कठपुतली – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

शैलजा के विवाह को एक साल से ऊपर होने वाला उसके ससुराल में सास ससुर जेठ जेठानी उनके दो बच्चे उसका पति वो और दो माह का नन्हा बेटा मीकू । शैलजा स्वभाव से सीदी सादे नर्म व्यवहार की बचपन में ही माँ पिता को खो चुकी चाचा चाची के संरक्षण में पली बड़ी पराई सन्तान सुन सुन कर उक्ताई तो  ऐसे में आज किसी का थोड़ा सा भी प्यार मिल जाता

तो जल्दी ही उस पर विश्वास करने लगती। किसी को खोने का किसी से बिछड़ने का दुख क्या होता है? ज़िन्दगी में उसने अच्छे से महसूस किया तो उसकी कीमत का सही अंदाजा भी था उसको, उसकी जेठानी कांता बहुत सयानी चतुर किसी से काम कैसे निकालना है इस गुण में एकदम माहिर महिला, जो अपनी मीठी मीठी बातों में शैलजा को फंसा अपने हर काम आसानी से निकलवा लिया करती।

यहां तक की कहीं आने-जाने में अपने दोनों बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी भी जेठानी कांता देवरानी शैलजा पर डाल जाती। शैलजा भी अपने बच्चों सा उनको प्यार दुलार देती स्वच्छ मन से देखभाल करती ।

 शैलजा की सासूमां ने अनेक बार शैलजा को आगाह भी किया कि वो इतना काम न किया करे उसका बच्चा अभी बहुत छोटा है ज्यादा शारीरिक श्रम ठीक नहीं उसके लिए वो जेठानी कांता को भी थोड़ा काम करने को कहे तुम्हारे पति, बच्चे को भी तुम्हारी ज्यादा जरूरत है

। उनकी अपेक्षा अवहेलना सही नहीं है। मगर शैलजा हंसी ख़ुशी में सासूमां की बातें टाल देती ज्यादा ध्यान नहीं दिया करती और जेठानी जी के हर आदेश का पालन करती रहती क्योंकि जेठानी कांता की बातें होती ही इतनी चिकनी चुपड़ी दिखावटी मीठापन लिए शैलजा उनके काम के लिए मना ही नहीं

https://betiyan.in/sath-2/

कर पाती। और जेठानी उसका आसानी से बेवकूफ बना अपना काम निकलवा लिया करती। और खुद आराम से घर में मोबाइल या पिक्चर देखने मनोरंजन सहेलियों रिश्ते दारों में मस्त रहती।

 सारा दिन घर की देखभाल के कार्यों में शैलजा को जेठानी व्यस्त रखती नचाती रहती और शैलजा उनके इशारों पर कठपुतली बन नाचती रहती । वो न कभी थकती न कभी टूटती अपने धर्म कर्म चुनौती नियति की कसौटी पर खुशियों के नकाब पहने बेबसी के लिबास ओढ़े प्रतिदिन अपने ससुराल रूपी मंच पर उतरती वो एक ऐसी कठपुतली जिसकी बागडोर उसकी जेठानी कांता के हाथ में घर के सभी काम शैलजा करती

और वाही वाही जेठानी लूटती। क्योंकि जब खाना बनाना होता तो बेचारी शैलजा जुटी रहती लेकिन जब परोसने की बारी आती तो जेठानी शैलजा को कहती तुम काम कर कर के थक गई होगी जाओ थोड़ी देर आराम कर लो अब मैं तुम्हारा ध्यान नहीं रखूंगी तो भला कौन रखेगा..?  तुम तो मेरी बहन जैसी हो। तुम्हारे साथ तो मेरा जन्म-जन्मांतर का रिश्ता है।

भोली भाली शैलजा भी उनमें बड़ी बहन के दर्शन करतीं और हर बात मान लेती सभी शैलजा का बनाया खाना खाते और सोचते खाना बड़ी बहु कांता ने बनाया जी भर कांता की तारीफ करते मगर सासूमां सब समझती कह कुछ नहीं पाती क्योंकि बड़ी बहु कांता स्वभाव में तेज और बातें बनाने में महारथी थी ।

एक दिन जेठानी जी के मायके से उनकी बहने भाभी भतीजे भतीजी आये हुए थे और वो सभी जेठानी जी के कमरे में बैठे चुहलबाज़ी कर रहे। और अपनी आदतनुसार जेठानी कांता ने शैलजा को मीठी मीठी बातों में फंसा किचन के काम में लगाया हुआ था । सासूमां भी घर में नहीं थी उसका छोटा बच्चा बीच बीच में रो रहा वो उसको भी चुप कराती एक दो बार जेठानी जी से बोला

भी आप मुन्ना को संभाल लीजिए मगर उन्होंने यह कह कर टाल दिया अरे रोने दो इसको छोटे बच्चे जितना रोते हैं पता है उतना इनका गला साफ रहता है। ज्यादा गोद की आदत नहीं रखनी चाहिए इनको । शैलजा चाहकर भी कुछ नहीं कह पाती । सोचती शायद जेठानी सही कह रही है।

शैलजा जल्दी जल्दी नाश्ता तैयार कर जेठानी जी के कमरे की तरफ उनको सूचित करने जैसे ही जाती है वहां बहार आती आवाजें उसको बरबस रोक देती है। जहां जेठानी कांता की बहनें उनसे कह रही होती हैं भई कांता तुम्हारे तो बहुत ठाट वाट है। अच्छी कठपुतली मिल गई तुमको तो देवरानी के रूप में घर में ही जहां नचाती हो वही नाचती हैं।

