कठपुतली – डा० विजय लक्ष्मी : Moral Stories in Hindi

साफ-सुथरे आंगन में तुलसी चौरे पर दिया जलाकर मीना जैसे रोज ही भगवान को नमस्कार करती थी। वह एक आदर्श बहू थी – सास-ससुर का मान, पति मनोज का सम्मान, और दो प्यारे बच्चों की ममतामयी माँ। मीना पढ़ी-लिखी थी, पर शादी के बाद उसने खुद को परिवार में समर्पित कर दिया था।

मनोज जब एक दिन स्कूल की एक वैकेंसी के बारे में बताता है, तो मीना पहले तो संकोच करती है, लेकिन फिर परिवार के प्रोत्साहन से जॉब जॉइन कर लेती है। वह इतनी सजग और संवेदनशील होती है कि नौकरी के साथ अपनी सास-श्वसुर के सहयोग से घर भी बखूबी संभालती है।

एक दिन मीना बाजार के एक बड़े मॉल में कुछ सामान लेने गई थी, तभी अचानक उसकी मुलाकात बचपन की सहेली रिया से हो जाती है ।

रिया चमचमाती कार से उतरती है, उसके पास ब्रांडेड कपड़े, ऊँची एड़ी की गॉगल ,महंगा पर्स और बदन से आती महंगे परफ्यूम की खुशबू

“अरे मीना? तू? ओ गॉड, अभी भी मिडिल क्लास वाली वही जिंदगी… स्कूल टीचर? टीचर और फटीचर… हाहाहा!” — रिया व्यंग्य से हंसते हुए बोली।

मीना एक पल को चुप हो जाती है, लेकिन रिया की चकाचौंध भरी दुनिया उसे धीरे-धीरे अपनी ओर खींचने लगती है।

रिया मीना को बड़े-बड़े होटलों, पार्टीज़ और शॉपिंग मॉल्स की दुनिया में खींच ले जाती है। मीना अब घर पर कम ध्यान देने लगी, बच्चों के होमवर्क की जगह खुद की नेल आर्ट में व्यस्त रहती। मनोज को अब वह हमेशा नीचा दिखाने लगी, और उसे “सफलता से दूर भागते इंसान” के नाम से सम्बोधित करने लगी ।

रिया हर बार पैसे और ब्रांड्स का प्रदर्शन करती और मीना को अपने हाथों की कठपुतली समझती — बिना रिया  के वे कुछ सोचती भी नहीं थी!” सीधी-सादी मीना उसके बर्ताव को समझ नहीं पाती वे सोचती कि यह दोस्ती के स्नेह में कर रही है पर रिया जो पहले ही अपने हाथों अपना परिवार उजड़ चुकी थी वह मीना को भी उसी राह में ले जाने की कोशिश कर रही थी, मीना रोज रिया से दूर रहने की कोशिश करती उसका विवेक उसे झिंझोड़ता पर पता नहीं रिया मैं ऐसा क्या सम्मोहन था की मीना फिर दूसरे दिन परिवार की अनसुनी कर निकल देती।

अब तो घर के लोगों ने भी उसको ठोकना छोड़ ही दिया था मनोज से तो कोई बात ही नहीं होती थी कब घर आती कब जाती किसी को कुछ भी पता नहीं होता। हार कर सब ने किस्मत के हवाले कर दिया था।

रिया का पति रमेश एक बड़ा ऑफिसर था, लेकिन बहुत ही सुलझा हुआ और शांत स्वभाव का। जब उसने मीना को अपनी बेटी सायमा के स्कूल में एक बेहतरीन शिक्षिका के रूप में देखा था, तब ही वह उसे सम्मान से देखने लगा था।

अब वही मीना, रिया के पीछे-पीछे होटल और पार्टीज़ में घूम रही थी। यह देख रमेश को बहुत दुःख हुआ। उसने रिया को समझाने की कोशिश की, लेकिन जब वह न मानी, तब मनोज से मिला और बोला:
“तुम्हारी पत्नी दिल की साफ है, पर मेरी पत्नी की चकाचौंध से वह कठपुतली बन चुकी है। हमें कुछ करना होगा।”

