कठपुतली – डाॅ उर्मिला सिन्हा : Moral Stories in Hindi

चारदीवारी के भीतर बड़ी सी कोठी, दर्जनों नौकर-चाकर। संसार की तमाम सुख-सुविधाएं जैसे कुबेर का खजाना इसी घर में हो। सुदर्शन पति आरव …अति व्यस्त , अहंकारी फैशनपरस्त,जरा सा भी  किसी काम में चूक बर्दाश्त नहीं है।

आज बुजुर्ग सेवक के हाथों से कीमती विदेशी टी सेट गिरकर टूट गया। आरव ने झट थप्पड़ चला दिया,पूर्वा को नागवार गुजरा,” यह क्या सेट ही टूटा है न इसके लिए पिता के उम्र के व्यक्ति पर हाथ उठाना”।

    आरव उलटकर पूर्वा का हाथ पकड़कर मरोड़ दिया,

” दो टके की लड़की, संपत्ति देख दिमाग खराब हो गया है, मुझे सिखाने चली है। पत्नी बनकर आई हो पत्नी बनकर रहो मेरी मालकिन बनने की कोशिश मत करना”

पैर पटकता आरव चला गया। पूर्वा ने ऐसा अपमान कभी नहीं झेला था,” मैं व्याहता हूं तुम्हारी”  क्रोध और  लज्जा से वह  लाल हो गई। घर में जैसे कर्फ्यू लग गया। बुजुर्ग सेवक नौकरी से निकाल दिया गया।

   पूर्वा अपनी फरियाद किससे कहती। धनाढ्य वर्ग के सास-ससुर की अपनी अलग दुनिया थी। उनके टुकड़े पर ऐश करने वाले मुफ्त खोर दोस्त , देर रात तक पार्टी-शार्टी ,मौज मस्ती… शोहरत दौलत के बल पर संसार की बेशकीमती चीजें इकट्ठा करना।

  अच्छा अब समझ में आया… मैं  पूर्वा नृत्य-संगीत की मल्लिका अपने कालेज की धड़कन… मेरे ससुर जी ने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में मेरी शानदार प्रस्तुति देखी और मेरे निर्धन माता-पिता को धन-दौलत की झलक दिखला मुझे अपने मगरुर बेटे के लिए व्याह लाये।

   आज उनका बेटा अपनी रंगीन दुनिया और व्यवसाय में मग्न रहता है। पूर्वा सिर्फ सज-धज कर महफ़िल में पेश करने की वस्तु समान है।

पति सास-ससुर अपने आकाओं को खुश करने के लिये कहें कि नाचो तो वह नाचे… नहीं तो अपनी मर्जी से उसे सांस लेने की भी इजाजत नहीं है।

यह कैसा जीवन है। इसी बीच उसके संगीत गुरु का पैगाम आया,” अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम है तुम अपनी प्रस्तुति दो… मान-सम्मान और आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।”

  पूर्वा खुशी से झूम उठी।पति, सास-ससुर घर में नहीं थे…उसे फोन करने की इजाजत नहीं थी। अतः वह अकेली अपने गुरु जी के पास चली गई।

   अपने साथी कलाकारों को देख पूर्वा का मुरझाया चेहरा खिल उठा।वह झूमकर नाची गाई।  जैसे पिंजरे में बंद मैना को खुला आकाश नसीब हुआ हो।

मनपसंद राजमा चावल खायें और दूसरे दिन रिहर्सल में आने का वादा कर घर वापस आई।

   वह गुनगुनाती अपने कमरे में दाखिल हुई। वहां उसका पति आरव लाल-लाल आंखें किये  गुस्से में चिल्लाया,

” कहां गई  थी।”

” अपनी सांस्कृतिक संस्था में, मालूम है वहां बहुत बड़े कार्यक्रम का आयोजन होने वाला है उसमें मुझे मुख्य भूमिका मिली है…ओह आज मैं बहुत खुश हूं” पति के क्रोध का उसने उत्साह पूर्वक जबाब दिया।

  ” तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, इस घर से क़दम निकालने की … ।”

” क्यों यह घर अब मेरा भी तो है।”

आगे के शब्द  आरव के थप्पड़ घूंसे में डूब गए… मार-पीट कर जब मन नहीं भरा तब नौकरानी को आदेश दिया कि ” ताले में बंद रखो इसे, खाना-पीना सब बंद, जबतक इसका दिमाग ठिकाने नहीं आता।”

   मार-पीट, प्रताड़ना, बेइज्जती, माता-पिता से मिलने नहीं देना… धीरे-धीरे पूर्वा शांत पड़ गई।

अब सास-ससुर,पति जैसा कहते वैसा करती।वे कहते उठो तो उठती बैठो तो बैठती।

पूर्वा की हैसियत एक कठपुतली से  अधिक नहीं थी। उसने अपनी नियति स्वीकार कर ली थी।

    एक बार वह अपने माता-पिता से मिलने गई।उसे इस शर्त पर भेजा गया कि वहां उन्हें अपने धन-दौलत का बखान करना है और निर्धारित अवधि पर जब पति बुलाने जायेगा उसे चुपचाप वापस आना है।