जैसे नचाती हो तुम्हारे इशारे पर वैसे ही नाचती हैं।इस बात पर जेठानी कांता खिल्ली उड़ाते हंसकर कहती हैं। हाँ सच में पता है सब मेरी मीठी मीठी बातों का कमाल है। जिसको बोलकर मैं अच्छे-अच्छो का बेवकूफ बना देती हूँ। ये सीधी-सादी देवरानी क्या चीज है

इसको तो मैंने पहले दिन से ही सोच लिया और उसे अपने वश में कर लिया था। तभी तो अब देखो कैसे दौड़ दौड़ कर काम कर रही ? 

मेहमान मेरे और खातिर दारी की तैयारी में वो मशगूल और अपन आराम से बैठे गप्पे लगा रहे।अरे ये तो रोज की दिनचर्या है ये हमारे घर में बैचारी शैलजा मेरी बातों के मोहजाल में फंसी सुबह से शाम तक मेरी कठपुतली बनी नाचती रहती है। 

सच में बड़े ही पुन्य प्रताप किये होंगे तुमने यार कांता जो ऐसी गुलाम कठपुतली तुम्हारे हाथों पड़ गई बड़ी बहु कांता की बहन चुहलबाज़ी करते हुए बोली –

 हाँ और नहीं तो क्या ? किये तो है मैंने कांता बोली- 

अरे ऽऽ मैं तो पहले से ही पटाने में माहिर हूँ । अब देखना बस हो गया होगा नाश्ता तैयार देखना आती ही होगी मेरी कठपुतली और भी कुछ खाना हो तो बोलो बनवा देती हूँ उससे वैसे बनाती भी है बहुत स्वादिष्ट लजीज बड़ी लगन मेहनत से ।

एक दो बार मैंने कह क्या दिया था ? कि तुम बहुत बढ़िया बनाती हो शैलजा बस तब से कहने की देरी है झटपट लग जाती पकाने में बेवकूफ कहीं की ।

शैलजा को सारी बातें सुनकर बहुत आश्चर्य होता है उसका तो दिल ही टूट जाता है। नफरत भर जाती है जेठानी के प्रति मन में वो सोचती है क्या वास्तव में वो अपनी जेठानी के हाथों की कठपुतली उनकी गुलाम बन चुकी है ? अपना कीमती समय अपने पति अपने बच्चे पर खर्च न करके वो कैसे जेठानी की मीठी मीठी बातों के जाल में फंसती चली गई ?

सच में कितनी बेवकूफ थी वो ? फिर सोचती है इसमें आखिर उसकी भी गलती क्या है ? वो अनाथ माता-पिता के प्यार से वंचित बचपन से जिसके लिए तरसती रही झूठ ही सही दिखावटी ही सही जब वो अपनापन जेठानी से मिला तो उसका वशीभूत होना सम्भव ही तो है।

“ यह जुड़ाव सम्बन्ध एक ऐसी गहरी भावना है जो किसी व्यक्ति को महसूस कराती है वह भी किसी समूह का खास हिस्सा है।ये जो अपनेपन की भावना सुरक्षा और पहचान का एहसास भी कराती है “ ।

 “यह अपनापन ही तो बदले रिश्तों का बंधन” ये आत्मीयता अपनत्व मनुष्य की जरूरत ही तो है। इसी से भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा मिलता है। और यही भावना हमारे अस्तित्व के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।

मगर ये जेठानी जैसे स्वार्थी लोगों की समझ से बाहर की बात है। जिनके लिए रिश्तों की कोई अहमियत ही नहीं है। इनको क्या पता रिश्ता क्या होता है ? ये मतलबपरस्त लोग क्या जाने ? अपनेपन और रिश्ते का महत्व जिनके लिए दूसरों की बागडोर को अपने हाथों में रखना एक खेल है जो दूसरों की कहानी पर उसको नचाते तालियां बजाते…

ऐसे लोगों ने रिश्तों को कठपुतली का खेल ही बना कर रख दिया । उसके प्यार समर्पण त्याग का गलत मतलब लगाया गया और उसे ऐसी कठपुतली की तरह इस्तेमाल किया गया जिसकी डोर जेठानी ने अपने हाथ में रखी हुई थी।

आज शैलजा को सासूमां की कही बातों का महत्व समझ आ जाता है और जेठानी की कही सुनी बातों से अहसास होता है कि ये गुलामी का जीवन कितना ही सुन्दर क्यों न हो..?  परन्तु इंसान कहलाता तो गुलाम ही है। उसको आगे से संभलकर चलना होगा उसे किसी के हाथ की कठपुतली की तरह नाचना नहीं है

अब कोई उससे भावनात्मक समझौता नहीं कर सकता उसका बेवकूफ बहुत बना लिया लेकिन अब नहीं बना सकता। उसे जेठानी की गुलामी से मुक्ति की सोचनी है। और उनको अहसास कराना है की उसका अपना भी अस्तित्व है अपनी भी जरूरत है। अपना बच्चा अपना पति उनके लिए भी समय निकालना है जो उसकी पहली प्राथमिकता है।

लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

Leave a Comment

error: Content is protected !!