रमेश और मनोज ने मिलकर एक योजना बनाई। उन्होंने पता लगाया कि रिया मीना को लेकर एक होटल में पार्टी के लिए जा रही है। दोनों वहीं पहुँचे और जानबूझकर होटल में एक ऐसी स्थिति बना दी, जिसमें पुलिस की चेकिंग शुरू हो गई। दोनों महिलाओं को कुछ देर के लिए रोका गया।

रिया जल्दी से रमेश के रुतबे का फायदा उठा छूट ली  , लेकिन मीना डर के मारे एक कोने में बैठ गई। तभी सामने से मनोज किसी लड़की के साथ आता दिखा, मीना का दिल टूट गया।

“वाह मनोज! तुम भी? मैं तो समझती थी तुम…”— वह फफक पड़ी।

मनोज शांत स्वर में बोला —
“जब तुम इस होटल में रिया के साथ घूम सकती हो, तो मैं क्यों नहीं? क्या तुम्हारी ज़िंदगी में मेरे लिए कोई जगह बची थी?”

मीना को अब सब कुछ समझ में आ गया कि ये केवल झूठ चकाचौंध है। वे रोते हुए बोली,
“मैं रिया के दिखावे में अपने जीवन की सबसे कीमती दौलत को खो बैठी थी — तुम, मेरे बच्चे, और वह सम्मान जो मुझे एक शिक्षिका के रूप में मिला था।”

रमेश भी वहाँ आकर बोला —
“मीना, अगर सुबह का भटका इंसान शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहा जाता। तुम पैसे की कठपुतली बन गई थी, पर आज तुमने अपनी डोर खुद थाम ली है।”

मीना ने रमेश के आगे हाथ जोड़कर कहा —
“आपने एक सच्चे धर्मभाई का धर्म निभाया। हम 2 बहनें थे कोई भाई नहीं था पर आज मुझे भाई मिल गया।”

रमेश भावुक होकर बोला —
“याद है जब सायमा के पेरेंट्स डे पर मैं तुमसे मिला था? तब मैंने कहा था कि आप मेरी दिवंगत बहन की तरह दिखती हैं। सच में, आज  से तुम मेरी बहन हो।”

मीना ने रिया से संबंध जरूर तोड़ लिए पर एक संकल्प के साथ कि वह अपने में बोले धर्म भाई के घर की खुशियाँ लौटाकर रहेगी। वह फिर से अपनी पुरानी मीना बन गई थी— लेकिन अब और भी मजबूत, और भी समझदार क्योंकि उसने खनकते सिक्कों की दुनिया नजदीक से  जो देखी थी।

उसने बच्चों को गले लगाया, मनोज से माफी माँग सास-ससुर के पैरों में झुक रोने लगी । उन्होंने उसे गले से लगाकर माफ कर दिया और कहा मीना कोई बात नहीं याद रखना यह तुम्हारे लिए एक सबक हो ।  गलती सभी से होती है पर जो अपनी गलती स्वीकार कर ले वही असली विजेता।  अंत भला तो सब भला
मीना ने रमेश व मनोज के सहयोग से स्कूल में पढ़ाने लगी थी ।

उसे समझ आ गया था कि असली सफलता चमक-दमक में नहीं, बल्कि उस शांति और संतुलन में है जो एक सच्चा परिवार, ईमानदारी और प्यार से मिलता है।”जो लोग दूसरों की कठपुतली बन जाते हैं, वे अपनी असली पहचान खो बैठते हैं। पर जो समय रहते विवेक पूर्वक खुद की डोर थाम लेते हैं, वे ही जीवन की सच्चे खिलाड़ी होते हैं।”।
                        स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी
                              ‘अनाम अपराजिता’

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