  माता-पिता बेटी की संपन्नता पर प्रसन्न हुये लेकिन उसे शांत उदास देख मन-ही-मन कारण जानने का प्रयास करने लगे।  पूर्वा ने अपने आप को परिस्थितियों के हवाले कर दिया था।वह मार-पीट डांट-डपट  से तंग आ चुकी थी।

इसी  पूर्वा  की सहेली उससे मिलने आई और धीरे-धीरे सबकुछ जान लिया” मेरी स्थिति मेरे ससुराल में एक कठपुतली की है जिसका डोर मेरे सास-ससुर और पति के हाथों में है… मैं और मेरे माता-पिता बुरी तरह छले गये हैं… मुंह खोलती हूं तब घर के नौकर-चाकर के समक्ष मेरी पिटाई होती है … क्या करुं… माता-पिता को बताती हूं तब उनका भ्रम टूट जायेगा वो जीते-जी मर जायेंगे,मुझे ससुराल जाना ही होगा।”

पूर्वा के आंसू रुक ही नहीं रहे थे। सहेली सोच में पड़ गई लेकिन वह होशियार थी उसके पति पुलिस अधिकारी थे,” तुम ससुराल जाओ, सहज व्यवहार करो अगर ज्यादती होती है तब इस नंबर पर फोन करना।”

” यही लाई हो अपने मां-बाप के घर से “उपहार देख सासु मां चिल्लाने लगी।

” आज घर में मेहमान आने वाले हैं उन्हें शिकायत का मौका दिया तो समझना” ससुर जी का फरमान।

पति को सिर्फ उसे जलील करने में आंतरिक प्रसन्नता मिलती थी।

कभी पूर्वा के कामकाज पर भड़कता कभी उसकी चुप्पी पर तीखे सवाल दागता।

” यह कैसी शक्ल बना रखी है, कभी पैसे वाले के बहू की तरह रहा करो,किस चीज की कमी है तुमको… सोने हीरे-जवाहरात से लदी हुई हो, घर में कीमती सामान भरा हुआ है…”सुनते-सुनते वह थेथर हो गई थी अब कुछ भी असर नहीं करता था।

ससुराल वाले जितना नचाते वह उतना ही उनके इशारे पर नाचने को विवश थीं।

आज सुबह से घर में बड़ी गहमा-गहमी थी। आलीशान कोठी को खूब सजाया गया था। शाम से ही पार्लर वाली अपने ताम-झाम के साथ पूर्वा को सजा रही थी ” आज तुम्हें सबसे खूबसूरत दीखना चाहिए”पति सास-ससुर अपनी फरमान सुना चुके थे।

” मैम ,आपका चंपई रंग , चमकता त्वचा, लंबे घने बाल, देहयष्टि …आपको मेकअप की क्या जरूरत है… लेकिन आपके मुखड़े पर खुशी नहीं है… तबियत ठीक है न” पार्लर वाली आत्मीयता से बोली।

पूर्वा की आंखें भींग गई आजतक इस कोठी में कोई

उससे इतने अपनापन से बात नहीं किया था।

खैर,पति अपनी सजी-धजी पत्नी के बाहें में बांहें डाल अपने बिजनेस आकाओं के समक्ष ले आया,” मीट माई वाइफ, पूर्वा आरव” इतने प्यार और शिष्टता से अपने पति के मुख से अपना परिचय सुन पल भर के लिये पूर्वा का नन्हा सा दिल धड़क उठा,” हे माता रानी मेरे पति को सद्बुद्धि देना”।

पूर्वा की सुंदरता शालीनता देख आगंतुक मंत्रमुग्ध हो गए” भाई ,बीबी तुम्हारी बहुत सुंदर है “।

” थैंक्स” आरव समझ गया डील फाइनल हो जायेगा।

फिर वह घूम-घूमकर एक एक सजावटी वस्तुओं का बखान करने लगा।

“… और मैं, मैं इनकी हाथों की कठपुतली…” पूर्वा विक्षिप्त ढंग से हंसी।

सभी अवाक हो गये,” गूंगी गुड़िया के मुंह में भी जबान आ गया ” आरव के माता-पिता गुर्राये।

लेकिन आगंतुक ने इसे गंभीरता से लिया और बिना कोई डील किये वापस चला गया,” जो अपनी पत्नी की इज्जत नहीं करता उससे हमें कोई वास्ता नहीं रखना।”

इधर आरव क्रोध से पागल हो गया,” तेरी ऐसी मजाल” जैसे ही मारने के लिए हाथ उठाया। पूर्वा चीख उठी,

” खबरदार जो मुझे मारा-पीटा अभी पुलिस वाले आते ही होंगे… अभी बिजनेस डूबा है अब सपरिवार जेल की हवा खाओगे” पूर्वा का रौद्र रूप देख सभी भौंचके हो गये… बाहर पुलिस की गाड़ी का सायरन और धड़ाधड़ पुलिस वाले भीतर आ गये।

आगे की कहानी स्पष्ट है, पूर्वा ने अपनी जुबान खोली

” अगर मैं पहले ही यह जुल्म नहीं सहती, कठपुतली की तरह इनके इशारों पर नहीं नाचती… अपने उपर के अन्याय का विरोध करती तो आज यह अवांछित स्थिति पैदा न होता।

पुलिस और कानून अपना काम करेंगे लेकिन किसी डर या अनुचित का प्रतिकार स्वयं ही करना पड़ता है।

मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा

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