जरूरत है शाम का सब कुछ आप तीनों देख लेना शादी भी आप लोग ही कर लेना मेरे होने ना होने से क्या फर्क पड़ेगा।गौरव बोला मम्मी क्यों सीन क्रिएट कर रही हो जितना पापा ने बोला है

वो करो सुषमा ने एक खींच के थप्पड़ गौरव के गाल पर दिया गौरव सक पका गया और बोली अगर ये थप्पड़ तुझे पहले पड़ा होता तो तुझे पता होता कि मां से कैसे बात करते है।आज सुषमा का रूप देख गौरव प्रिया और राजीव भी डर गए।सुषमा  अपने कमरे में आई वहां पिंक कलर की साड़ी और मोती के गहने रखे थे

वो अलमारी की तरफ बढ़ी उसने अपनी फेवरेट साड़ी निकाली और अपने बेटे यश को फोन लगाया जो देहरादून में था बोली बेटा मै कुछ दिन तेरे पास आ जाऊ।बेटा बोला मां क्यों नहीं यश ने अगले दिन सुबह की टिकट करवा दी शाम को सुषमा अपने मन से तैयार हुई खाना भी अपनी पसंद का बनाया और कुक से कांटिनेंटल भी पर दिव्या के दादी को और पापा मम्मी को सुषमा का बनाया

खाना ही पसंद आया उसकी शिफॉन की साड़ी की दिव्या और उसकी मम्मी ने तारीफ की दिव्या बोली मम्मी ये भी पापा लाए थे।सुषमा बोली नहीं ये मेरा फेवरेट कलर है। 3 महीने बाद की शादी की तारीख तय हुई सबके जाने के बाद काफी समय सुषमा हॉल में बैठी रही।पैकिंग वो दिन में ही कर चुकी थीं उसने राजीव के नाम एक चिट्ठी लिखी 

प्रिय राजीव 

प्रिय जैसा हमारा संबंध  रहा ही नहीं।तुमने मुझे हमेशा कठपुतली जैसे अपने इशारों पर नचाया अपमान तिरस्कार के अलावा मुझे क्या दिया।शादी से पहले अपने पिता से मुंह खोल कर कहते ना कि डाक्टर बीवी लाऊंगा मै बच जाती।

तुमने अपने साथ मेरा जीवन भी नरक बनाया मेरे बच्चों को मेरे खिलाफ कर दिया वो बच्चे जो हमेशा प्रथम आए मेरी वजह से पर उन्हें मेरी कदर नहीं।कोई बात नहीं अब मै इस घुटन भरे जीवन से और कठपुतली नुमा जीवन से थक चुकी हूँ।

मै जा रही हूं अगली सुबह मुंह अंधेरे ही सुषमा निकल गई और देहरादून की ट्रेन में बैठ गई जब राजीव उठा सुषमा सुषमा आवाज दे हॉल में आया चिट्ठी पड़ी तो सर पकड़ कर बैठ गया आज उसे लग रहा था कि मैं गुनाहगार हूं पर अब क्या हो सकता था

तीर कमान से निकल चुका था गौरव आया उसने भी खत पढ़ा वो बोला पापा हमे मा को वापस लाना चाहिए।राजीव बोला कैसे कहा है वो गौरव बोला वो यश के पास ही जाएगी चलिए हम अपने गुनाह की माफी मांग घर ले आते है।राजीव गौरव और प्रिया तीनों गाड़ी में बैठ अपनी मां को और बीवी को लेने जा रहे थे अपने पछतावे के साथ और सुषमा को उसका सम्मान देने।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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